Getting your Trinity Audio player ready...
|
विवेक कुमार जैन
वृंदावन:28 फरवरी।वैदिक सूत्रम चेयरमैन विश्वविख्यात ख्याति प्राप्त एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने 6 बुर्जा केशव नगर स्थित अपने निवास पर महाशिवरात्रि पर्व के सन्दर्भ में बताते हुए कहा कि शिवभक्तों का सबसे बड़ा त्यौहार महाशिवरात्रि माना जाता है। इस त्यौहार का भक्तगण पूरे साल इंतजार करते हैं और महाशिवरात्रि के दिन सुबह से ही शिव मंदिरों में जुटने लगते हैं। इस बार 01 मार्च 2022 को मंगलवार को युद्ध के देवता मंगल के ही दिन और मंगल के ही घनिष्ठा नक्षत्र में यह महापर्व पड़ रहा है, जो कि भक्तों के लिए महासिद्ध-दायक और पापियों के लिए महा-विनाशक भी है। ऐसा योग आध्यात्मिकता दृष्टिकोण से पृथ्वी पर पापियों के संहार के लिए महा-प्रलय भी मचाता है। वैसे भी वर्तमान में 24 फरवरी 2022 से सम्पूर्ण संसार में तृतीय विश्व युद्ध का खतरा पूरी तरह अब मंडराता हुआ दिखाई दे रहा है जो कि पूरी तरह दुनिया में महा-तबाही मचा सकता है, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। पौराणिक शास्त्रों में भी इस तरह की महाप्रलय का उल्लेख पहले से ही दिया गया है। जिसे हम सभी वर्तमान में 24 फरवरी 2022 से आरम्भ हुए रूस-यूक्रेन युद्ध से तृतीय विश्व के वर्तमान के खतरे के रूप में सम्पूर्ण विश्व में वर्तमान की विपरीत परिस्थितियों में हलचल होती हुई देख सकते हैं।
एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि महाशिवरात्रि का वास्तविक अर्थ है अंधकार में प्रकाश की सम्भावना जिस तरह भोलेनाथ प्राणी मात्र के कल्याण के लिए जहर पीकर देव से महादेव बन गए उसी प्रकार हमें भी समाज में व्याप्त निंदा, अपयश, उपेक्षा,और आलोचना रुपी जहर को पीकर मानव से महामानव बनना होगा ।
पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि वैदिक पौराणिक ग्रन्थों में भगवान् शिव का एक नाम आशुतोष भी है जल धारा चढ़ाने मात्र से प्रसन्न होने वाले आशुतोष भगवान् शिव का यही सन्देश है कि आपको अपने जीवन में जो कुछ भी और जितना भी प्राप्त होता है उसी में प्रसन्न और सन्तुष्ट रहना सीखें। इसलिए इस महापर्व को सार्थक बनाते हुए भगवान् शिव के चरणों में प्रणाम करते हुए अपनी बुराइयों को दूर करने का व्रत हम सब इस दिव्य पर्व पर लें।
वैदिक सूत्रम चेयरमैन पंडित प्रमोद गौतम वृन्दावन स्थित प्राचीन गोपेश्वर महादेव मंदिर के सन्दर्भ में बताते हुए कहा कि इस प्राचीन शिव मन्दिर की बहुत मान्यता है। कहा जाता है कि जब शंकर जी की इच्छा भगवान की रासलीला देखने की हुए तो वे गोपी का रूप धारण कर वृन्दावन आये उसी स्मृति में यह शिव मन्दिर बना है। ऐसे ही समय-समय पर भगवान शंकर ने विभिन्न रूप धारण कर अपने प्रिय आराध्य की लीलाओं का दिग्दर्शन किया। भगवान शंकर का वृंदावन में विचित्र रूप में दर्शन होता है। भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन में वंशीवट पर महारास किया था, श्रीकृष्ण के रास को देखने के लिए भगवान शंकर को गोपी बनना पड़ा। वृंदावन नित्य है, रास नित्य है, आज भी रास होता है, श्रीगोपेश्वर महादेव नित्य हैं, रास देख रहे हैं।
एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने वृन्दावन स्थित गोपेश्वर महादेव के रहस्यमयी तथ्यों के सन्दर्भ में गहराई से बताते हुए कहा कि एक बार शरद पूर्णिमा की शरत-उज्ज्वल चाँदनी में वंशीवट यमुना के किनारे श्याम सुंदर साक्षात मन्मथ-नाथ की वंशी बज उठी। श्रीकृष्ण ने छ: मास की एक रात्रि करके मन्मथ का मानमर्दन करने के लिए महारास किया था। मनमोहन की मीठी मुरली ने कैलाश पर विराजमान भगवान श्री शंकर को मोह लिया, समाधि भंग हो गयी। बाबा वृंदावन की ओर बावरे होकर चल पड़े। पार्वती जी भी मनाकर हार गयीं, किंतु त्रिपुरारि माने नहीं। भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त श्री आसुरि मुनि, पार्वती जी, नन्दी, श्रीगणेश, श्रीकार्तिकेय के साथ भगवान शंकर वृंदावन के वंशीवट पर आ गये। वंशीवट जहाँ महारास हो रहा था, वहाँ गोलोकवासिनी गोपियाँ द्वार पर खड़ी हुई थीं। पार्वती जी तो महारास में अंदर प्रवेश कर गयीं, किंतु द्वारपालिकाओं ने श्रीमहादेवजी और श्रीआसुरि मुनि को अंदर जाने से रोक दिया, बोलीं, “श्रेष्ठ जनों” श्रीकृष्ण के अतिरिक्त अन्य कोई पुरुष इस एकांत महारास में प्रवेश नहीं कर सकता।
श्री शिवजी बोले, “देवियों! हमें भी श्रीराधा-कृष्ण के दर्शनों की लालसा है, अत: आप ही लोग कोई उपाय बतलाइये, जिससे कि हम महाराज के दर्शन पा सकें?” ललिता नामक सखी बोली, यदि आप महारास देखना चाहते हैं तो गोपी बन जाइए। मानसरोवर में स्नान कर गोपी का रूप धारण करके महारास में प्रवेश हुआ जा सकता है। फिर क्या था, भगवान शिव अर्धनारीश्वर से पूरे नारी-रूप बन गये। श्रीयमुना जी ने षोडश श्रृंगार कर दिया, तो बाबा भोलेनाथ गोपी रूप हो गये। प्रसन्न मन से वे गोपी-वेष में महारास में प्रवेश कर गये।
श्री शिवजी मोहिनी-वेष में मोहन की रासस्थली में गोपियों के मण्डल में मिलकर अतृप्त नेत्रों से विश्वमोहन की रूप-माधुरी का पान करने लगे। नटवर-वेषधारी, श्रीरासविहारी, रासेश्वरी, रसमयी श्रीराधाजी एवं गोपियों को नृत्य एवं रास करते हुए देख नटराज भोलेनाथ भी स्वयं ता-ता थैया कर नाच उठे। मोहन ने ऐसी मोहिनी वंशी बजायी कि सुधि-बुधि भूल गये भोलेनाथ। बनवारी से क्या कुछ छिपा है। मुस्कुरा उठे, पहचान लिया भोलेनाथ को। उन्होंने रासेश्वरी श्रीराधा व गोपियों को छोड़कर ब्रज-वनिताओं और लताओं के बीच में गोपी रूप धारी गौरीनाथ का हाथ पकड़ लिया और मन्द-मन्द मुस्कुराते हुए बड़े ही आदर-सत्कार से बोले, “आइये स्वागत है, महाराज गोपेश्वर। श्रीराधा आदि श्रीगोपीश्वर महादेव के मोहिनी गोपी के रूप को देखकर आश्चर्य में पड़ गयीं। तब श्रीकृष्ण ने कहा, “राधे, यह कोई गोपी नहीं है, ये तो साक्षात् भगवान शंकर हैं। हमारे महारास के दर्शन के लिए इन्होंने गोपी का रूप धारण किया है। तब श्रीराधा-कृष्ण ने हँसते हुए शिव जी से पूछा, “भगवन! आपने यह गोपी वेष क्यों बनाया? भगवान शंकर बोले, “प्रभो! आपकी यह दिव्य रसमयी प्रेमलीला-महारास देखने के लिए गोपी-रूप धारण किया है। इस पर प्रसन्न होकर श्री राधाजी ने श्री महादेव जी से वर माँगने को कहा तो श्री शिवजी ने यह वर माँगा “हम चाहते हैं कि यहाँ आप दोनों के चरण-कमलों में सदा ही हमारा वास हो। आप दोनों के चरण-कमलों के बिना हम कहीं अन्यत्र वास करना नहीं चाहते हैं।भगवान श्रीकृष्ण ने `तथास्तु’ कहकर कालिन्दी के निकट निकुंज के पास, वंशीवट के सम्मुख भगवान महादेवजी को `श्रीगोपेश्वर महादेव’ के नाम से स्थापित कर विराजमान कर दिया। श्रीराधा-कृष्ण और गोपी-गोपियों ने उनकी पूजा की और कहा कि ब्रज-वृंदावन की यात्रा तभी पूर्ण होगी, जब व्यक्ति आपके दर्शन कर लेगा। आपके दर्शन किये बिना यात्रा अधूरी रहेगी।
एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि भगवान शंकर वृंदावन में आज भी `गोपेश्वर महादेव’ के रूप में विराजमान हैं और भक्तों को अपने दिव्य गोपी-वेष में दर्शन दे रहे हैं। गर्भगृह के बाहर पार्वतीजी, श्रीगणेश, श्रीनन्दी विराजमान हैं। आज भी संध्या के समय भगवान का गोपीवेश में दिव्य श्रृंगार होता है।