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Tranding

मैं बोलूँगा तो बोलोगे कि बोलता है

क्या पूरे विश्व के मानवजाति का धर्म एक होना चाहिए

shaherkisurkhiyan@gmail.com by shaherkisurkhiyan@gmail.com
January 21, 2023
in ओपिनियन
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संकुचित महत्वाकांक्षाओं की उपज है- I.N.D.I.A

दुनिया में जितने इंसान पैदा होते हैं उनकी दैहिक संरचना एक सी होती है केवल भौगोलिक स्थिति के अनुसार उनके रंग या कद काठी में थोड़ा बहुत अंतर जरूर होता है।खान पान भी लगभग समान होता है केवल उनके बनाये जाने वाले तरीके अलग अलग होते हैं इसलिए स्वाद में थोड़ा बहुत अंतर जरूर होता है।कपड़े पहनने का अंदाज एवम सलीका भी लगभग समान होता है आज के मौजूदा हालात में।मनुष्य के मरने जीने की पद्धति भी समान होती है।दुनिया का हर इंसान अपने माँ की कोख से पैदा होता है।और शरीर के क्षय होने पर उसकी मृत्यु हो जाती है।मनुष्य की आयु भी कमोबेश पूरे विश्व में एक ही रहता है।जब इंसानों के सभी चीजें लगभग समान होती हैं तो धर्म अलग अलग क्यूँ होता है।और इसमें भी कोई रॉकेट साइंस नही है।क्योंकि जिस हिस्से में जो भी इंसान धर्म का प्रतिपादक रहा या जिस इंसान को जो समझ में आया उसके हिसाब से उसने धर्म की परिभाषा प्रतिपादित कर दी और बाकी लोग केवल उसका अनुसरण आँख मूँदकर करने लगे।धर्म कभी भी आसमान से नही टपका बल्कि धरती पर रहने वाले इंसानों के अपनी समझ बूझ से ही उत्पन्न हुआ।दरअसल धर्म और ईश्वर को एक कल्पना के आधार पर प्रतिपादित किया गया।ईश्वर के स्वरूप को हर धर्म के मानने वाले अपने अपने तरीके से परिभाषित किया।हिन्दू धर्म के मानने वाले अपने धर्म को सनातन मानते हैं यानि जबसे पृथ्वी पर इंसान का स्तित्व आया उनका धर्म उस समय से ही है।अब यहाँ सवाल उठना लाजमी है कि इंसान अपनी आज की स्थिति में आने के पूर्व कई खंड कालों से गुजरा है।आदि पाषाण युग या पाषाण युग में तो इंसान जानवरों की तरह रहता था उस समय कोई सभ्य समाज तो था नहीं तो वहाँ धार्मिक क्रियाकलापों की गुंजाइश कहाँ बनती थी।हिन्दू धर्म में आप मोटा मोटी वैदिक काल से धर्म के मौजूदा स्वरूप को स्तित्व में आने की खंड काल निर्धारित सामझ सकते हैं।वैसे रामायण एवं महाभारत काल का कोई वैज्ञानिक सत्यापन की गुंजाइश हो तो वैदिक काल से पूर्व भी हिन्दू धर्म के स्तित्व में रहने की संभावना व्यक्त की जा सकती है।ईसाई धर्म में तो ये स्पष्ट है कि उनका धर्म पहले जो भी रहा हो लेकिन ईशा मसीह के बाद उनके लिए ईशा मसीह ही ईश्वर के अवतार थे और उनकी ही आराधना उसके बाद ईसाई धर्म के अनुयायी करने लगे।उसी तरह।मोहम्मद पैगम्बर के पहले इस्लाम धर्म का कहीं कोई स्तित्व नही था लेकिन मोहम्मद पैगम्बर ने उस समय के अराजक परिस्थितियों से वहाँ के लोगों को निकालने के लिए एक धर्म की स्थापना की जो उस समय की स्थितियों के अनुकूल थी और लोगों ने उसे हाथों हाथ स्वीकार किया और उसे पूरे विश्व में फैलाने का कार्य किया।।मोहम्मद पैगम्बर के दौर में ही भारत में जैन और बौद्ध धर्म का प्रादुर्भाव हुआ।सभी धर्मों की बुनियादी बातें समान थी और उसका उद्देश्य मानव जाति का कल्याण था।हर धर्म की अपनी खूबियाँ थीं।वरना हर धर्म के मानने वालों की इतनी तादाद कहाँ से होतीं।आज सभी धर्म के मानने वाले खुशी से रह रहे हैं ऐसा नहीं है कि ईसाई धर्म के मानने वाले इस्लाम धर्म के मानने वाले से कम तरक्की कर रहे हैं।या हिन्दू धर्म के मानने वाले बौद्ध धर्म के मानने वाले से कम तरक्की कर रहे हैं।दरअसल पृथ्वी पर रहने वाले हर प्राणियों के जीवन में हमेशा अनिश्चितता बनी रहती है।पृथ्वी पर जन्म लेने के बाद उसकी मृत्यु कब होगी ये हमेशा अनिश्चित रहता है।और संसार के भौतिक सुखों का भी आपको कब और कितना हिस्सा मिलेगा वह भी निश्चित नही रहता है।मानव शरीर है तो उसमें रोग व्याधि होती ही रहेगी।अब हम इन सब चीजों को तथाकथित ईश्वर से जोड़कर देखने लगते हैं।दरअसल इंसानों को कोई भी ऐसी चीज जिससे उनको कोई लाभ मिले उसे वे चमत्कार समझने लगते हैं और उसकी अंध श्रद्धा से पूजा करने लगते हैं।मनुष्य अपने जन्म से कुछ चीजें स्वतः पा लेता है और दूसरा वह अपनी बौद्धिक एवम शारारिक क्षमता से पाने लग जाता है।