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ठाकुर राज प्रताप सिंह अपने हवेलीनुमा घर की बालकनी में बैठकर अपने खेतों का नजारा ले रहे थे।दूर क्षितिज पर सूरज धीरे धीरे अस्त होता जा रहा था जिसके कारण अम्बर पर एक लालिमा बिखर रही थी ऐसा लग रहा था कि दूर आसमान पर किसी ने सोने की चादर फैला दी हो।अपने अपने घोसलों की तरफ लौटते पक्षियों का कलरव वातावरण में एक संगीत लहरी के बजने का एहसास दिला रही थी।खेतों में सरसों के पीले फूल ऐसे प्रतीत हो रहे थे जैसे धरती ने पीताम्बरी ओढ़ रखी हो।ठाकुर राज प्रताप सिंह की नजर अपने उस बगीचे की तरफ पड़ी जहाँ से गाँव के कुछ बच्चे निकल कर आ रहे थे।
शायद बच्चे उनके बगीचे में खेलने गए होंगें।वैसे बगीचे के लिए एक माली था जो चौकीदार का काम भी करता था लेकिन ठाकुर साहब के आदेश पर वह वहाँ बच्चों को खेलने से नहीं रोकता था बल्कि ठाकुर साहब के हिदायत पर वह बच्चों को बगीचे से फल तोड़कर दे देता था और इसी फल के लालच में बच्चे ठाकुर साहब के बगीचे में अक्सर खेलने जाया करते थे।तभी उनका नौकर हरिया चाय लेकर आया और बोला मालिक आपकी चाय।ठाकुर साहब बगीचे की तरफ देखते हुए बोले रख दे।हरिया सामने पड़े मेज पर चाय रखकर चला गया।
ठाकुर राज प्रताप उन बच्चों को बगीचे से निकलते देखकर अपने अतीत में लौट गए।ठीक आज से पचास साल पहले इसी तरह वे भी अपने संगी साथियों के साथ बगीचे से खेलकर लौट रहे थे।तब वे ठाकुर राज प्रताप सिंह नही थे बल्कि राजू थे।घर से लेकर गाँव तक सभी राजू से ही संबोधित किया करते थे।और तब ये हवेली नुमा घर भी नही था बल्कि एक खपरैल के छतों वाला ईट और मिट्टी का मकान था जिसमें वे अपने पिता ठाकुर विजेंद्र प्रताप सिंह और अपनी माता शांति ठाकुर और अपने से दो साल छोटी बहन काजल के साथ रहा करते थे उस समय उनकी उम्र महज दस साल थी।राजू के पिताजी के हिस्से में राजू के दादा जी के निधन के बाद बँटवारे में तीन एकड़ जमीन आई थी जिसमें खेती करके परिवार का गुजर बसर चलता था।राजू के पिताजी बहुत मेहनती और जागरूक किसान थे इसलिए कम जमीन में भी अधिक पैदावार कर लेते थे इसलिय सभी भाइयों में सबसे अधिक खुशहाल थे।ठाकुर राज प्रताप सिंह को आज भी वह दिन अच्छी तरह याद था जब वह घर में आये बच्चों के कोलाहल से नींद खुली थी दरअसल अभी सर्दियों में बड़े दिन के अवसर पर स्कूल बंद थे इसलिए कोई उन्हें सुबह उठने के लिए नही कहता।लेकिन गाँव के उनके उम्र के बच्चे खेलने के लिए उनको बुलाने आ जाते।राजू की अपनी एक टोली थी जिसमें आस पास के घरों के बच्चे शामिल थे जिसमें राज और उसकी बहन काजल, मोहिनी और उसका भाई शंकर, गोलू, मोनू, दीप्ति, मालती, अभिषेक आदि। मोहिनी और काजल एक उम्र की थीं और दोनों में खूब पटती थी।
