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अभी पिछले दिनों एक कथावाचक ने मुफ्त में रुद्राक्ष बाँटने की घोषणा की।प्रशासन को अनुमान था कि लगभग पाँच लाख लोगों की भीड़ जुटेगी लेकिन20लाख लोग जुट गए और प्रशासन की सारी व्यवस्था धरी की धरी रह गई।वहाँ घोर अराजकता और अफरा तफरी का माहौल उत्पन्न हो गया।जिस रुद्राक्ष को लेकर ये सब बवाल हुआ उससे लोगों को क्या फायदा होगा इसकी कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है पर एक कथावाचक ने उसकी महिमा का बखान कर दिया जिसके फलस्वरूप जनता उसे लेने के लिए उमड़ पड़ी।इसी कथावाचक ने लोगों को शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाकर उसके पत्ते खा लेने से लोगों के घुटनों के दर्द दूर होने की बात बताई जिसे बहुत से लोगों ने आजमाया।कितनों को फायदा हुआ या नही ये शोध का विषय हो सकता है।सवाल यहाँ ये उठता है कि किसी के सिर्फ कहने पर बगैर किसी अनुसंधान के कोई चीज कैसे अपनाई जा सकती है।और जो व्यक्ति इस बात को कह रहा है उसके पास इसका कोई वैज्ञानिक आधार है क्या।एक व्यक्ति कल तक स्कूल में मामूली शिक्षक था उसे ये ज्ञान कहाँ से उपलब्ध हो गया।इस देश में हर रोज कुछ बाबा लोग कुकुरमुत्ते की तरह पैदा हो जाते हैं और उन सब का अंत लगभग जेल की कालकोठरी या उनका पलायन से ही होता है।धार्मिक मामलों में ये देश बहुत धर्मभीरु रहा है यहां के लोगों को धर्म के नाम पर आसानी से गुमराह किया जा सकता है।हाथ की सफाई दिखाने वाले लोगों को लोग चमत्कारी पुरूष मानने लगते हैं।इस देश में जितने तथाकथित बाबा लोग जिस किसी चमत्कार की बात करते हैं वे सब एक नंबर के फ्रॉड होते हैं जो भोली भाली जनता की भावनाओं से खेलते हैं।इस देश में शिक्षा का अभाव शुरू से रहा है।शुरुवाती दौर में शिक्षा केवल धर्म और उसमें भी सिर्फ कर्मकांड की दी जाती थी जो आज भी हो रहा है।पहले एक वर्ग विशेष को ही धार्मिक शिक्षा ग्रहण करने अधिकार था।शस्त्र चालन की शिक्षा भी एक वर्ग विशेष को दी जाती थी।इसका नतीजा ये हुआ कि इस देश में अंग्रेजों के आगमन के पहले आधुनिक शिक्षा से आम जनता हमेशा मरहूम रही।लोग अपने ही घरों से कुछ तकनीकी शिक्षा हासिल कर लेते थे जैसे कोई सुनार का काम कर रहा है तो उसके आगे की पीढ़ी वही काम सीख पाती थी।कोई चर्मशोधन का काम कर रहा था तो उसकी आगे की पीढ़ी वही काम करते जाती थी।चिकित्सा के क्षेत्र में यही स्थिति थी।गाँव के वैध जी जो समझ में आया उसकी पुड़िया दे दी तो लोग उसी से अपना उपचार कर लेते थे क्योंकि हमारे यहाँ कोई वैज्ञानिक तरीका ही नहीं था।हमें तो अंग्रेजों का शुक्रगुजार होना चाहिए जिनके चलते इस देश में शिक्षा की आधुनिक पद्धति अपनाई गई।लेकिन आज भी बहुसंख्यक समाज अभी भी शिक्षा से मरहूम है।और महिलाएँ तो खासकर के।और इसका नतीजा ये होता है कि आपकी तार्किक क्षमता ही खत्म हो जाती है।और सबसे बड़ी बात ये है कि थोड़े बहुत जो लोग कॉलेज स्कूल से डिग्री हासिल कर लेते हैं वे भी वास्तव में शिक्षित नही होते हैं।शिक्षित होने का सीधा सा मतलब है कि आपके अंदर तार्किक क्षमता हो जिससे आप उचित और अनुचित में भेद कर सकें।मैंने अच्छे अच्छे पढ़े लिखे लोगों को इन फ्राड बाबाओं के चौखट पर सर रगड़ते देखा है।यकीन मानिए अगर आज भी आशाराम बापू जेल से छूटकर बाहर आ जाये तो बड़े से बड़े डिग्री धारी लोग उसके चरण धोकर पीते मिलेंगे।और महिलाएं तो उसी तरह उनके आगे बिछने के लिए तैयार मिलेंगीं।दरअसल इस देश में महिलाओं को धर्म के मामले में शुरू से गुमराह किया जाता रहा।एक तो महिलाओं का जीवन शुरू से पुरुषों पर आधारित रहा।आज भले कुछ महिलाएं आत्मनिर्भर हो गई हैं लेकिन उनकी संख्या नगण्य है और वे भी कमोबेश अभी भी पुरुषों पर आधारित रहती हैं।आज एक महिला अपने पति और बच्चों के फिक्र में ही लगी रहती हैं।पति की नौकरी से लेकर बच्चों की पढ़ाई लिखाई या बेटियों की शादी वगैरह सबकी चिंता उन्हें ही सबसे ज्यादा रहती है।