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एक मानव होने के नाते हम सब कहीं ना कहीं -कभी ना कभी अहम, द्वेष, अहंकार, दुश्मनी, वैमनस्य जैसे माननीय अवगुणों से चाहे-अनचाहे ग्रसित हो जाते है।जाने अनजाने में हमारे द्वारा किये गए अव्यवहारिक व्यवहार,कृत्यों,वचनों और गलतियों से आपके हृदय अथवा मन को कोई ठेस अथवा आघात पहुंचा हो तो हमें क्षमा करें।
विवेक कुमार जैन एवम
सम्पूर्ण परिवार ,आगरा
भगवान् महावीर द्वारा चलाया गया जैन धर्म अपने अहिंसा एवम शाकाहार के विचार के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता हैं।जैन समाज मुख्य रूप से दो पंथों में विभाजित है- श्वेतांबर एवम दिगंबर।श्वेतांबर समाज के गुरु सफेद वस्त्रों में होते है एवम दिगम्बर साधु निर्वस्त्र रहकर साधु व
जैन परम्परा में “पर्युषण महापर्व”विशुद्ध रूप से आध्यात्मिक पर्व हैं, जो हर वर्ष वर्षा ऋतू के समय आता हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार भादो मास में पड़ने वाला यह पर्व, जैन धर्म के अनुयाइयों के लिए आत्मा से परमात्मा तक पहुचने का पर्व होता है।इसका मुख्य उद्देश्य आत्मा के विकारों को दूर करने का होता है।
“पर्युषण” का अर्थ है परि यानी चारों ओर से, उषण यानी धर्म की आराधना।श्वेतांबर समाज के व्रत समाप्त होने के बाद दिगंबर समाज के व्रत प्रारंभ होते हैं।इस वर्ष 11 सितंबर मंगलवार को श्वेतांबर समाज का पर्युषण पर्व है।आज ही के दिन को “क्षमापना दिवस” के रूप में मनाते है ।
यह पर्व महावीर स्वामी के मूल सिद्धांत “अहिंसा परमो धर्म” एवम “जिओ और जीने दो” की राह पर चलना सिखाता है तथा मोक्ष प्राप्ति के द्वार खोलता है।
श्वेतांबर समाज 8 दिन तक पर्युषण पर्व मनाते हैं जबकि दिगंबर 10 दिन तक मनाते हैं जिसे वे ‘दसलक्षण’ कहते हैं। ये दसलक्षण हैं- क्षमा, मार्दव, आर्नव, सत्य, संयम, शौच, तप, त्याग, आकिंचन्य एवं ब्रह्मचर्य।
पर्युषण पर्व के समापन पर ‘विश्व-मैत्री दिवस’ अर्थात संवत्सरी पर्व मनाया जाता है। अंतिम दिन श्वेतांबर ”मिच्छामि दुक्कड़म्” एवम दिगंबर ”उत्तम क्षमा” कहते हुए लोगों से क्षमा मांगते हैं।
पर्युषण पर्व आत्म-मंथन का पर्व है, जिसमें यह संकल्प लिया जाता है, कि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जीवमात्र को कभी भी किसी प्रकार का कष्ट नहीं पहॅुचाएंगे व किसी से कोई बैर-भाव नहीं रखेंगे।
संसार के समस्त प्राणियों से जाने-अनजाने में की गई गलतियों के लिए क्षमा याचना कर सभी के लिए मंगल कामना की जाती है और खुद को प्रकृति के निकट ले जाने का प्रयास किया जाता है।