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विवेक कुमार जैन
आगरा 24 सितंबर।ताजनगरी आगरा का बूट उद्योग इस समय बर्बादी की कगार पर है आंकड़ों की मानें तो पिछले 3,साल में आगरा के बूट उद्यमियों का टर्नओवर 250, करोड़ रुपये से सिमटकर 20,करोड़ रुपये सालाना हो चुका है ये उद्योग सुरक्षा बलों के साथ ही अन्य सरकारी विभागों की सप्लाई पर निर्भर करता है लेकिन अब सरकारी विभागों की खरीद नीति में अनावश्यक शर्त लगने से इसमें कमी आ रही है बूट उद्यमियों के अनुसार यदि जल्द इस खरीद नीति की खामियों को दूर नहीं किया गया तो शहर के छोटे उद्योग बर्बाद हो जाएंगे देखिये आगरा से ये रिपोर्ट।
ताजनगरी आगरा का डंका पूरी दुनिया मे ताजमहल और जूता उद्योग को लेकर बजता है आगरा में जूता उद्योग के अंतर्गत एक और उद्योग आता है वह है बूट उद्योग करीब 60 साल से आगरा के बूट मैन्युफैक्चर्स कारोबारी अपने उद्यम से देश भर के सरकारी खासतौर पर आर्म्ड फोर्सेस को बूट सप्लाई का कार्य करते आ रहे हैं चाहे पाकिस्तान से युद्ध रहा हो या फिर चीन से हमारे सैनिकों ने आगरा में बने बूटों को पहन कर दुश्मन देशों के दांत खट्टे किये हैं पर बड़े दुख की बात है कि हाल ही कोरोना काल और उस पर GEM के चंद अधिकारियों के मनमानी पूर्ण निर्णयों और नई खरीद नीति में बदलाव की वजह से बूट उद्योग अब अंतिम साँसे गिन रहा है दरअसल GEM के तहत बूट सप्लाई के निकलने वाले टेंडर्स में टर्नओवर क्लॉज सहित खरीद नीति में कई बदलावों ने आगरा के बूट उद्योग को बंदी के कगार पर ला दिया है हालात इस कदर खराब हो गए हैं कि 2017, तक आगरा के बूट उद्योग का सालाना टर्नओवर 250,करोड़ से ज्यादा था मगर अब आगरा के बूट कारोबार महज 15 से 20,करोड़ के सालाना टर्न ओवर तक ही सीमित रह गया है हालात ये हैं कि जंहा कभी आगरा में 30 से 45 इकाइयां हुआ करती थीं वँहा आज महज ये संख्या 7 से 10 तक सिमट कर रह गयी है ऐसे में व्यापारियों की मांग है कि जेम के तहत स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा हो टर्नओवर के नाम पर छोटी इकाइयों के साथ भेदभाव न हो. जेम पोर्टल टेंडर प्रक्रिया में पंजीकृत मूल उपकरण निर्माता फर्मों को ही भाग लेने की अनुमति हो.अधिकतम सीमा खत्म कर क्षमता निर्धारण कर सप्लाई ऑर्डर बांट दिया जाना चाहिए।
बूट उद्यमियो ने आरोप लगाते हुए कहा कि सरकारी खरीद पोर्टल जेम के कुछ अधिकारियों ने अपने पसंदीदा सप्लायरों को फायदा पहुंचाने के लिए बेवजह के नियम बना दिए हैं. इसमें सबसे ज्यादा मुश्किल टर्नओवर से संबंधित अनिवार्यता किए जाने से हो रही है उन्होंने बताया कि 2017,तक फौज को बूट सप्लाई के टेंडरों में कोई टर्नओवर संबंधी अनिवार्यता नहीं थी लेकिन दिल्ली की कुछ फर्में जो स्वयं निर्माता भी नहीं थी उन्हें फायदा पहुंचाने के लिए 100 करोड़ रुपये के टर्नओवर की लिमिट रख दी गई जिस टेंडर में यह शर्त रखी गई, वह सिर्फ नौ करोड़ रुपये का था इसके बाद तो लगातार साजिश के तहत छोटे उद्यमियों को टेंडर प्रक्रिया से बाहर किया जाता रहा. यहां तक कि एनएसआईसी की तरफ से होने वाले क्षमता निर्धारण एवं मॉनिटरी लिमिट संबंधी प्रमाणन की प्रक्रिया भी बदल दी गई. इससे छोटी इकाइयों को सरकारी टेंडर में सिक्योरिटी राशि से राहत मिल जाती थी. वो भी खत्म हो गयी।
आगरा के बूट उद्योग से परोक्ष और अपरोक्ष रूप से लाखों लोग जुड़े हैं जो धीरे धीरे अपना कामकाज छोड़कर घर बैठ रहे हैं श्रमिकों जो वर्षों से बूट बनाने का काम ही करते थे वो आज रोजी रोटी के संकट से भयवीत नजर आते हैं।
आगरा के बूट कारोबारीयों की सप्लाई
यूपी पुलिस, पीएसी, पीएनटी, बीएसएफ, सीआईएसएफ, सीआरपीएफ, आईटीबीपी, इंडियन नेवी, एयरफोर्स, इंडियन आर्मी, बीआरओ, आसाम राइफल्स, एनसीसी, एनटीपीसी, यूपी गवर्नमेंट स्कूल सहित देश भर की अन्य आर्म्ड फोर्सेस में बूट सप्लाई करती आ रहे हैं।
फिलहाल आगरा के बूट मैन्युफैक्चर्स एसोसिएशन केंद्र सरकार से मांग की है कि खरीद नीति में बदलाव व GEM के टेंडर्स से टर्नओवर क्लॉज को तत्काल हटाए, जिससे दम तोड़ रहे बूट उद्योग को ऑक्सीजन मिल सके सरकार यह ना भूले कि सबका साथ सबका विकास के वायदे पर ही भरोसा कर देश की जनता ने उन्हें केंद्र की गद्दी पर बैठाया है अगर सरकार सीघ्र उनकी समस्या पर ध्यान नही देगी तो आगरा का सैकड़ों साल पुराना बूट उद्योग दम तोड़ देगा।