अगर एक बच्चा अम्बानी के यहाँ जन्म लेगा तो स्वाभाविक तौर पर कुछ सुख की चीजें स्वतः मिल जाएगी और अगर वही बच्चा किसी गरीब के घर जन्म लेगा तो उसे जन्म लेते ही संघर्ष का सामना करना पड़ सकता है।उसी तरह भौगोलिक स्थिति का है।अफ़्रीका में पैदा लेने वाले बच्चों को एक अलग वातावरण में रहना होगा और यूरोप में पैदा लेने वाले बच्चों को एक अलग वातावरण में।अब इन सारी परिस्थितियों में ईश्वर के हस्तक्षेप की गुंजाइश कहाँ बनती है।ये समझ लेना कि ईश्वर ऊपर कहीं बैठकर ये निर्धारित करता है केवल अंधविश्वास है।जबतक हम ये नही समझेंगें कि पृथ्वी पर होने वाली घटनाओं को केवल और केवल पृथ्वी पर रहने वाले तत्व ही निर्धारित करते हैं तबतक हम केवल अज्ञानतावश किसी काल्पनिक ईश्वरीय शक्ति को ही इन सब का कारक समझेंगें।ईश्वर कहीं भी आसमान या शून्य में विराजमान नही है और ना वह कहीं बैठकर इस इस सृष्टि को चला रहा है अपितु ये सारा संसार अपने खुद के भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार चल रही है।लेकिन फिर भी पृथ्वी पर आने के बाद उस जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए किसी भी एक सामाजिक मर्यादा का पालन करना जरूरी है जिसे हम धर्म की संज्ञा जरूर दे सकते हैं।और हर इंसान को किसी ना किसी धर्म का पालन अवश्य करना चाहिए।लेकिन क्या आज के आधुनिक युग में जब सभी लोग शिक्षित होते जा रहे हैं हम धर्म के कट्टरपंथी सोच को बढ़ावा दे सकते हैं ,कदापि नहीं।आज हमें धर्म के सच्चे अर्थ को समझना होगा।धर्म का उद्देश्य केवल मानव में आपसी भाईचारा कायम करना है।और मानव जाति ही नही बल्कि सृष्टि के हरेक प्राणी के लिए सुखद वातावरण तैयार करना है।सभी को ये समझना होगा कि आपका स्तित्व धरती पर आपके दैहिक स्तित्व तक ही सीमित है आपके देहावसान के बाद आपका वजूद इस सृष्टि से खत्म हो जाता है।ये स्वर्ग नर्क की परिकल्पना कोरी बकवास के अलावा कुछ भी नही है।सभी धर्मों में मनुष्य के मृत्यु के बाद की जो स्थिति बताई जाती है उसका ना कोई प्रमाण है और ना कोई वास्तविकता।ये सब मनगढंत बातें हैं जो लोगों को गुमराह करती है।एक विशेष धर्म के लोग आतंकवाद के नाम पर अपनी जान इसलिए गंवा दे रहे हैं कि उनको उनके धर्म के नाम पर मरने के बाद जन्नत नशीब होगा।बल्कि हकीकत में ऐसा कुछ भी नहीं है।ये निहायत भोले भाले लोग होते हैं जिनको कुछ भी समझ नही होती है वरना ये उन लोगों से पूछते कि अगर कहीं जन्नत है तो वे ख़ुद अपनी जान क्यूँ नही दे देते।आज इन सब पर रोक लगनी चाहिए।आज पूरे विश्व की आवश्यकता है कि हम सभी धर्मों के अच्छे पहलुओं को जोड़कर एक सर्वमान्य धर्म की स्थापना करें जिसे पूरा विश्व अपनाए और धर्म के मामले में पूरा विश्व एक छतरी के नीचे एकत्रित हों।अपनी अपनी ढपली अपनी अपनी राग से कुछ भी हासिल नही होने वाला है।आज पूरे विश्व को शांति की आवश्यकता है।आतंकवाद के चलते रोज ना जाने कितने बेगुनाह लोगों की जान जा रही है।कहीं से भी कोई मसीहा प्रगट नही हो पा रहा है जो लोगों से इस आतंकवाद से मुक्ति दिला सके। एक विशेष धर्म के लोग जाने अनजाने केवल नफरत फैलाने का कार्य कर रहे हैं।जिस दिन से लोग ये समझना छोड़ देंगें कि मेरा धर्म ही सर्वश्रेष्ठ है उस रोज से धर्म के आधार पर नफ़रत में कमी स्वतः आ जायेगी।अपने धर्म को श्रेष्ठ मानना और दूसरे धर्म को कमतर आँकना ही समस्या का मूल कारण है।हमें आज जरूरत है कि सभी धर्मों को श्रेष्ठ मानते हुए उसके अच्छे पहलुओं को अपनाएं और ये सभी धर्मों पर लागू होता है।मौजूदा कोई धर्म ऐसा नहीं है जिसमें कोई एक अच्छी बात नही हो।बस आज जरूरत है सभी धर्म के मानने वालों को1एक प्लेटफार्म पर आने की जहाँ सभी धर्मावलंबी मिल बैठकर एक नई धर्म की स्थापना करें जहाँ धर्म के नाम पर ही हिंसा की कोई गुंजाइश नही बचे।पूरा विश्व अमन चैन से रह सके।धर्म से बड़ा कोई ऐसा संगठन नही हो सकता जो विश्व में शांति स्थापित कर सके।हमें आज उस दिशा में सोचना होगा।
द्वारा डॉ संजय श्रीवास्तव महू 7000586652

 

लेखक के विचार निजी है
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Tags: #opinion
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