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विवेक कुमार जैन
आगरा: वैदिक सूत्रम चेयरमैन एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने राधाष्टमी के सन्दर्भ में बताते हुए कहा कि राधाष्टमी पर्व सम्पूर्ण बृज क्षेत्र में भाद्रपद शुक्ल पक्ष पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है।जो इस बार बृज क्षेत्र में 14 सितंबर 2021 को मनाई जाएगी ।
एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने राधा कृष्ण के अमर प्रेम के रहस्मयी तथ्यों के सन्दर्भ में गहराई से बताते हुए कहा कि द्वापरयुग की अमर प्रेम की सच्ची दास्तां, श्रीकृष्ण-राधा की कहानी हमेशा से ही जिज्ञासा का विषय रही है। हिंदू धर्म के अनुयायियों के बीच सच्चा प्यार करने वालों के लिए उदाहरण के तौर पर राधा-कृष्ण का मिलना और मिलकर बिछड़ जाने जैसी अमर प्रेम कहानी सदियों से बहुत लोकप्रिय है। हिंदू धर्म से संबंधित जहां अन्य देवी-देवता अपने चमत्कारों की वजह से ज्यादा जाने जाते हैं वहीं भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण अपनी रासलीला और प्रेम लीला की वजह से अपने अनुयायियों के बीच अधिक लोकप्रिय हैं। राधा और कृष्ण की अमर प्रेम कहानी की शुरुआत उन दोनों के बचपन से ही हो गई थी परंतु एक-दूसरे के प्रति पूरी तरह समर्पित होने के बाद, एक-दूसरे से बेइंतहा प्रेम करने के बाद भी वह पति-पत्नी नहीं बन पाए सिर्फ प्रेमी-प्रेमिका बनकर ही रह गए। श्रीकृष्ण ने जहां रुक्मिणी से विवाह कर लिया वहीं इस बीच राधा कहां गुम हो गईं इसके बारे में कभी ज्यादा जिक्र ही नहीं किया गया
वैदिक सूत्रम चेयरमैन पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि इस बात में कोई संदेह नहीं है कि राधा, देवी लक्ष्मी के अवतार के रूप में इस धरती पर जन्मीं थी और ये बात भी हम सभी जानते हैं कि श्रीकृष्ण विष्णु के अवतार थे। देवी लक्ष्मी ने स्वयं यह कहा था कि उनका विवाह विष्णु के अलावा और किसी से नहीं होगा। ऐसे में ये बात गौर करने लायक है कि फिर तो निश्चित रूप से राधा ने कृष्ण से विवाह किया होगा। ऐसा कहा जाता है कि एक जंगल में स्वयं ब्रह्मा ने राधा और कृष्ण का विवाह करवाया था।
पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि पौराणिक कथाओं के अनुसार श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी से विवाह किया था लेकिन यह विवाह क्यों हुआ इस बारे में सोचा जाए तो कई सवाल खड़े हो जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि रुक्मिणी राधा की ही तरह बचपन से श्रीकृष्ण को अपना जीवन साथी बनाना चाहती थीं लेकिन उनके भाई शिशुपाल से उनका विवाह तय कर चुके थे। ऐसे में रुक्मिणी ने श्रीकृष्ण को पत्र लिखकर उनसे कहा कि अगर उनका विवाह श्रीकृष्ण से नहीं हुआ तो वह जान दे देंगी। रुक्मिणी से पहले कभी न मिले, बिना पहले उन्हें कभी जाने, श्रीकृष्ण कैसे और क्यों उनकी जान बचाने के लिए उनसे विवाह करने के लिए राजी हो गए यह एक रहस्य है। पुराणों में कहा जाता है कि राधा और रुक्मिणी दोनों एक ही थीं। रुक्मिणी को राधा का आध्यात्मिक अवतार माना गया है। इसलिए जहां राधा का जिक्र उठता है वहां रुक्मिणी का नाम नहीं होता और जहां रुक्मिणी का नाम होता है वहां राधा का जिक्र नहीं आता।
