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कबीरदास का दोहा है- जाका गुरु है आँधरा, चेला खरा निरंध।
अंधा अंधा ठेलिया, दोन्यूं कूप पड़ंत
यहाँ आंधरा अथवा अंधा उस अज्ञानी के लिए प्रयुक्त है जिसके अज्ञान के कारण वह तो कुएं में गिरता ही है उसका चेला अथवा साथ रहने वाला भी गिरता है। कुछ ऐसी ही हालत राहुल गांधी और कांग्रेस के नेतृत्व में जुट रहे तमाम विपक्षी दलों अथवा नेताओं की भी दिखाई दे रही है। राहुल गांधी अपने अधकचरे ज्ञान, अपरिपक्व राजनीतिक समझ व उच्च महत्वाकांक्षाओं के लिए चर्चा में रहते हैं। अब उनके द्वारा इंडिया नाम के साथ जोड़कर सियासी चाल कहीं समूचे विपक्ष को कुएं में तो नहीं डाल देगी।
आज जब 26 दल उनके साथ खड़े हैं और उनकी हां में हां मिला रहे हैं इससे यह तो स्पष्ट है कि उन दलों की अपनी समझ बची ही नहीं है और वे राहुल के सम्मोहन का शिकार हो चुके हैं।इंडिया नाम ब्रिटिश शासकों का दिया हुआ है। भारत, भारतवर्ष, हिंदुस्तान आदि नामों से उन्हें घृणा तो थी ही, वे जन मन से भी इसे मिटाना चाहते थे। इसी संकुचित मानसिकता और अंग्रेजी के वर्चस्व की महत्वाकांक्षा के कारण उन्होंने इंडिया नाम प्रचारित किया। विडंबना यह रही कि देश की आजादी के बाद भी इंडिया नाम से छुटने का उपक्रम नहीं हुआ। क्योंकि उस समय नेतृत्व कर रहे राजनेता भी अंग्रेजी मानसिकता के पिछलग्गू बने रहे।
संविधान में अनेक बार भारत और भारतवर्ष शब्द का प्रयोग हुआ है जबकि इंडिया शब्द का प्रयोग बहुत सीमित है। संविधान की उद्देशिका इसका प्रमाण है, वहाँ लिखा है- हम, भारत के लोग, भारत को…। यही कारण है कि जनसामान्य आज भी भारत अथवा भारतवर्ष संबोधन में गौरव का अनुभव करता है। भारत शब्द उसके अंदर आत्मीयता एवं नए उत्साह का संचार करता है। यह भी सत्य है कि आज व्यापक स्तर पर भारत के लिए इंडिया और भारतवासियों के लिए इंडियन शब्द का प्रयोग हो रहा है।
क्या ऐसे में राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं हेतु इंडिया शब्द का प्रयोग उचित है? क्या यह जन भावना अथवा राष्ट्र के नाम का दुरुपयोग नहीं है? क्या संविधान इस प्रकार नाम प्रयोग की अनुमति देता है?जोड़-तोड़, निहित स्वार्थ,सत्ता प्राप्ति और भिन्न भिन्न प्रकार की महत्वाकांक्षाएं राजनीति का चरित्र बन चुकी हैं। क्या यह स्वस्थ राजनीति और राष्ट्रहित में है? क्या आज राजनीति के शीर्ष पर बैठे सभी की महत्वाकांक्षाएं भारत भाव केंद्रित नहीं होनी चाहिए? पिछले लंबे समय से विपक्षी एकजुटता, महागठबंधन जैसे शब्द लगातार चर्चा में हैं। ध्यातव्य है कि स्पष्ट बहुमत के अभाव में अथवा राजनैतिक अस्थिरता के समय सम विचारी दल मिलकर गठबंधन करते हैं, जिससे राजनीतिक स्थिरता बनी रहे। इस प्रकार की भावना के चलते ही वर्ष 1998 में 13 दलों के साथ एनडीए यानी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन बना। इसी प्रकार वर्ष 2004 में 10 अन्य दलों के साथ यूपीए यानी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन अस्तित्व में आया। वर्ष 2014 में पूर्ण बहुमत से सत्ता में आई भारतीय जनता पार्टी ने लगभग सभी विपक्षी दलों को चिंता और बेचैनी में डाल दिया। फिर वर्ष 2019 के चुनाव परिणामों ने पुनरू विपक्षी दलों की चिंता और चिंतन प्रक्रिया को गति प्रदान की।
