Getting your Trinity Audio player ready...
|
लखनऊ, शहर की सुर्खियां ऑनलाइन डेस्क।
आम जनमानस के मुद्दों की डोर जैसे हाथ से फिसल गई है। रामचरित मानस से उपजे विवाद में अब यह बात पीछे छूट गई है कि केवट कौन थे और राम किसके हैं। इस समय सियासत में ‘शूद्र’ शब्द पर संग्राम चल रहा है। उपेक्षित और कमजोर वर्ग को परिभाषित करने वाले शब्द की राजनीतिक दल अपने-अपने हिसाब से व्याख्या कर रहे हैं। इस वर्ग की समस्याओं को उठाने की बजाय ताकत यह बताने में लगाई जा रही है कि हम भी शूद्र हैं और इनके शुभचिंतक हैं। दरअसल जिन्हें शूद्र कहा जा रहा है, वोट के लिहाज से उनकी सियासी हैसियत निर्णायक मानी जाती है। यही कारण है कि इस वर्ग को अपने साथ खड़े करने की होड़ मची है।
प्रकरण की शुरुआत रामचरित मानस पर बिहार के एक मंत्री की टिप्पणी से हुई थी। मामले ने तूल उस समय पकड़ा, जब सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरित मानस पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर दी। उन्होंने कहा कि रामचरित मानस में दलितों और महिलाओं का अपमान किया गया है। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने भगवान राम पर कोई टिप्पणी नहीं की है। उधर, प्रदेश सरकार की माध्यमिक शिक्षा मंत्री राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) गुलाब देवी ने भी मोर्चा संभाला। कहा कि, भाजपा सरकार में शूद्रों को सम्मान मिला है। इसका बड़ा उदाहरण उन्होंने खुद को बताया। इसके पक्ष और विपक्ष में इस तरह के कई बयान आए और लगातार इस पर बहस चल रही है। उधर, मामला तब और गरमा गया जब इस मामले में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव कूद पडे। उन्होंने कहा कि भाजपा हम सबको शूद्र समझती है। वह एक बार मुख्यमंत्री से चौपाई पढ़कर सुनाने को जरूर कहेंगे। सदन में जरूर इस बारे में पूछेंगे।
उधर, सीएम योगी ने भी कहा कि वह इस मामले पर बहस को तैयार हैं। प्रदेश में हुए विकास से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए सपा इस तरह के मुद्दे उठा रही है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने रामचरितमानस प्रकरण को लेकर सपा पर हमला बोला है। मायावती ने ट्वीट कर कहा है कि देश में कमजोर एवं उपेक्षित वर्गों का ग्रंथ रामचरितमानस व मनुस्मृति नहीं बल्कि भारतीय संविधान है। इसमें बाबा साहब ने इन्हें शूद्रों की नहीं बल्कि एससी, एसटी व ओबीसी की संज्ञा दी है। सपाई शूद्र कहकर उनका अपमान न करें और न ही संविधान की अवहेलना करें। उन्होंने कहा कि सपा प्रमुख को इनकी वकालत करने से पहले लखनऊ गेस्ट हाउस के 2 जून 1995 की घटना को भी याद कर अपने गिरेबां में झांकना चाहिए। याद करना चाहिए कि जब सीएम बनने जा रही एक दलित की बेटी पर सपा सरकार ने जानलेवा हमला कराया था। वैसे भी यह जगजाहिर है कि देश में एससी, एसटी, मुस्लिम व अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों के आत्मसम्मान एवं स्वाभिमान की कदर बीएसपी में ही है।
मायावती के बयान पर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भाजपा को घेरा। कहा कि भाजपा होशियार पार्टी है। वो जिस जवाब को नहीं देना चाहती है, इसके लिए वह कभी-कभी दूसरे दलों को आगे करती है। हम सपाइयों के लिए सबसे बड़ा कोई धर्म है तो वह संविधान है। संविध् ान में कहां कहा गया है किधर्म को ऊंचा-नीचा दिखाएं। डॉ. भीमराव आंबेडकर, राम मनोहर लोहिया ने जो आंदोलन चलाया, जो लड़ाई लड़ी क्या उसके तहत हमें अधिकार मिल रहे हैं। भाजपा वही अधिकार छीन रही है। इधर स्वामी प्रसाद मौर्य ने मायावती पर पलटवार किया। उन्होंने एक चौनल से बातचीत में कहा कि अब मायावती को गेस्ट हाउस कांड याद नहीं आना चाहिए। लोकसभा चुनाव 2019 में उन्होंने सपा से गठबंधन किया था। उनका पूरा सम्मान किया गया। वह भी उनका बेहद सम्मान करते हैं, लेकिन अब मायावती के पैरों तले जमीन खिसक रही है। यही वजह है कि वे अलग-अलग बयान दे रही है। स्वामी प्रसाद ने उप मुख्य मंत्री केशव प्रसाद मौर्य पर भी निशाना साधा। कहा कि वह भूल गए कि पिछड़े समाज के केशव को स्टूल पर बैठना पड़ता था।