वैदिक सूत्रम चेयरमैन एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि गर्ग संहिता के अनुसार श्रीकृष्ण के पिता उन्हें अक्सर पास के भंडिर ग्राम में ले जाया करते थे। एक बार वह अपने पिता के गोद में खेल रहे थे कि अचानक तेज रोशनी चमकी और मौसम बिगड़ने लगा, कुछ ही समय में आसपास सिर्फ और सिर्फ अंधेरा छा गया। इस अंधेरे में एक पारलौकिक शख्सियत का अनुभव हुआ, वह राधा रानी के अलावा और कोई नहीं थी। अपने बाल रूप को छोड़कर श्री कृष्ण ने किशोर रूप धारण कर लिया और इसी जंगल में ब्रह्मा जी ने विशाखा और ललिता की उपस्थिति में राधा-कृष्ण का गंधर्व विवाह करवा दिया। विवाह के बाद माहौल सामान्य हो गया, राधा ब्रह्मा, विशाखा और ललिता अंतर्ध्यान हो गए और श्रीकृष्ण वापस अपने बाल रूप में आ गए।
एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण से राधा पहली बार तब अलग हुई, जब श्रीकृष्ण वृंदावन छोड़कर बलराम के साथ कंस के निमंत्रण पर मथुरा जा रहे थे। तब उन्हें भी नहीं मालूम था कि उनका जीवन बदलने का वाला है। यह प्रेमपूर्ण जीवन अब युद्ध की ओर जाने वाला है। राधा के लिए तो जैसे सब कुछ खत्म होने जैसा था। बस, श्रीकृष्ण राधा से उस वक्त सिर्फ इतना ही कह पाए कि ‘मैं वापस लौटूंगा।’ लेकिन श्रीकृष्ण कभी नहीं लौटे और मथुरा में वे एक लंबे संघर्ष में उलझ गए। बाद में उन्होंने रुक्मणि से विवाह कर लिया और द्वारिका में अपनी एक अलग जिंदगी बसा ली। जब श्रीकृष्ण वृंदावन से निकल गए तब राधा की जिंदगी ने एक अलग ही मोड़ ले लिया था। राधा का विवाह हो गया, लेकिन राधा श्रीकृष्ण के विरह में जीती और मरती रहीं। राधा ने अपना दांपत्य जीवन ईमानदारी से निभाया और जब वे वृद्ध हो गईं तो उसके मन में मरने से पहले एक बार श्रीकृष्ण को देखने की इच्छा जाग्रत हुई।
एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि कुल मिलाकर हम यह कह सकते हैं कि सारे कर्तव्यों से मुक्त होने के बाद राधा आखिरी बार अपने प्रियतम श्रीकृष्ण से मिलने गईं। जब राधा द्वारका पहुंचीं तो उन्होंने श्रीकृष्ण के महल और उनकी 8 पत्नियों को देखा, लेकिन वे दुखी नहीं हुईं। जब श्रीकृष्ण ने राधा को देखा तो वे बहुत प्रसन्न हुए। कहते हैं कि दोनों संकेतों की भाषा में एक-दूसरे से काफी देर तक बातें करते रहे। तब राधा के अनुरोध पर श्रीकृष्ण ने उन्हें महल में एक देविका के पद पर नियुक्त कर दिया।
पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि कहा जाता है कि वहीं पर राधा महल से जुड़े कार्य देखती थीं और मौका मिलते ही राधा श्रीकृष्ण के दर्शन कर लेती थीं। एक दिन उदास होकर राधा ने महल से दूर जाना तय किया। उन्होंने सोचा कि वे दूर जाकर दुबारा श्रीकृष्ण के साथ गहरा आत्मीय संबंध स्थापित करेंगी। हालांकि श्रीकृष्ण तो अंतरयामी थे और वे राधा के मन की बात जानते थे। कहते हैं कि राधा एक जंगल के गांव में रहने लगीं। धीरे-धीरे समय बीता और राधा बिलकुल अकेली और कमजोर हो गईं। उस वक्त उन्हें भगवान श्रीकृष्ण की याद सताने लगी। आखिरी समय में भगवान श्रीकृष्ण उनके सामने आ गए। भगवान श्रीकृष्ण ने राधा से कहा कि वे उनसे कुछ मांग लें, लेकिन राधा ने मना कर दिया। श्रीकृष्ण के दुबारा अनुरोध करने पर राधा ने कहा कि वे आखिरी बार उन्हें बांसुरी बजाते देखना और सुनना चाहती हैं। श्रीकृष्ण ने बांसुरी ली और बेहद सुरीली धुन में बजाने लगे।
वैदिक सूत्रम चेयरमैन एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि राधा की हार्दिक इच्छानुसार श्रीकृष्ण ने दिन-रात बांसुरी बजाई। बांसुरी की धुन सुनते-सुनते एक दिन राधा ने अपने शरीर का त्याग कर दिया। कहते हैं कि श्रीकृष्ण अपनी प्रेमिका की मृत्यु बर्दाश्त नहीं कर सके और उन्होंने बांसुरी तोड़कर झाड़ी में फेंक दी। उसके बाद से श्रीकृष्ण ने जीवन में कभी बांसुरी नहीं बजाई।