मोहिनी और राजू में भी खूब पटती थी।सभी बच्चे छुट्टियों में खूब धमाचौकड़ी किया करते थे।उस दिन भी वह टोली राजू को लेने उसके घर आई थी।राजू सबकी आवाज सुनकर चौंक कर उठा क्योंकि वह सबसे पहले उठकर सबको इकट्ठा किया करता था दरअसल राजू ही उस टोली का ग्रुप लीडर था।वह आँख मलते हुए बिस्तर छोड़कर बाहर आया तो आँगन में एकत्रित सब बच्चों की तरफ नजर दौड़ाई तो उसकी निगाह एक अजनबी की तरफ जाकर थम सी गई।एक छोटी सी जापानी गुड़िया की तरह मोहनी और काजल की उम्र की एक बेहद साफ सुथरे कपड़े में एक लड़की दिखाई दी।राजू उसे इस गाँव में पहली बार देख रहा था।उसे देखते ही उसके मुँह से ये निकल पड़ा अरे ये कौन है।तभी मोहिनी ने बोला राजू ये मेरे शहर वाली बुआ जी की लड़की है।सर्दी की छुट्टियों में गाँव आई है।
राजू को याद आया कि तीन साल पहले भी तो ये आई थी।दरअसल मोहिनी की एक बुआ शहर में रहती थी उसके फूफा जी शहर में डॉक्टर थे इसलिए वे कभी कदापि ही गाँव आते थे।राजू को उसका नाम भी याद था रजनी।फिर भी राजू ने आस्वस्त होने के लिए पूछा ये रजनी है क्या तो मोहिनी झट से बोल पड़ी ठीक समझे राजू ये रजनी है।अब जल्दी तैयार होकर हमारे साथ बगीचे में चल आज हमलोग वहीं खेलेंगे।राजू तैयार होने चला गया उसके आँखों के सामने रजनी का चेहरा ही घूम रहा था।
इधर राजू की माँ ने सभी बच्चों से बोली, बच्चों तुम लोग नाश्ता कर लो क्योंकि तुम लोग दिनभर खेलते रहोगे।राजू की माँ की ये रोज का काम था वे सभी बच्चों को राजू के साथ नाश्ता जरूर देती थी और सब बच्चे इसी इंतजार में रहते थे कि कैसे राजू की माँ की हाथों का बना स्वादिष्ट व्यंजन खाने को मिले।राजू की माँ को बच्चों को खिलाने में एक आत्मसंतुष्टि मिलती थी।इधर राजू भी तैयार होकर आ गया और बाकी बच्चों के साथ खाने लगा।सभी बच्चे वहाँ से राजू के बगीचे में खेलने चले गए।
राजू के पिता ने इस बगीचे को बहुत प्रेम से संभाल कर रखा था वे इसे अपने पूर्वजों की निशानी मानते थे।आज राजू को खेलने में बहुत मजा आ रहा था वह रजनी के इर्दगिर्द ही रहने की कोशिश करता।शाम होने पर सभी बच्चे अपने अपने घरों की तरफ लौट आये।राजू को रजनी का उसके घर जाना बहुत बुरा लग रहा था।उसे सुबह के होने का बेसब्री से इंतजार था।दूसरे दिन भी उसी तरह धमाचौकड़ी करते रहे।देखते देखते छुट्टियाँ खत्म हो गई।रजनी भी अपने माँ के साथ शहर लौट गई।राजू उस रोज बहुत उदास था।देखते देखते दो साल बीत गया।मोहिनी ने राजू को बताया कि रजनी इस बार गर्मियों को छुट्टी में गाँव आ रही थी।राजू के खुशी का कोई ठिकाना नहीं था।इसके पहले भी राजू अपने साथियों के साथ खेलता कूदता था।सबसे अधिक उसे मोहनी से पटती थी।
मोहिनी भी राजू का बहुत ख़्याल रखती थी।मोहिनी के घर में कुछ भी अच्छा बनता वह राजू के लिए छुपाकर रखती थी और चुपके से उसे वह खिला देती थी।वह किसी ना किसी बहाने से राजू के आस पास ही रहती थी राजू भी अपनी बहन काजल के साथ साथ उसका बहुत ख्याल रखता था।इसी तरह जिंदगी धीरे धीरे गुजरती जा रही थी।रजनी के गाँव आने पर सभी बच्चे बहुत खुश थे और खासकर राजू, उसे तो लग रहा था कि उसे कोई अनमोल चीज मिल गई हो।गर्मी की छुट्टियाँ भी पलक झपकते ही खत्म हो गई।राजू के लिए फिर से वही उदासी का लम्हा था जब रजनी शहर वापस चली गई थी।लेकिन उसके लिए एक उम्मीद की किरण थी कि वह फिर अगले साल छुट्टियों में वापस गाँव जरूर आएगी।लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
