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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने उदयपुर में प्रबुद्धजन गोष्ठी को किया संबोधित
उदयपुर, 19 सितम्बर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार ने अपने व्यक्तिगत स्वार्थ की आहुति देते हुए भारतवर्ष के लिए कार्य करने का मार्ग सहर्ष चुना। डॉ. हेडगेवार ने प्रारंभिक वर्षों में यह अनुभव किया कि स्वाधीनता मिलने के बाद भी पुनः हम पराधीन न हों, इस पर विचार करना होगा। संघ की स्थापना के मूल में यही चिंतन रहा।
यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने रविवार को उदयपुर के विद्या निकेतन सेक्टर-4 में आयोजित प्रबुद्धजन गोष्ठी में कही। उदयपुर के गणमान्य नागरिकों को संघ के उद्देश्य, विचार व कार्य पद्धति के विषय पर उद्बोधन देते हुए सरसंघचालक ने कहा कि व्यक्ति निर्माण का कार्य संघ का लक्ष्य है। व्यक्ति निर्माण से समाज निर्माण, समाज निर्माण से देश निर्माण संभव है। उन्होंने कहा कि जो स्वयंसेवक अन्यान्य क्षेत्र में स्वायत्त रूप से कार्य कर रहे हैं, मात्र उन्हें देख कर ही संघ के प्रति किसी तरह की धारणा नहीं बनाई जा सकती। संघ विश्व बंधुत्व की भावना से कार्य करता है। संघ के लिए समस्त विश्व अपना है।
उन्होंने कहा कि संघ को नाम कमाने की लालसा नहीं है। क्रेडिट, लोकप्रियता संघ को नहीं चाहिए। 80 के दशक तक हिंदू शब्द से भी सार्वजनिक परहेज किया जाता था, संघ ने इस विपरीत परिस्थिति में भी कार्य किया। प्रारंभिककाल की साधनहीनता के बावजूद संघ आज विश्व के सबसे बड़े संगठन के स्वरूप में है। संघ प्रमाणिक रूप से कार्य करने वाले विश्वसनीय, कथनी करनी में अंतर न रखने वाले समाज के विश्वासपात्र लोगों का संगठन है। सभी हिंदू हमारे बंधु हैं, यही संघ है। संघ की शाखा, संघ के स्वयंसेवक यही संघ है। समाज में सकारात्मक सेवा कार्य स्वयंसेवक स्वायत्त रूप से करते हैं।
सरसंघचालक डॉ. भागवत ने संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार को उद्धृत करते हुए कहा कि वे कहते थे, हिंदू समाज का संगठन भारत की समस्त समस्याओं का समाधान कर सकता है। हम सभी भारत माता की संतान हैं, हिंदू अर्थात सनातन संस्कृति को मानने वाले हैं। सनातन संस्कृति के संस्कार विश्व को आलोकित कर सकते हैं। हिंदू की विचारधारा ही शांति और सत्य की है। हम हिंदू नहीं है, ऐसा एक अभियान देश व समाज को कमजोर करने के उद्देश्य से किया जा रहा है। जहां जहां विभिन्न कारणों से हिंदू जनसंख्या कम हुई है, वहां समस्याएं उत्पन हुई हैं, इसलिए हिंदू संगठन सर्वव्यापी बन कर विश्व कल्याण की ही बात करेगा। उन्होंने कहा कि हिंदू राष्ट्र के परम वैभव में विश्व का ही कल्याण होगा।
हिन्दुत्व को सरल शब्दों में समझाते हुए डॉ. भागवत ने कहा कि संघ के स्वयंसेवकों द्वारा कोरोनाकाल में किया गया निस्वार्थ सेवा कार्य ही हिन्दुत्व है। इसमें सर्वकल्याण का भाव निहित है। उन्होंने कहा कि संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार ने अनुभव किया था कि दिखने में जो भारत की विविधता है उसके मूल में एकता का एक भाव है, युगों से इस पुण्य भूमि पर रहने वाले पूर्वजों के वंशज हम सभी हिंदू हैं, यही भाव हिंदुत्व है।
इससे पूर्व, सरसंघचालक डॉ. भागवत, राजस्थान क्षेत्र के क्षेत्रीय संघचालक रमेशचंद अग्रवाल व महानगर संघचालक गोविन्द अग्रवाल द्वारा भारत माता की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलन के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई। कार्यक्रम में अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख स्वांत रंजन, अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य हस्तीमल व वरिष्ठ प्रचारक गुणवंत सिंह कोठारी भी उपस्थित थे। कार्यक्रम का समापन वंदे मातरम गायन के साथ हुआ।
