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विवेक कुमार जैन
आगरा 4 फरवरी।
वैदिक सूत्रम चेयरमैन एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने टैगोर नगर जैन मंदिर के सामने दयालबाग स्थित अपने निवास पर बसंत पंचमी पर्व के सन्दर्भ में बताते हुए कहा कि बसंत पंचमी या श्री पंचमी एक प्राचीन हिन्दू त्यौहार है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। यह पूजा पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर बांग्लादेश, नेपाल और कई राष्ट्रों में बड़े उल्लास से मनायी जाती है। इस दिन पीले वस्त्र धारण करने का अत्यधिक महत्व होता है। प्राचीन शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है, तो पुराणों-शास्त्रों तथा अनेक काव्य ग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग से इसका चित्रण देखने को मिलता है। प्राचीन भारत और नेपाल में पूरे वर्ष को जिन छह मौसमों में बाँटा जाता था उनमें बसंत सभी का सबसे मनचाहा मौसम था। जब फूलों पर बहार आ जाती, खेतों में सरसों का फूल सोने जैसा चमकने लगता है, जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं हैं, आमों के पेड़ों पर मांजर (बौर) आ जाता है और हर तरफ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं हैं। भर-भर भंवरे भंवराने लगते हैं।
एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि बसंत ऋतु का आगमन माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि अर्थात बसंत पंचमी के दिन से आरम्भ हो जाता है जो कि गुप्त नवरात्रि काल में ही पड़ती है, इस दिन एक बड़ा जश्न प्राचीन काल से मनाया जाता रहा है। जिसमें श्री हरि विष्णु और कामदेव की पूजा भी होती है, इसलिए बसंत पंचमी के त्यौहार की मान्यता पौराणिक काल से चली आ रही है।
वैदिक सूत्रम चेयरमैन पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि पौराणिक काल से बसंत पंचमी की मान्यताओं के अनुसार सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्माजी ने मनुष्य योनि की रचना की, परंतु वह अपनी सरंचना से संतुष्ट नहीं थे, तब उन्होंने विष्णु जी से आज्ञा लेकर अपने कमंडल से जल को पृथ्वी पर छिड़क दिया, जिससे पृथ्वी पर कंपन होने लगा और एक अद्भुत शक्ति के रूप में चतुर्भुजी सुंदर स्त्री प्रकट हुई। जिनके एक हाथ में वीणा एवं दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। वहीं अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। जब इस देवी ने वीणा का मधुर नाद किया तो संसार के समस्त जीव-जंतुओं को वाणी प्राप्त हो गई, तब ब्रह्माजी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणा वादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण वह संगीत की देवी भी हैं। बसंत पंचमी के दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं।
वैदिक सूत्रम चेयरमैन एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने बसंत पंचमी के दिन कामदेव की पूजा क्यों की जाती है? इस सन्दर्भ में गहराई से बताते हुए कहा कि पौराणिक कथाओं के अनुसार कामदेव भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी के पुत्र हैं द्वापरयुग में उन्होंने श्री कृष्ण एवम देवी रुक्मिणी के पुत्र के रूप में जन्म लिया था, जिनका विवाह रति के साथ हुआ था। वैदिक भारतीय हिन्दू धर्म ग्रंथो के अनुसार कामदेव प्रेम व सौन्दर्य के देवता हैं तथा उनकी पत्नी का नाम रति है। प्रेम के देवता अर्थात रति के पति कामदेव ने साधना में लीन शिव पर प्रेम का तीर चलाया, क्रोधित शिव ने त्रिनेत्र खोल दिया, फलस्वरूप कामदेव वहीं भस्म हो गए। अभिप्राय यह कि जीवन में काम आवश्यक अवश्य है परंतु इतना नहीं कि इसका प्रयोग कहीं भी, किसी पर भी किया जा सके। इसलिए संयमित जीवन भी अति आवश्यक होता है। कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि इस भौतिक मायावी संसार में स्त्री-पुरुष के बीच आपसी प्रेम, सौंदर्य और काम भावना के प्रति आकर्षण के लिए वैदिक हिन्दू शास्त्रों में कामदेव को याद किया जाता है। कामदेव को लेकर हमारे धार्मिक ग्रंथों में कई मान्यताएं हैं और इनके संबंध भगवान शिव, ब्रह्मा, गंधर्व के अतिरिक्त प्रेम व आकर्षण की देवी रति के साथ बताए गए हैं। कामदेव से जुड़ी कई पौराणिक गाथाएं भी मशहूर हैं, तो इनकी आराधना स्त्री-सम्मोहन या वशीकरण के लिए श्रेष्ठ बताया गया है, तो इसके लिए खास मंत्र जाप की महत्ता बताई गई है।
कौन हैं कामदेव?
