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चंडीगढ़ से जगतार सिंह
कांग्रेस द्वारा चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब का मुख्यमंत्री चेहरा घोषित किए जाने के साथ ही पंजाब विधानसभा की चुनावी शतरंज में चेहरे-मोहरों के बीच शह-मात का खेल तेज हो गया है। शिरोमणि अकाली दल(शिअद) और बहुजन समाज पार्टी(बसपा) गठबंधन के सीएम चेहरे के तौर पर अकेले सुखबीर बादल मैदान में हैं। आम आदमी पार्टी ने भगवंत मान को आगे किया है तो इधर 22 किसान संगठनों के संयुक्त समाज मोर्चा का सीएम चेहरा बलबीर सिंह राजेवाल हैं। भाजपा के साथ गठबंधन में पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह और सुखदेव सिंह ढींढसा की शिअद(संयुक्त) का दावेदार सीएम चेहरा अभी सामने नहीं आया है पर गठबंधन खेमे में कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ भाजपा पंजाब प्रदेश अध्यक्ष अश्वनी शर्मा का जिक्र हो रहा है।
कांग्रेस,आप,शिअद-बसपा और संयुक्त समाज मोर्चा के सीएम चेहरों में एक भी चेहरा ऐसा नहीं हैं जो आरोपों से न घिरा हो। 111 दिन के सीएम कार्यकाल के बाद सीएम की अगली पारी के लिए ताल ठोक रहे कांग्रेस के दलित मास्टर स्ट्रोक चरणजीत सिंह चन्नी पर उनके विधानसभा हलके चमकौर साहिब में अवैध खनन माफिया को सरंक्षण की तलवार लटकी है। ईडी द्वारा चन्नी के भानजे की गिरफ्तारी आैर 10 करोड़ रुपए की बरामदी ने चन्नी का चैन छिना है फिर चन्नी को भरोसा है कि कांग्रेस के दलित सीएम चेहरे के तौर पर पंजाब के 32 फीसदी दलित मतदाता कांग्रेस के हक में उनकी अगली पारी सुनिश्चित करेंगे। चन्नी को अगले सीएम चेहरे के तौर पर कांग्रेस की जीत मानते हुए कैबिनेट मंत्री ब्रहम महिंद्रा का कहना है,“ मैने तो हाईकमान को सिफारिश की है कि चुनाव से पहले चन्नी को ही अगला सीएम उम्मीदवार घोषित किया जाए। सीएम के तौर पर जातीय समीकरण चरणजीत सिंह चन्नी के पक्ष में हैं क्योंकि दलित सीएम को अगले सीएम के तौर पर पेश किए जाने से प्रदेश की 32 फीसदी दलित आबादी का कांग्रेस के पक्ष में एकतरफा समर्थन पार्टी को 2022 के चुनाव में भी सत्ता की राह ले जा सकता है। वहीं इसके उलट शिरोमणि अकाली दल-बसपा गठबंधन,आम आदमी पार्टी,संयुक्त समाज मोर्चा के घोषित जट्ट सिख सीएम उम्मीदवारों के बीच कांग्रेस का दलित सिख सीएम चेहरा कांग्रेस को फिर से सत्ता तक ले जाएगा ”।
मुख्यमंत्री के लिए कांग्रेस में चरणजीत िसंह चन्नी व नवजोत सिंह चन्नी के बीच छिड़ी लड़ाई का पटापेक्ष करते हुए 6 फरवरी को राहुल गांधी ने लुधियाना की रैली में मंच से जैसे ही मुख्यमंत्री चेहरे के लिए चरणजीत सिंह चन्नी के नाम का एलान किया तो उससे ठीक पहले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने भी अपने भाषण में हाईकमान को ताड़ दिया कि वह ‘दर्शनी घोड़ा’ बनकर नहीं रहना चाहते। संकेत साफ है सीएम पद के लिए चन्नी सिद्धू की लड़ाई कांग्रेस पर भारी पड़ सकती है।
2017 के विधानसभा चुनाव में बगैर सीएम चेहरे के चुनाव लड़ने वाली आम आदमी पार्टी इस बार सीएम चेहरे पर बहुमत के साथ जीत के प्रति आश्वसत है। भगवंत मान के सीएम चहरे के रुप में आगे आने से बहुमत की सरकार बनाने के लिए आप की राह कितनी अासान हुई है यह तो चुनाव नतीजें बताएंगे पर चरणजीत सिंह चन्नी,नवजोत सिद्धू,सुनील जाखड़, सुखबीर बादल और कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसे मंझे हुए चेहरों के आगे नए चेहरे भगवंत मान की चुनौतियां भी कम नहीं हैं। भगवंत मान की बतौर सीएम उम्मीदवारी घोषित करने से पहले जारी एक फोन नंबर पर