इसलिय ये महिलाएं अपनी कोई भी समस्या के सस्ता हल तलाशने में लगी रहती हैं।अगर किसी महिला को बच्चे नही हो रहे हैं और उसके पास आधुनिक इलाज के लिए पैसे नही है तो वह आसानी से इन पाखंडी बाबाओं के चक्कर में पड़कर अपनी अस्मत लुटा बैठती हैं।ओझा तांत्रिक जैसे लोग गाँवों में आज भी सक्रिय हैं जो लोगों को वेवकूफ बनाते रहते हैं।कहीं भी भागवत कथा चल रही हो या किसी बाबा का प्रवचन सबसे आगे महिलाओं को बैठाया जाता है ताकि धूर्त बाबा लोग उन खूबसूरत महिलाओं को आसानी से ताड सके।आशाराम बापू के केस में ये बात उभर कर आई थी कि वह मंच से खूबसूरत महिलाओं को टारगेट करता था।बहरहाल ये सिर्फ एक बाबा की बात नही है ये सब पर लागू होता है।और यकीन मानिए अगर आज से महिलाएं इन कथावाचकों के पंडाल में नही पहुंचे तो कोई भी कथा एक दिन से दूसरे दिन नही चलेगा क्योंकि अधिकांश पुरुष भी महिलाओं की भीड़ की वजह से ही कथा के पंडाल में एकत्रित होते हैं क्योंकि उनका किसी भी कथा से कोई लेना देना नही होता है।वैसे कथा से लेना देना तो महिलाओं को भी नहीं रहता है और वे भी वहाँ घर से बन संवर के निकलने का बहाना चाहती हैं।लेकिन इस क्रम में कुछ भोली भाली महिलाओं का शोषण होता है और ये हमेशा से होता आ रहा है और आगे भी होता रहेगा क्योंकि लालच आपको ये सब करने के मजबूर करता रहेगा।आपकाशोषण तभी होता है जब आपके आँखों पर लालच की पट्टी पर जाती है।मैंने अच्छी घरों की समृद्ध और पढ़ी लिखी महिलाओं को शोषित होते हुए देखा है।एक बाबा थे जिन्होंने आत्महत्या कर लिया था उनके मंच पर खूबसूरत महिलाओं का हुजूम रहता था और वे अपने आप को बाबा के बहुत करीब होने का प्रयास करती थीं अब ऐसे में कोई बाबा जिसे आसानी से सबकुछ मिल रहा हो कैसे छोड़ सकता है।और मेरा तो ख्याल है कि इन बाबाओं को पतित बनाने में कमोबेश इन्ही महिलाओं का भी हाथ होता है क्योंकि ताली कभी एक हाथ से नही बजती है।आज एक नया नया बाबा पूरा हाइलाइट हो रहा है क्योंकि उसके दरबार में राज्य का पूर्व मुख्यमंत्री माथा टेकने पहुँच जाता है।आज राजनीतिक फायदे के लिए इन बाबाओं के इस्तेमाल किया जा रहा है।वरना जिस राम रहीम पर घृणित आरोप है और वह उसकी सजा काट रहा है उसको दो दो बार पैरोल कैसे मिल जा रहा है जबकि एक आम मुजरिम इसके लिए सोच भी नही सकता है।दरअसल इस देश में अगर आपके पास पैसा हो या आपसे कोई राजनीतिक फायदा हो तो सारा का सारा कानून ताक पर रख दिया जाता है।जब इन सारी बातों का गहराई से विश्लेषण करेंगें तो पाएंगे कि सही शिक्षा का अभाव इन सारी समस्याओं की जड़ में है।शिक्षा का अभाव ही अंधविश्वास को जन्म देता है और उसके दुष्परिणाम अलग अलग तरह से समाज में परिलक्षित होता रहता है क्योंकि कुछ चतुर लोग इसी अंधविश्वास का फायदा उठाकर लोगों को गुमराह करने में लगे रहते हैं।धर्म भी बहुत हद तक लोगों को अंधविश्वासी बनाने का कार्य करती है क्योंकि धर्म के मामले में लोग तर्क के बजाय आस्था का प्रश्न बनाकर इससे बचने का प्रयास करते हैं।आज आपके प्रिय से प्रिय व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है फिर भी उस अवस्था में भी सारे गम भुलाकर उसकी तेरहवीं में क्या भोजन बनेगा इसकी चिंता होने लगती है।एक वर्ग विशेष को आपके दुःख से कोई लेना देना नही रहता बल्कि उसे वहाँ से कितना दान दक्षिणा मिलेगी उसकी चिंता रहती है।आज भी हम उसी दकियानूसी परंपरा को ढोते रहने में विश्वास करते हैं।मुझे आजतक समझ में नही आई कि जो आत्मा शरीर से निकलकर कहीं जा सकती है उसे तथाकथित वैतरणी पार करने में क्या दिक्कत हो सकती है।पता नहीं लोग इस तरह की बातों पर पीढ़ी दर पीढ़ी कैसे विश्वास कर लेते हैं।शादियों में तरह तरह के तामझाम उपलब्ध हो गए हैं परंतु शादी की रीति रिवाज सम्पन तभी होगी जब दो चार श्लोक संस्कृत में ना पढ़ दी जाए।ये ढकोसला इसी देश में चल सकता है।
द्वारा डॉ संजय श्रीवास्तव महू7000586652
*उपरोक्त लेख लेखक की निजी राय है