राजू हर साल गर्मियों की छुट्टियों में और सर्दी की छुट्टियों में रजनी के आने का इंतजार करता लेकिन वह नही आ पाती और सारी छुट्टियों में राजू उदास रहता।उसे खेलने कूदने में एकदम मजा नही आता था।छुट्टियों के बाद अपनी पढ़ाई लिखाई में व्यस्त हो जाता।देखते देखते चार साल बीत गया।अब राजू सोलह सालका गबरू जवान लड़का हो चुका था।उसकी बहन काजल और मोहिनी भी चौदह साल की हो चुकी थीं उनके शरीर में स्वाभाविक रूप से एक परिवर्तन आ चुका था अब उन्हें लड़कों के साथ खेलने से मना किया जाने लगा।अब वे सिर्फ लड़कियों के साथ खेलती थीं।अब उनके और लड़कों के बीच एक अदृश्य पर्दा स्थापित हो गया था।ये दुनिया का दस्तूर था और अचानक सभी जगह ऐसा ही होता था।देखते देखते बेबाक रूप से आपस में खेलते कूदते कब एक लड़का और लड़की के बीच दूरी पैदा हो ये पता ही नहीं चलता।
उस रोज़ जब मोहिनी ने जब आकर राजू को ये बताया कि इस बार गर्मियों की छुट्टी में रजनी गाँव आ रही है तो राजू के खुशी का कोई ठिकाना नहीं था।उस रोज़ राजू के लिए एक त्यौहार से कम नही था।रात भर वह सो नही सका था जबकि अभी छुट्टियों में कई दिन बाकी था।एक एक दिन राजू के लिये पहाड़ के समान बीत रहा था।उस रोज़ सुबह आँगन में हो रहे शोरगुल की आवाज से उसकी नींद खुल गई।वह अपने कमरे से अंगड़ाई लेते हुए बाहर आया जैसे ही उसकी नजर रजनी पर पड़ी वह स्तब्ध रह गया।एक निहायत खूबसूरत सी लड़की में रजनी तब्दील हो चुकी थी।जवानी का लावण्य उसके चेहरे पर दृष्टिगोचर हो रहा था।रजनी की निगाह जैसे ही राजू की तरफ पड़ी वह भी उसे देखकर मंत्रमुग्ध हो गई थी। दोनों चार साल बाद एक दूसरे को देखकर बहुत खुश थे।रजनी ने अपने हाथ में दो पैकेट पकड़ रखा था।उसने एक पैकेट राजू को देते हुए कहा राजू ये तेरे लिए, और दूसरा पैकेट काजल के हाथों में दिया।राजू ये टी शर्ट है पहनकर देखो शायद मैं छोटा ले आईं हूँ तुम तो बहुत बड़े हो गए हो।तुम भी तो बड़ी हो गई हो राजू ने मुस्कुराते हुए कहा।ये सुनकर रजनी शर्मा गई।तभी राजू की माँ रसोईघर से निकली अरे रजनी आई है क्या।रजनी ने राजू की माँ के पैर छूकर प्रणाम किया।सब एक दूसरे से बातचीत करने लगे लेकिन इस बार बगीचे में खेलने कोई नही गया।राजू जब टी शर्ट पहना तो उसे बहुत छोटा हो रहा था पर उसने ये बात किसी को नही बताई और चुपचाप उसे अपनी आलमारी में रख दिया ।