हाल ही में 2024 के चुनाव को ध्यान में रखकर समूचा विपक्ष गठबंधन, महागठबंधन आदि की प्रक्रिया से गुजरते हुए संप्रग (यूपीए) की जगह इंडिया नाम के साथ अवतरित हुआ है। हाल ही में बेंगलुरु में हुई 26 विपक्षी दलों की बैठक में इंडिया यानी इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस का गठन हुआ है।सूत्रों के अनुसार यह नाम कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने सुझाया है जिसे औपचारिक रूप से बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बैठक में प्रस्तावित किया। इस नाम की भावना को स्पष्ट करते हुए राहुल गांधी ने कहा- लोकतंत्र- संविधान पर हमला कर भारत के विचार और आत्मा पर प्रहार किया जा रहा है। ऐसे में इंडिया नाम बिल्कुल सही है। यह भी ध्यातव्य है कि बैठक के बाद संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने विपक्ष के नए गठबंधन का नाम इंडिया होने का व अन्य ऐलान किए। इससे यह स्पष्ट है कि 26 विपक्षी दलों में मुख्य भूमिका और योजना राहुल गांधी एवं कांग्रेस की ही है। दिलचस्प यह भी है कि यूपीए की लगभग 19 वर्ष की यात्रा में प्रगतिशील अथवा प्रोग्रेसिव शब्द तो था किंतु वह कहीं धरातल पर नहीं उतर पाया।
अब इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस में डेवलपमेंटल शब्द तो रख लिया गया है किंतु नीयत कहीं दिखाई नहीं दे रही है। एलायंस द्वारा वैकल्पिक राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक एजेंडा पेश करने के संकल्प की भी बात है लेकिन आज एक अनपढ़ व्यक्ति भी जानता है कि यह सारे का सारा उपक्रम सत्ता प्राप्ति के लिए ही है। सर्वविदित है कि 26 के 26 विपक्षी नेता अपनी अपनी वैचारिक पृष्ठभूमि,निहित स्वार्थ और महत्वाकांक्षाओं के साथ आए हैं। क्या ऐसे में इंडिया नाम का यह नया अवतार साझा न्यूनतम कार्यक्रम, लोकतांत्रिक, परामर्शी और सहभागी हो सकेगा। सभी स्वयं में पूर्ण नेता हैं, क्या ऐसे में ये सभी किसी एक नेतृत्व में चल सकेंगे? ध्यान रहे यदि स्पष्ट बहुमत के अभाव में राजनीतिक अस्थिरता हुई अथवा बंदरबांट का वातावरण बना तो देश फिर से दशकों पीछे चला जाएगा।
यह सारा कांग्रेस का ही मायाजाल है क्योंकि इस समय विपक्ष में सर्वाधिक राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं कांग्रेस की ही दिखाई दे रही हैं। ध्यान रहे कांग्रेस में दलबंदी, घूसखोरी और बेईमानी की चर्चा करते हुए गांधी जी ने मेरे सपनों का भारत पुस्तक में लिखा है- कांग्रेस को हमें राजनीतिक पार्टियों और सांप्रदायिक संस्थाओं के साथ की गंदी होड़ से बचाना चाहिए। विडंबना यह है कि आज अन्य राजनीतिक पार्टियों और सांप्रदायिक संस्थाओं के साथ के बिना कांग्रेस का अस्तित्व ही नहीं है। नए गठबंधन का इंडिया नाम पुनरू कांग्रेस की अंग्रेजीदा मानसिकता का ही द्योतक है। राजनीतिक हितों के लिए इंडिया अथवा भारत से जुड़ी जन भावनाओं के साथ ऐसा खिलवाड़ सर्वथा अनुचित है।हाल ही में एनडीए यानी राजग गठबंधन की भी बैठक हुई,जिसमें 38 दलों ने शिरकत की। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ किया कि- राजग किसी मजबूरी का गठबंधन नहीं बल्कि मजबूती का गठबंधन है…