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विवेक कुमार जैन
आगरा:16 अप्रैल।
वैदिक सूत्रम चेयरमैन एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने चैत्र पूर्णिमा के पौराणिक महत्व के सन्दर्भ में बताते हुए कहा कि चैत्र पूर्णिमा हिन्दू नववर्ष के प्रथम मास की प्रथम पूर्णिमा है, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने ब्रज में रास उत्सव रचाया था, जिसे महारास के नाम से जाना जाता है। इस महारास में हजारों गोपियों ने भाग लिया था और प्रत्येक गोपी के साथ भगवान श्रीकृष्ण रात भर नाचे थे, उन्होंने यह कार्य अपनी योग-माया के द्वारा किया था।
एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि उत्तर भारत में चैत्र पूर्णिमा को हनुमान जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि हनुमान जयंती भगवान रुद्र के अवतार हनुमान जी के जन्म-दिन के रूप में भी मनाई जाती है। इस दिन हनुमानजी के भक्तगण बजरंगबली के नाम का व्रत रखते हैं। प्रत्येक वर्ष हनुमान जयंती चैत्र मास (हिन्दू माह) की पूर्णिमा को मनाई जाती है, हालांकि कई स्थानों में यह पर्व कार्तिक मास (हिन्दू माह) के कृष्ण पक्ष के चौदहवें दिन अर्थात नरक चतुर्दशी को भी मनाई जाती है।
वैदिक सूत्रम चेयरमैन पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि हनुमान जी के जन्म को लेकर पौराणिक शास्त्रों में कई कथाएं प्रचलित हैं।पौराणिक शास्त्रों के अनुसार हनुमान जी को अंजनी पुत्र भी कहा जाता है, क्योंकि हनुमान जी अंजनी के पुत्र हैं। और अंजनी पौराणिक उल्लेखों के मुताबिक महर्षि गौतम की पत्नी अहिल्या की पुत्री थीं। पौराणिक उल्लेखों के मुताबिक अंजना एक अप्सरा थीं, हालांकि उन्होंने श्राप के कारण पृथ्वी पर जन्म लिया और यह श्राप उन पर तभी हट सकता था जब वे एक संतान को जन्म देतीं। वाल्मीकि रामायण के अनुसार केसरी श्री हनुमान जी के पिता थे। वे सुमेरू के राजा थे और केसरी देवताओं के मंत्री बृहस्पति के पुत्र थे। अंजना ने संतान प्राप्ति के लिए 12 वर्षों की भगवान शिव की घोर तपस्या की और परिणाम स्वरूप उन्होंने संतान के रूप में हनुमानजी को प्राप्त किया। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार हनुमानजी ने त्रेता युग में भगवान शिव के रूद्र अवतार में जन्म लिया था और उन्हें भगवान श्री राम ने त्रेता युग में पृथ्वी लोक पर कलियुग के अंत तक चिरंजीवी होने का वरदान दिया था।
एस्ट्रोलॉजर पंडित गौतम ने बताया कि श्री राम के वरदान के फलस्वरूप कलियुग में आज भी जीवित हैं हनुमानजी अर्थात हनुमान चालीसा की एक चौपाई में कहा गया है चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा।।
संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।। अंतकाल रघुवरपुर जाई, जहां जन्म हरि-भक्त कहाई॥
और देवता चित्त ना धरई, हनुमत सेई सर्व सुख करई॥
पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि उपरोक्त चौपाई के भावार्थ के अनुसार चारों युग में हनुमानजी के ही परताप से जगत में उजियारा है, हनुमान को छोड़कर और किसी देवी-देवता में चित्त धरने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि कलियुग में आज भी हनुमानजी हमारे बीच इस धरती पर सशरीर मौजूद हैं। कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि हनुमान जी इस कलियुग में सबसे ज्यादा जाग्रत और साक्षात प्रत्यक्ष देवता हैं।वर्तमान के मायावी कलियुग में हनुमान की भक्ति ही लोगों को दुख और संकट से बचाने में सक्षम है। लेकिन आजकल बहुत से किसी भी समस्या से पीड़ित व्यक्ति किसी भी असामान्य समस्याओं के समाधान की प्राप्ति के लिए तांत्रिकों के चक्करों में भटकते रहते हैं, क्योंकि वे हनुमान की भक्ति-शक्ति को नहीं पहचानते। ऐसे भटके हुए लोगों का राम ही भला करे।