इस बार लड़कियों के अलग झुंड बन गए थे और लड़कों के अलग।केवल रजनी राजू के घर आती तो राजू से थोड़ी बहुत बात होती।राजू चाहता था कि वह हमेशा रजनी के पास रहे पर ऐसा नहीं हो पाता था। इस बार की छुट्टियां पलक झपकते ही खत्म हो गई।रजनी वापस शहर चली गई।अगले तीन साल के बाद राजू का ऐडमिशन शहर के इंजीनियरिंग कॉलेज में हो गया था और रजनी का दाखिला उसी शहर के मेडिकल कॉलेज में हो गया था।अब राजू और रजनी एक शहरमें पढ़ रहे थे और दोनों अक्सर मिलने लगे।दोनों को एक दूसरे का साथ बहुत अच्छा लगता था।एक बार वैलेंटाइन डे पर राजू ने लाल गुलाब रजनी को दिया।इसपर रजनी ने उसे लेते हुए कहा कि ये गुलाब देने का मतलब समझते हो तुम।तब राजू ने कहा सोचकर ही दिया है।उसके बाद दोनों के बीच के संबंध एक नया रिश्ता अख्तियार कर चुका था।
इस बार राजू इंजीनियरिंग के तीसरे साल के फाइनल एग्जाम देने के बाद गाँव आया हुआ था।उस रोज दोपहर में उसे मोहनी मिली।राजू को देखते ही उसके पास आई और बोली राजू तुमसे कुछ जरूरी बात करनी है शाम को गाँव के पुराने वाले मंदिर पर आ जाना।इसपर राजू चौंकते हुए पूछा ऐसी कौन सी जरूरी बात है जो तू वहाँ कहेगी यहाँ ही तो बोल सकती है।नही बस तुम शाम को मंदिर पर आ जाना मैं वहीं तेरा इंतजार करूँगी ये कहते हुए मोहनी वहाँ से चली गई।राजू वहीं खड़े खड़े सोचता रहा इस पगली को ऐसी कौन सी बात करनी होगी जो उसने पुराने मंदिर पर बुलाया है।उस मंदिर में अब कोई आता जाता नही था अब मंदिर तो खंडहर में तब्दील हो चुका था।फिर भी राजू जनता था कि मोहिनी बहुत जिद्दी है और वह वहाँ जरूर पहुँच जायगी इसलिए उसे तो वहाँ जाना ही पड़ेगा पता नहीं क्या बात है।शाम को सबसे छुपते छुपाते मंदिर पहुँच गया मोहिनी उसका वहाँ इंतजार कर रही थी।
उसे देखते ही राजू बोल पड़ा अजीब पागल लड़की है यहाँ इस खंडहर में आने का क्या मतलब है कोई हमें देख लिया तो क्या सोचेगा।तुम्हें दुनिया की सोचने की पड़ी है और मेरी जान जा रही है इसपर मोहनी बोली।ठीक है जल्दी से बता बात क्या है राजू बोला।इसपर मोहिनी गंभीर होते हुए बोली राजू मेरे घरवाले मेरी शादी ठीक कर रहे हैं और कल लड़के वाले मुझे देखने आने वाले हैं।अरे ये तो खुशी की बात है कि तेरी शादी ठीक हो रही है राजू बोला।ये तू क्या बोल रहा है मोहिनी बोली।ठीक तो बोल रहा हूँ अब तेरी उम्र शादी के लायक हो गई है इसलिए तेरी शादी ठीक हो रही है।तेरी उम्र की सभी लड़कियों की शादी गाँव में होते रहती है।अगर तू आगे पढ़ना चाहती है तो तू शादी के बाद भी पढ़ सकती है राजू बोला।इसपर मोहिनी झुंझला पड़ी और बोली तुझे कोई फर्क नहीं पड़ रहा है कि मेरी शादी किसी और से हो रही है।अरे मुझे क्यूँ फर्क पड़ेगा राजू सामान्य रूप से जबाब दिया।अरे पागल मेरी शादी किसी दूसरे लड़के से हो रही है और तुझे कोई फर्क नहीं पड़ रहा है मोहिनी चिल्लाई।राजू को कुछ सामझ में नही आ रहा था कि मोहिनी क्या कहना चाह रही थी।वह बोला मोहिनी पहेली मत बुझाओ साफ साफ कहो बात क्या है।अबतक मोहिनी को समझ में आ गया था कि राजू को कुछ समझ में नही आ रहा था ,इसलिए उसे खुलकर सारी बातें बतानी होंगीं।