चार दिन में 21 लाख लोगों में से 93 फीसदी का समर्थन मान के पक्ष में होने का आम आदमी पार्टी का दावा संदेह के घेरे में है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने इसे सीएम स्कैम करार देते हुए सुर्खियां से बातचीत में कहा, “ 24 घंटे लगातार एक फोन नंबर पर एक सेकंड में 10 से अधिक फोन कॉल से भगवंत मान के पक्ष में कथित 21 लाख पंजाबियों का समर्थन जुटाने का दावा करने वाली अाप ने अपने कथित सीएम के नाम पर स्कैम किया है। यह कैसा लोकतंत्र है जहां एक पार्टी चुनाव से पहले ही जनता पर एक ऐसा चेहरा थोप रही है जो शराब के नशे में खुद को भी नहीं संभाल पाता”। सार्वजनिक सभाओं से लेकर लोकसभा तक में शराब के नशे में जाने के आरोपों से घिरे भगवंत मान मुख्यमंत्री के तौर पर बाकी चेहरों के मुकाबले कितनी गंभीरता से ठहरते हैं यह सवाल बरकरार है।
पांच बार के मुख्यमंत्री रहे 94 वर्षीय प्रकाश सिंह बादल भले ही इस बार भी अपने पुराने हलके लम्बी से मैदान में हैं पर इस बार सीएम की रेस से खुद को बाहर रखने वाले बादल के शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष एंव मुख्यमंत्री चेहरे सुखबीर बादल को पार्टी के भीतर और बाहर जनता स्वीकार करती है या नहीं यह चुनाव नतीजों से साफ होगा। 2012 से 2017 तक भाजपा के साथ शिअद गठबंधन सरकार में बतौर उपमुख्यमंत्री रेत,ट्रांसपोर्ट,केबल और ड्रग्स माफिया को सरंक्षण और श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअबदी और केंद्र के तीन कृषि कानूनों को संसद में समर्थन के आरोपों से घिरे सुखबीर बादल की बतौर मुख्यमंत्री अगली पारी की राह अासान नहीं है। भले ही शिरोमणि अकाली दल ने कृषि कानूनों के विरोध एनडीए से नाता तोड़ लिया है पर किसानों में पार्टी के प्रति नाराजगी कम नहीं हुई है।
18 महीनें तक पंजाब से लेकर दिल्ली की सीमाओं पर डटे किसान कृषि कानून वापस लिए जाने की सफलता के बाद सियासी माेर्चा आजमा रहे हैं। पंजाब के 22 किसान संगठनों व हरियाणा के गुरनाम सिंह चढूनी की संयुक्त संघर्ष पार्टी के समर्थन से सयुंक्त समाज मोर्चा की सीएम चेहरे के तौर पर अगुवाई कर रहे बलबीर सिंह राजेवाल शिरोमणि अकाली दल के प्रकाश िसंह बादल और कांग्रेस के कैप्टन अमरिंदर सिंह के खेमे में रहे हैं। भले ही किसान संगठनों का मालवा की 65 सीटों पर प्रभाव है पर भारतीय किसान यूनियन उगरांह(एकता)जैसी पंजाब के सबसे बड़े व मजबूत किसान संगठन ने संयुक्त समाज मोर्चा को समर्थन न देने का एलान किया है। दूसरा संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा भी किसानों के आंदोलन से सयुंक्त समाज मोर्चा को बेदखल किया जाना इन 22 किसान संगठनों के लिए बड़ा झटका है। आंदोलन के पीछे राजनीतिक महत्वकांक्षी होने के आरोपों से घिरे राजेवाल के सामने परंपरांगत दलों के आगे सीएम चेहरों के आगे टिकना कड़ी चुनौतीभरा है।
किसान संगठनों के सीएम चेहरे पर सवाल उठाते हुए संयुक्त किसान मोर्चा के सदस्य डा.दर्शन पाल ने कहा, “सियासी मैदान में उतरे पंजाब के किसान संगठनों ने यह कदम उठाकर भविष्य के आंदोलन को कमजोर करने का काम किया है। किसानों के हकों की लड़ाई अभी बहुत लंबी है इसे सियासत से बाहर लड़कर अच्छे से लड़ा जा सकता है न कि सियासी दलों के प्रतिततद्धंदी बनकर”।
बेरोजगारी,नशा,धार्मिक ग्रंथाें की बेअदबी,कर्ज मुक्त किसानी जैसे अहम मुद्दों को हाशिए पर धकलने वाले तमाम दलों की अब मुख्यमंत्री चेहरों पर छिड़ी इस जंग में जट्ट सिखों पर दलित सिख सीएम उम्मीदवार कितना भारी पड़ेगा यह 10 मार्च को चुनावी नतीजों से साफ होगा।