– उद्बोधन के पश्चात जिज्ञासा सत्र में सरसंघचालक डॉ. भागवत ने कई प्रश्नों पर मागदर्शन प्रदान किया। मीडिया में संघ की छवि के बारे में प्रश्न पर उन्होंने कहा कि प्रचार हमारा उद्देश्य नहीं रहा, प्रसिद्धि नहीं, अहंकार रहित, स्वार्थ रहित, संस्कारित स्वयंसेवक और कार्य प्राथमिक उद्देश्य है। प्रचार के क्षेत्र में इसीलिए देरी से आना हुआ। कार्य करने का ढिंढोरा संघ नहीं पीटता। कार्य होगा तो बिना कहे भी प्रचार हो जाएगा। संघ अनावश्यक प्रचार की स्पर्धा में शामिल नहीं है। फिर भी प्रचार विभाग आगे बढ़ रहा है और धीरे-धीरे गति प्राप्त कर रहा है। समाज में कार्यों के कारण ही संघ का अपने आप स्थान बन गया है। उन्होंने ‘अ संघी हू नेवर वेंट टू शाखा’ पुस्तक का उल्लेख करते हुए कहा कि संघ के कार्य को देखकर कई लेखक-विचारक स्वतःस्फूर्त लिख भी रहे हैं।
महिला सशक्तीकरण के बारे में संघ के विचार पर उन्होंने समाज निर्माण के कार्य में राष्ट्र सेविका समिति के रचनात्मक कार्यों का उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि संघ और सेविका समिति समानांतर कार्य करते हैं। संघ के कुटुम्ब प्रबोधन का कार्य मातृशक्ति के बिना संभव ही नहीं हैं। महिला सशक्तीकरण और प्रबोधन का कार्य महिला समन्वय के माध्यम से चल रहा है।
आदिवासी वर्गों में संघ की भूमिका विषयक प्रश्न पर उन्होंने कहा कि संपूर्ण समाज का संगठन करना संघ का उद्देश्य है। वनवासी कल्याण आश्रम, परिषद, एकल विद्यालय तथा स्वयंसेवकों की सकारात्मक पहल से इन वर्गों के कल्याण और संगठन का कार्य चल रहा है। वनवासी समाज पूर्णतः मिशनरी के कब्जे में है, ऐसा नहीं है। फूलबनी, ओडिशा का उदाहरण देकर उन्होंने कहा कि वनवासी समाज स्वार्थ, लालच या मजबूरी में हिंदू नही हैं बल्कि वह मूल रूप से हिंदू ही है।
आरएसएस के सामाजिक सरोकारों पर प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि संघ तो आम आदमी का ही संगठन है। नारायण गमेती के घर जाने का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि वे भी एक सामान्य कार्यकर्ता ही हैं। सामान्य मनुष्य को देश के लिए तैयार करना ही संघ का उद्देश्य है। संघ को बस्ती, ग्राम, सभी तक पहुंचना है, चाहे समय कितना भी लगे।
केरल और बंगाल के बारे में प्रश्न के प्रत्युत्तर में कहा कि जो समाज झेलता है वह स्वयंसेवक भी झेलता है। स्वयंसेवक घबराकर भागने वाला नहीं है। स्वयंसेवक समाज के साथ रहकर कार्य करता है।
भेदभाव मुक्त समाज और आरक्षण के प्रश्न पर उन्होंने कहा कि संघ की शाखा में भेदभाव रहित रहने की शिक्षा दी जाती है। हम सिर्फ हिंदू हैं, यही सिखाया जाता है। इसलिए संघ में ऐसे भेदभाव का वातावरण नहीं दिखता। स्वयंसेवक व्यक्तिगत जीवन में भी इसी आदर्श को उतारने का प्रयास करता है। भेदभाव की बीमारी पुरानी है, सामाजिक कार्यों से संघ इसे दूर करने का प्रयास कर रहा है। विषमता को समर्थन देने वाला कोई विचार संघ स्वीकार नहीं करता।
संघ और सत्ता के बारे में प्रश्न पर कहा कि सत्ता में संघ की भागीदारी भ्रामक और मीडिया की उत्पत्ति है। संघ के स्वयंसेवकों का राजनीतिक लोगों से चर्चा करना या मिलना, सत्ता में भागीदारी नहीं है। कम्युनिस्ट समेत अन्य सरकारें भी संघ के स्वयंसेवकों का सहयोग कई कार्यों में लेती रही हैं।
गौ पालन और गौ संरक्षण के बारे में प्रश्न पर उन्होंने गौ संवर्धन गतिविधि का उल्लेख करते हुए भीलवाड़ा व पथमेड़ा गौशाला का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि स्वयंसेवक तथा अन्य लोग इस दिशा में कार्य कर ही रहे हैं।
समाज के सभी वर्गों को जोड़ने के संदर्भ में पूछे गए प्रश्न पर उन्होंने कहा कि संघ का उद्देश्य सम्पूर्ण हिन्दू समाज का संगठन करना है, इसलिए संघ कार्य का विस्तार होना चाहिए। भारत विश्व गुरु बने, यह सबका उद्देश्य है, इसलिए संघ समाज के सभी वर्गों को जोड़ने का कार्य कर रहा है। कोई अन्य निहित उद्देश्य नहीं है।
अंत में उन्होंने कहा कि संघ को दूर से नहीं अंदर से समझना चाहिए। संघ देश, समाज, धर्महित में अच्छे काम कर रहा है, इसलिए इस कार्य से जुड़कर ही संघ को समझा जा सकता है। उन्होंने कहा कि आचार्य विनोबा भावे कभी भी शाखा नहीं गए पर स्वयंसेवक की भांति देश, समाज हित में कार्य किया। सरसंघचालक डॉ. भागवत ने सभी से संघ के सम्पर्क में रहने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि संघ के काम को देख कर सहयोगी बनें।