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महगाई की मार के साथ आम उपभोगताओं की मानसिकता में भी अब तेजी से बदलाव देखने को मिला है। बाजार के बदलते हालातों ने अब ब्रांडेड के स्थान पर आम उत्पादों एवं स्थानीय ब्रांड्स को प्राथमिकता देना शुरू कर दिया है साथ ही अनावश्यक खर्चों में कटौती देखने को मिल रही है।
एक्सिस माय इंडिया के हाल ही में कराये गए सर्वे कंजूमर इंडिकेट्स सर्वे मुताबिक यह तथ्य उभर कर सामने आये हैं , उपभोक्ताओं में यह बदलाव बढ़ती महगाई का फलस्वरूप आयी है और उपभोक्ता मजबूरी में इस तरह से जीने पर मजबूर हुआ है , इसकी शुरुवात कोरोना काल से हो गयी थी , इसका प्रमुख कारण कोरोना में हुई आमदनी की कमी से जोड़ा जा सकता है।
अब उपभोक्ता खरीदारी से पहले कई बार सामान खरीदने से पहले उसकी कीमत और सामान को परखता है, स्थितियां ऐसे बन रही हैं की आम नागरिक महंगे लक्जीरियस सामान को खरीदने से बचता दिखाई पड़ रहा है , बाजार की माने तो इस बार भयंकर गर्मी के बावजूद ऐसी एवं अन्य इलेक्ट्रिक उत्पादों की खरीदारी में 25% की गिरावट देखी गयी है।
संपन्न उपभोक्ता भी अब महंगे मोबाइल फ़ोन्स को खरीदने से या तो बच रहे हैं अथवा सामान्य ब्रांड से ही अपना काम चला रहे हैं , यही नहीं अब खाने पीने की वस्तुओं में भी अब नामी गिरामी ब्रांड के स्थान पर लोकल ब्रांड का दबदबा होने लगा है।
बढ़ती कीमतों और कोरोना काल के कारण अभी तक बाज़ार उबर नहीं पाया था की रूस और यूक्रेन के युद्ध ने कोढ़ में खाज का कार्य कर दिया।
पर्यावरण असंतुलन के चलते तेज गर्मी और आपदा से देश जूझ रहा है तो आतंवादी घटनाओं और हिंसक घटनाओं से भी दो चार होना पड़ा है , जिसका दुष्प्रभाव बाजार पर भीं पड़ा हैं।
दुनियां के अन्य देशों के राजनितिक अस्थिरता के कारण हालात बद से बत्तर हो रहें हैं , दुनिया के अन्य देशों के सामने खाद्यान क भीषण संकट खड़ा हो गया है और पेट्रोलिम के बढ़ती कीमतों ने आम जनजीवन को बुरी तरह से प्रभावित किया है। केंद्र और राज्य सरकारों के लाखों प्रयास के बावजूद महगाई कंट्रोल में नहीं आ पा रही है।
रूस यूक्रेन से लग हटकर देखें तो दुनियां के अन्य शक्तिशाली राष्ट्र जैसे इजरायल ,अमेरिका, इंग्लैंड के हालत भी कुछ अच्छे नहीं दिख रहे हैं है , श्रीलंका की हालत सबके सामने आ चुकी है , श्रीलंका की तरह ही पाकिस्तान और अफगानिस्तान की हालत बहुत जल्द सामने आ जाएगी। ऐसे में आर्थिक हालात के सामान्य होने की बात एक सपने जैसी लगती है, यदि पेट्रोल डीजल की कीमतों का विश्लेषण किया जाये तो हम पाएंगे कि इनके बढ़ते दाम का असर पुरे बाज़ार पर दिखाई पड़ता हैं क्योंकि इसका प्रभाव परिवहन पर पड़ता है और वस्तुएं महंगी हो जाती हैं। यह कोई अकेला कारण नहीं परन्तु इसका अपना एक महत्त्वपूर्ण असर देखा जा सकता है। देखा जाय तो महगाई बढ़ते जाने से उपभोक्ता मांग बढ़ने की बात करना बेमानी ही होगा।
लोगो की आय सीमित हो गयी है , कोरोना काल का असर यह रहा है कि लोगों की नौकरी छूटी ही या नौकरी बचाने के लिए कई समझौते करने पड़ें हैं जैसे नियोक्ता ने लोगो की सैलेरी या तो कम कर दी है अथवा पिछले दो वर्षों में कोई बढ़ोत्तरी नहीं की गयी है है।
नौकरी के चलते कार्मिकों को भी बहुत कुछ सहन करना पड़ रहा है , कोरोना लगभग अब खत्म सा हतो हो रहा है लेकिन कई क्षेत्र जैसे पर्यटन उद्योग , होटल उद्योग को सामान्य होने में एक लम्बा समय लग सकता है जोकि एक चिंता का विषय है।
दूसरी तरफ कृषि मूल्यों में वृद्धि के साथ न्यूनतम समर्थन मूल्यों की वृद्धि से खाद्यान की कीमत आसमान छु रही है , चीन के कारन भी दुनियां की आर्थिक गतिवधियां बुरी तरह से प्रभावित हुईं है और यह कब सामन्य होंगी इसका कोई अनुमान अभी नहीं लगाया जा सकता है , कोरोना के बाद चीन एक खलनायक की तरह से उबरा है और वही चीन अब भी कोरोना की मार से जूझ रहा है। दुनियां के लोग चीन से बेहद नाराज है जिसकी वजह से कोरोना ने पूरी दुनियां को अपने आगोश में ले लिया था।
उपभोक्ता का अपना एक मिजाज होता है जो समय समय पर बदलता रहता है , बाज़ार के हालिया हालतों से यह साफ़ हो जाता है। भारतीय बाजार की बात करें तो 6 महीने में अपने स्मार्ट फोन को बदलने वाला उपभोक्ता अब 12 महीनों में भी अपना फ़ोन बदलने से बच रहा है , बेहतहाशा गर्मी के बावजूद AC का बाज़ार नहीं उठ पाया जैसा की अनुमान लगाया जा रहा था।
असल में सरकार की लाख योजनाओं के बावजूद आम लोगों की स्वास्थ्य खर्च की चिंता बढ़ी है , कोरोना के बाद लोग अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हुए हैं , मेडिकल इंसोरेंस और जीवन बीमा की तरफ लोगों का रुझान बढ़ा है।
देखा जाय तो लोगों ने पेट्रोल डीजल के दामों से समझौता कर लिया है या तो अपने दिन प्रतिदिन के खर्चों में कमी करके उसको संतुलित करने की कोशिश की है , यह कदम की देश की अर्थव्यवस्था में कितना कारगर साबित होगा यह तो आने वाले कुछ वर्षों में ही पता चलेगा।
ऐसे में सवाल महँगाई पर अंकुश लगाने का हो जाता है , बढ़ते मूल्यों पर रोक और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती है और इस चुनौती का हल निकाल कर लोगों को राहत देना ही सरकार की प्रथमिकता होनी चाहिए। महँगाई के बढ़ने के कारणों पर लगाम लगाकर ही सरकार अर्थव्यवस्था को सामान्य कर सकती है जिससे बाज़ार में मांग और आपूर्ति को व्यवस्थित किया जा सकता है