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पितृपक्ष विशेष:
विवेक कुमार जैन
आगरा: वैदिक सूत्रम चेयरमैन एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि इस भौतिक मायावी संसार में मृत्यु तो एक पूर्ण वास्तविकता है, इस भौतिक मायावी संसार से एक न एक दिन सभी व्यक्तियों को इस भौतिक शरीर से मुक्त होना ही होता है। पौराणिक गरुड़ पुराण में बताया गया है कि मृत्यु के बाद आत्मा जब शरीर से निकल जाती है तो कुछ समय तक वह अचेत स्थिति में रहती है। चेतना आने पर आत्मा अपने शरीर को देखकर मोहवश अपने परिवार और अपने शरीर को देखकर दुःखी होती रहती है और परिजनों से बात करना चाहती है, वह फिर से अपने भौतिक शरीर में लौटने की कोशिश करती है लेकिन शरीर में फिर से प्रवेश नहीं कर पाती है। इसके बाद यम के दूत आत्मा को अपने साथ तीव्र गति से लेकर यम के दरबार में पहुंचा देते हैं। पौराणिक पुराणों के अनुसार यहां चित्रगुप्त और यम के सभासद व्यक्ति के कर्मों का लेखा-जोखा विश्लेषण करके वापस उस आत्मा को परिजनों के पास पहुंचा देते हैं।
कुल मिलाकर उपरोक्त तथ्यों के आधार पर हम यह समझ सकते हैं कि यम के दरबार से वापस लौटकर पृथ्वी लोक पर मृत व्यक्ति की आत्मा मृत्यु के 12 दिनों तक प्रेतावस्था में परिवार वालों के बीच में रहती है और परिजनों द्वारा दिए गए पिंडदान को ग्रहण करती है और दिए गए जल को पीती हैं जिससे अंगूठे के आकार का इनका अभौतिक शरीर तैयार होता है जिन्हें व्यक्ति के द्वारा जीवित अवस्था में किए गए कर्मों का फल भोगना होता है। इसी अभौतिक शरीर को यम के दूत 12वें दिन यमपास में बांधकर यममार्ग पर ले जाते हैं। गरुड़ पुराण में बताया गया है कि यममार्ग का सफर बहुत ही कठिन होता है। इस मार्ग पर व्यक्ति को उनके कर्मों के अनुसार कष्ट प्राप्त होता है। 12 महीने में 16 नगरों और कई नरकों को पार करके आत्मा यमलोक पहुंचती है।
एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि पौराणिक गरुड़ पुराण में बताया गया है कि मृत्यु के बाद हर व्यक्ति को 12 दिनों के लिए प्रेत योनी में जाना होता है। यह 12 दिन मृत्यु को प्राप्त व्यक्ति की आत्मा को अभौतिक शरीर दिलाने के लिए होता है। यही अभौतिक शरीर पुण्य के प्रभाव से स्वर्ग और पाप के प्रभाव से नरक-गामी होता है। कर्म भोगने वाले इस भौतिक शरीर द्वारा कर्म के फल को भोग लिए जाने के बाद फिर से जीवात्मा को नया शरीर प्राप्त होता है। स्वर्ग गए लोग अपने पुण्य के प्रभाव से धनवान और सुखी परिवार में जन्म लेते हैं या अपने कर्मों से धनवान होते हैं।
एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि पौराणिक गरुड़ पुराण जिसमें कि व्यक्ति की मृत्यु के बाद की स्थिति का वर्णन किया गया है, उसमें बताया गया है, जो लोग पुण्यात्मा होते हैं केवल वही भगवान विष्णु के दूतों द्वारा विष्णु लोक को जाते हैं। इन्हें प्रेत योनी में नहीं जाना होता है बाकी सभी लोगों को मृत्यु के बाद प्रेत योनी से गुजरना ही होता है। मृत्यु के बाद जब आत्मा को यमलोक लाया जाता है तो यम के दूत एक दिन में उस अभौतिक शरीर को एक दिन में 1600 किलोमीटर चलाते हैं। महीने में एक दिन मृत्यु तिथि के दिन आत्मा को ठहरने का मौका दिया जाता है।
कुल मिलाकर उपरोक्त तथ्य को हम इस प्रकार आसानी से समझ सकते हैं, गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है जो व्यक्ति सूर्य की 6 माह के उत्तरायण अवधि में जो कि प्रत्येक वर्ष 14 जनवरी से लेकर 15 जुलाई तक रहती है अर्थात जो व्यक्ति सूर्य की 6 माह की उत्तरायण अवधि के दौरान अपने भौतिक शरीर को वर्ष के शुभ माहों एवम विशेष शुभ नक्षत्र में इस भौतिक शरीर को त्यागते हैं वो जन्म मरण के बंधनों से पूर्ण रूप से मुक्त होकर भगवान श्री हरि विष्णु के धाम पहुंचते हैं। और जो व्यक्ति सूर्य की 6 माह की दक्षिणायायन अवधि अर्थात 16 जुलाई से लेकर 13 जनवरी के दौरान अपने भौतिक शरीर को त्यागते हैं, वो व्यक्ति फिर दुबारा से इस पृथ्वी लोक पर अपने अच्छे औऱ बुरे कर्मोनुसार विभिन्न योनियों में जन्म लेते हैं अर्थात जन्म मरण के बंधनों से मुक्त नहीं हो पाते हैं।
पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि पौराणिक गरुड़ पुराण में बताया गया है कि मृत्यु तिथि पर व्यक्ति की मृत्यु के बाद पूरे एक वर्ष तक अन्न जल का दान और तर्पण करना चाहिए। इन दिनों किए गए अन्न दान और ब्राह्मण भोजन से यमदूतों और मृत व्यक्ति की आत्मा को बल मिलता है, जिससे वह आगे का सफर तय कर पाते हैं। जिन परिवारों में लोग ऐसा नहीं करते हैं उनके परिजन यममार्ग में कष्ट भोगते हैं और अपने परिवार के लोगों को शाप देते हैं, जिनसे पितृदोष का प्रकोप लग जाता है और जीवन में कई तरह की परेशानियां आने लगती हैं।