वैदिक सूत्रम चेयरमैन एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि वैदिक हिन्दू शास्त्रों में अथर्ववेद के अनुसार ‘काम’ का अर्थ कामेच्छा या आकर्षण से है तो ‘देव’ का अर्थ विशिष्ट शख्सियत से होता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार कामदेव भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी के पुत्र हैं, जिनका विवाह रति के साथ हुआ। रति को सौंदर्य, सम्मोहन और प्रेम की देवी कहा गया है। कामदेव को ही अर्धदेव या गंधर्व भी कहा गया है, जिन्हें स्वर्गलोक के वासियों में कामेच्छा जगाने का उत्तरदायित्व सौंपा गया था।
एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि वैदिक हिन्दू शास्त्रों में शिव महापुराण की एक कथा के अनुसार भगवान शिव की पत्नी सती ने अपने पिता के द्वारा पति के अपमानित होने पर यज्ञ की अग्नि में आत्मदाह कर लिया था। सती की मृत्यु के बाद भगवान शिव काफी आहत और विचलित होने के बाद सभी तरह के बंधनों और रिश्ते-नाते को उन्होंने तोड लिया था। तमाम सांसारिक मोह-माया को त्यागकर तप में लीन हो गए थे। उनके इस तप को सभी देवताओं के आग्रह पर कामदेव ने ही अपने तीर से भंग किया था और उनमें देवी पार्वती के प्रति वशीकरण की भावना विकसित की थी।
पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि वैदिक हिन्दू शास्त्रों में कामदेव का संबंध भले ही प्रेम और कामेच्छा से हो, लेकिन जीवन में इनकी सकारात्मक भूमिका को नजरंदाज नहीं किया जा सकता है। कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि कामदेव व्यक्ति को न केवल ऊर्जान्वित करने वाले देव हैं, बल्कि इनकी उपयोगिता और उपस्थिति संबंध के तकाजे पर सम्मोहन को भी परिभाषित करता है। पश्चिमी देशों में क्यूपिड और यूनानी देशों में इरोस के नाम से प्रेम का प्रतीक माने गए कामदेव ही हैं, जिन्हें वैदिक हिन्दू ग्रंथों में प्रेम और सम्मोहन के देवता की संज्ञा दी गई है।
एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि वैदिक हिन्दू शास्त्रों में सुंदर तोते जैसा दिखने वाले पक्षी के सुनहले पंखों पर सवारी करने वाले कामदेव सुदर्शन युवक की तरह दिखते हैं, जो अपनी हाथों में मोहक और मादक सुगंधों वाले फूलों के वाण लिए होते हैं। उनके इसी स्वरूप के अनुसार उनमें विपरीत लिंग के व्यक्ति को आकर्षित करने की अद्भुत क्षमता होती है। प्रेम को या फिर परिणय के उपरांत बनने वाले नए संबंध में मधुरता लानी हो, कामदेव की उपासना को महत्वपूर्ण माना गया है। यह तंत्र-मंत्र विज्ञान से संभव हो पाता है।
एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि कामदेव गायत्री मंत्र का प्रतिदिन 108 बार स्फटिक की माला से जाप करने वाले व्यक्ति के चेहरे में एक दिव्य प्रकाश हमेशा दिखता रहता है एवं इसके साथ ही एक प्रबल आकर्षण उसके चेहरे पर हमेशा बना रहता है एवं उसको देखने वाला हर व्यक्ति उस पर मोहित हो जाता है। नीचे दिए हुए कामदेव गायत्री मंत्र के जाप को बसंत पंचमी या किसी भी शुक्रवार से आरम्भ किया जा सकता है।
ॐ क्लीं कामदेवाय विदमहे पुष्प बाणाय धीमहि तन्नो अनंग प्रचोदयात !!