राजू मेरी शादी ऐसे लड़के से हो रही है जिसे मैं प्यार नही करती हूँ, मोहिनी बोली।तो क्या तू किसी और से प्यार करती है राजू बोला।हाँ मोहिनी बोली।राजू स्तब्ध था क्योंकि उसे मोहिनी की सब बातें पता होती थी।पर ये बात मोहिनी ने उसे बताया क्यूँ नही।अरे तूने मुझे आजतक बताया क्यूँ नही कि तेरा प्यार किससे है ,क्या इस गाँव का है राजू बोला।मोहिनी को कुछ समझ में नही आ रहा था कि सामने राजू ही है कि और कोई शख्स।उसे तो लग रहा था कि राजू को सब बातें पता होगी।लेकिन राजू सभी बातों से बेखबर था।राजू तू कैसी बात कर रहा है, मैं किसी और से प्यार कैसे कर सकती हूँ मोहिनी बोली।तो फिर शादी से दिक्कत क्यूँ है राजू बोला।
अब मोहिनी का धैर्य जबाब देता जा रहा था।अब उसे राजू को सच बताना ही होगा।अरे बेवकूफ मैं तुमसे प्यार करती हूँ मोहनी शर्माते हुए बोली।राजू को अपने कानों पर यकीन नही हुआ कि उसने क्या सुना।वह घबड़ाते हुए बोला ये कह रही है मोहिनी।ठीक कह रही हूँ मैं तुमसे प्यार करती हूँ और तुम्हारे अलावा किसी और से शादी नही कर सकती हूँ मोहिनी आगे बोली।राजू को लगा कि जैसे मंदिर का पूरा छत घूम रहा था।वह धम्म से नीचे जमीन पर बैठ गया।उसे समझ में नही आ रहा था कि मोहिनी क्या बोल रही थी।वह सपने में भी नही सोच सकता था कि मोहिनी ऐसा बोलेगी।वह मोहिनी और अपनी बहन काजल में कोई फर्क नहीं करता था और उसे हमेशा लगता था कि काश मोहिनी भी उसके माँ की कोख से ही जन्म लेती।मोहिनी को वह बहुत चाहता था पर प्रेमिका के रूप में कदापि नही
।वह तो अपना दिल रजनी को दे चुका था।क्या हुआ तू इतना हैरान क्यूँ है तू भी तो मुझे इतना ही चाहता है मोहिनी बोली।अबतक राजू संयत हो चुका था।हाँ मैं तुम्हें चाहता हूँ लेकिन प्रेमिका के रूप में नही मैं तो तुम्हें काजल की तरह ही चाहता हूँ बल्कि उससे ज्यादा।मुझे तो हमेशा लगता था कि काश तू मेरी सगी बहन होती।मैंने तुम्हें अपनी प्रेमिका की नजरों से कभी नहीं देखा।ऐसा तो मैं सपने में भी नही सोच सकता हूँ राजू बोला।राजू की बातें सुनकर मोहिनी सन्न हो गई उसे लगा कि कोई उसके पाँव के नीचे से जमीन हटा दी हो।मोहिनी को उसके आंखों के सामने उसकी दुनिया उजड़ती हुई दिखाई दे रही थी।उसने जबसे होश संभाला था तबसे वह राजू को ही चाहती थी उसकी सारी दुनिया राजू तक ही सीमित थी।राजू के बगैर तो वह जीने की कल्पना भी नहीं कर सकती थी।लेकिन राजू के बातों ने उसके होश उड़ा दिए थे।अब उसे कुछ समझ में नही आ रहा था कि वह क्या करे।लेकिन वह मन ही मन में एक फैसला ले चुकी थी।वह राजू से बोली राजू तू किसी और से प्यार करता है क्या।इसपर राजू बोला हाँ मोहनी मैं और रजनी एक दूसरे से प्यार करते हैं और ये बात मैं तुझे बताने वाला था।मोहिनी के लिए ये एक और सदमे वाली बात थी।ठीक है राजू जो हुआ सो हुआ इसमें ना तेरी गलती है ना मेरी।तू अपनी जगह ठीक है मैं अपनी जगह।चल आज आखरी बार अपने सीने से लग जाने दे।