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विवेक कुमार जैन
आगरा 17 फरवरी ।
वैदिक सूत्रम चेयरमैन एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि ब्रह्माण्ड की गोचरीय परवर्तित चाल में 13 फरवरी 2022 से लेकर 14 मार्च तक कर्क, कन्या एवम मीन राशि के व्यक्तियों को विशेष सावधानी बरतने की प्रबल आवश्यकता है, विशेकर स्वास्थ्य एवम मानसिक तनाव के मामले में क्योंकि 19 फरवरी 2022 से देवगुरू ब्रह्स्पति अस्त होने जा रहे हैं, इसलिए उपरोक्त राशियों के व्यक्तियों को उनके ही विश्वास पात्र व्यक्ति धोखा दे सकते हैं। क्योंकि गोचरीय परवर्तित चाल के दौरान 13 फरवरी 2022 से वर्तमान में उपरोक्त राशियों से दो महत्वपूर्ण ग्रह सूर्य और ब्रह्स्पति अशुभ भाव में रहेगें क्योंकि 20 नवम्बर 2021 से लेकर 13 अप्रैल 2022 तक देवगुरू ब्रह्स्पति उपरोक्त राशियों से गोचर में वर्तमान में पहले से ही अशुभ भाव में भृमण कर रहे हैं, इसलिए वर्तमान में 14 मार्च 2022 तक उपरोक्त राशियों के व्यक्तियों को स्वास्थ्य के मामले में विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है, क्योंकि 19 फरवरी 2022 से ब्रह्माण्ड के अति शुभ ग्रह और सभी प्रकार के शुभ कार्यों के कारक एवम सम्पादनकर्ता देवगुरू ब्रह्स्पति लगभग एक माह तक सूर्य और ब्रह्स्पति ग्रह की वर्तमान में 13 फरवरी से एक साथ युति होने के कारण वर्तमान में देवगुरू ब्रह्स्पति ग्रह का शुभ प्रभाव अस्त अवस्था में रहेगा। सूर्य के वर्तमान में कुंभ राशि में गोचर में विचरण के कारण ब्रह्स्पति देव ब्रह्माण्ड में पूरी तरह अस्त अवस्था में रहेंगे, क्योंकि सूर्य देव 14 मार्च 2022 तक कुंभ राशि में रहेंगे जब तक सूर्य देव कुंभ राशि में रहेगें तब ब्रह्स्पति अपना शुभ फल देने में सक्षम नहीं हो पाएंगे।
वैदिक सूत्रम रिसर्च संस्था की प्रबंधक वास्तुविद श्रीमती निधि शर्मा ने बताया कि वास्तु के अनुसार देवगुरू ब्रह्स्पति की दिशा ईशान अर्थात उत्तर-पूर्व है इसके देवता भगवान शंकर और ब्रह्माण्ड के अति शुभ ग्रह देवगुरू बृहस्पति हैं। वास्तु के अनुसार दसों दिशाओं में यह सर्वोत्तम दिशा मानी जाती है। यह ज्ञान (पूर्व) और समृद्धि; (उत्तर) का मेल है। इस ओर किसी भी निवास स्थान का द्वार होना सबसे अच्छा माना जाता है। क्योंकि इससे आने वाली वायु सारे घर को सकारात्मक दैवीय ऊर्जा से परिपूर्ण कर देती है। किसी भी निवास स्थान में पूजा स्थान इसी दिशा में होना चाहिए। जल-स्थान, बगीचा आदि इस दिशा के सुप्रभाव को बढ़ा देता है और घर में सुख-समृद्धि लाता है। कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि देवगुरु ब्रह्स्पति के शुभ प्रभाव को प्राप्त करने के लिए अपने निवास स्थान की इस दिशा को स्वच्छ रखना चाहिए इस दिशा में दूषित जल या सीवर टैंक नहीं होना चाहिए क्योंकि इससे सकारात्मक दैवीय ऊर्जा का आर्शीवाद निवास स्थान पर रहने वाले व्यक्तियों को प्राप्त नहीं होता है औऱ अकाल मृत्यु एवम असामान्य गम्भीर बीमारियों जैसी ह्रदय विदारक घटनाएं उस निवास स्थान पर होती रहती हैं और उस निवास स्थान का गृह स्वामी हमेशा संकटों से घिरा रहता है।