राजू ने झट से मोहिनी को सीने से लिपटा लिया।दोनों फूट फूट कर रो रहे थे।राजू रोते हुए बोला पगली कभी तो अपने दिल की बात बता देती।इसपर मोहिनी बोली लड़की थी, पहल मैं कैसे करती, मुझे तो पूरा विश्वास था कि तू भी मुझे चाहता है परंतु तेरी चाहत ऐसी होगी मुझे क्या मालूम।दोनों उसी तरह रोते रहे।तभी राजू बोला मोहिनी अँधेरा हो रहा है घर चलते हैं।भारी मन से दोनों अलग अलग रास्ते से अपने अपने घर लौट गए। रात भर राजू रोता रहा।रोते रोते कब आँख लग गई पता ही नहीं चला।अचानक उसकी बहन काजल जोर जोर से रोते हुए उठाया।भईया उठो मोहिनी ने जहर खाकर अपनी जान दे दी है।ये सुनकर वह हड़बड़ा कर उठा उसे समझ में नही आ रहा था कि ये सब अचानक कैसे हो गया।पूरे गाँव में मातम छा गया था।।मोहिनी पूरे गाँव की लाडली थी।इतनी हँसमुख लड़की ऐसा कर लेगी किसी को कुछ समझ में नही आ रहा था जितनी मुँह उतनी बातें।राजू की पूरी दुनिया ही उजड़ चुकी थी।उसे ये एहसास था कि मोहिनी के मौत का वही जिम्मेदार था लेकिन अगर उसे जरा सा भी एहसास होता कि मोहिनी ऐसा भी कोई कदम उठा सकती है तो कोई रास्ता जरूर निकालता।समय के साथ धीरे धीरे सब घाव भर गए ।राजू के इंजीनियरिंग का कोर्स पूरा हो गया।लेकिन उसने नौकरी करने से मना कर दिया और गाँव आकर खेती करने लगा।उसके पिताजी उसके खेती करने के खिलाफ थे पर राजू के जिद के आगे उनकी एक ना चली।राजू खेती को वैज्ञानिक तरीके से करने लगा बैंक से लोन लेकर और जमीन खरीद ली।उधर रजनी भी डॉक्टर बन गई।
उसके घरवालों ने शादी की बात की तो उसने बताया कि वह राजू से शादी करेगी।घरवाले इसके खिलाफ थे कि वह गाँव में कैसे रह पाएगी।लेकिन उसके जिद के आगे सबको झुकना पड़ा।राजू से शादी करके गाँव आ गई और वहीं एक क्लीनिक खोल दी।धीरे धीरे आस पास के गाँव के लोग इलाज के लिए उसके पास आने लगे।देखते देखते एक छोटी सी क्लीनिक नर्सिंग होम में तब्दील हो गया।इधर राजू भी100एकड़ जमीन का मालिक हो गया और राजू से ठाकुर राजप्रताप सिंह कहलाने लगा।राजू को दो बच्चे हो गए।एक लड़का जो डॉक्टर बन गया और राजू के मना करने के बावजूद अमेरिका चला गया और वहीं शादी करके बस गया।एक लड़की थी उसकी भी शादी सॉफ्टवेयर इंजीनियर से हुई और वह भी जर्मनी चली गई।माता पिता का देहांत पाँच साल पहले हो गया था।दो साल पहले अचानक रजनी को हार्ट् अटैक आया और वह भी चल बसी।दो साल से वह अकेले जिंदगी काट रहा था।आज वर्षों बाद सारी यादें एक एक करके चलचित्र की तरह उसके सामने आ रहे थे।आज वही बचपन याद आ रहा था।शाम ढल चुकी थी ।हरिया चाय का कप उठाने के लिए बालकनी में आया।दूर से उसकी निगाह चाय के प्याले पर पड़ी तो देखा चाय वैसी ही रखी हुई थी।वह पीछे से आते हुए बोला मालिक आपने चाय नही पी क्या।तभी उसकी नजर जैसे ही ठाकुर साहब के चेहरे पर पड़ी वह चिल्ला पड़ा। ठाकुर साहब के प्राण पखेरू उड़ चुके थे।उनकी आँखें पथरा गई थी।
द्वारा डॉ संजय श्रीवास्तव महू 7000586652