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विवेक कुमार जैन
आगरा: 29 अगस्त ।वैदिक सूत्रम चेयरमैन भविष्यवक्ता पंडित प्रमोद गौतम ने भगवान श्रीकृष्ण की जन्मकुंडली के संदर्भ में बताते हुए कहा कि वैदिक सनातन मान्यता में विष्णु के दो अवतार ऐसे हुए हैं जिनकी कुण्डली भी उपलब्ध है। वैदिक हिन्दू ज्योतिष शास्त्र की गहराई को समझने के लिए इन दोनों अवतारों की कुण्डलियों के विश्लेषण के बाद उसके आध्यातिमक सार को समझना चाहिए चूंकि दोनों अवतारों की जीवनी और कुण्डली उपलब्ध है,तो बहुत से भेद इन कुण्डलियों के विश्लेषण से हमें हासिल हो जाते हैं।
पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि भगवान श्रीराम की कर्क लग्न की कुण्डली में जहां बुध के अलावा सभी ग्रहों को उच्च अवस्था प्राप्त थी वहीं भगवान श्री कृष्ण की कुण्डली में चंद्र, मंगल, शनि और बुध उच्च के हैं और राहू के अलावा शेष ग्रह स्वराशि में स्थित हैं।
श्री गौतम ने बताया कि श्रीकृष्ण की जन्मकुंडली में लग्न में चंद्रमा के साथ केतू होने के बावजूद भगवान श्रीकृष्ण सनातन मान्यता के पूर्ण अवतार हुए हैं।
वैदिक हिन्दू ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद महीने की कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को महानिशीथ काल में वृष लग्न में हुआ। उस समय चंद्रमा रोहिणी नक्षत्र में भ्रमण कर रहे थे। रात्रि के ठीक 12 बजे क्षितिज पर वृष लग्न उदय हो रहा था तथा चंद्रमा और केतु लग्न में विराजित थे। चतुर्थ भाव सिंह राशि मे सूर्यदेव, पंचम भाव कन्या राशि में बुध, छठे भाव तुला राशि में शुक्र और शनिदेव, सप्तम भाव वृश्चिक राशि में राहू, भाग्य भाव मकर राशि में मंगल तथा लाभ स्थान मीन राशि में बृहस्पति स्थापित हैं। भगवान श्री कृष्ण की जन्मकुंडली में राहु को छोड़कर सभी ग्रह अपनी स्वयं राशि अथवा उच्च अवस्था में स्थित हैं। यह ग्रहों की उस काल की गणितीय स्थिति थी।
हालांकि श्रीकृष्ण की जन्म कुण्डली को लेकर कई भेद हैं, लेकिन यह गणितीय स्थिति अब तक सर्वार्थ शुद्ध उपलब्ध है। इसके कई प्रमाण हमें मिलते हैं। श्रीमदभागवत की अन्वितार्थ प्रकाशिका टीका में दशम स्कन्ध के तृतीय अध्याय की व्याख्या में पंडित गंगासहाय ने ख्माणिक्य ज्योतिष ग्रंथ के आधार पर इसका उल्लेख किया है।
वैदिक सूत्रम चेयरमैन पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण की जन्मकुण्डली के विश्लेषण के बाद वैदिक हिन्दू ज्योतिष के कई सूत्र स्पष्ट होते हैं। पहला सूत्र तो यह कि द्वितीय भाव निष्किलंक हो यानी किसी ग्रह की दृष्टि अथवा दुष्प्रभाव न हो और द्वितीयेश उच्च का हो तो जातक ऊंचे स्तर का वक्ता होता है। अर्थात भगवान श्रीकृष्ण की वृषभ लग्न में द्वितीयेश बुध उच्च का होकर पंचम भाव में स्थित है जो श्रीकृष्ण को ऐसा वक्ता बनाता है कि भरी सभा में जब श्रीकृष्ण बोल रहे हों तो कोई उनकी बात को काटता नहीं है। शिशुपाल जैसा मूर्ख अगर मूर्खतापूर्ण तरीके से टोकता भी है तो उसका वध भी निश्चित हो जाता है।
*श्रीकृष्ण की कुंडली का पराक्रम भाव*
पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि तीसरे भाव और पराक्रम का सीधा संबंध है। श्रीकृष्ण की कुण्डली में तीसरा भाव बहुत ही महत्वपूर्ण है। इस भाव का अधिपति चंद्रमा उच्च का होकर लग्न में बैठता है। इसके साथ ही इस भाव को उच्च का शनि और उच्च का मंगल भी देखता है। जिस भाव पर मंगल और शनि दोनों की दृष्टि हो उस भाव से संबंधित फलों में तीव्र उतार चढ़ाव देखा जाता है। एक तरफ हमें चौअक्षुणी सेना और कौरवों के महारथियों के बीच स्थिर भाव से खड़े होकर अर्जुन को युद्ध के लिए प्रेरित करते श्रीकृष्ण दिखाई देते हैं, तो दूसरी ओर उन्हीं श्रीकृष्ण को हम रणछोड़दास के रूप में भी देखते हैं। हंसी खेल की तरह पूतना से लेकर कंस तक का वध कर देने वाले श्रीकृष्ण हमें मथुरा छोड़ द्वारिका बसाते हुए भी मिल जाते हैं। एक तरफ पराक्रम की पराकाष्ठा दिखाई देती है तो दूसरी तरफ रण छोड़ देने की कला भी। यह दोनों पराकाष्ठाएं मंगल और शनि के तृतीय यानी पराक्रम भाव को प्रभावित करने के कारण दृष्टिगोचर होती हैं।
*श्रीकृष्ण की कुंडली में भ्राता और बाल सखा*
वैदिक सूत्रम चेयरमैन पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि जन्मकुंडली के एकादश भाव में सूर्य किसी भी जातक के बड़े भाई और सखाओं के बारे में बताता है। श्रीकृष्ण की जन्मकुंडली में यहां उपस्थित बृहस्पति हमें बताता है इन दोनों का ही प्रमुख रूप से अभाव रहेगा। श्रीकृष्ण से पहले पैदा हुए सात भाई बहिन कंस की सनक के कारण काल का ग्रास बन गए। बलराम को भी अपनी मां की कोख छोड़कर रोहिणी की कोख का सहारा लेना पड़ा, तब पैदा हुए और श्रीकृष्ण के साथ बड़े हुए। सगे भाई होते हुए भी सौतेले भाई की तरह जन्म हुआ। बाद में स्यमंतक मणि के कारण श्रीकृष्ण और बलराम के बीच मतभेद हुए, महाभारत के युद्ध में भी बलराम ने भाग नहीं लिया क्योंकि पाण्डवों के शत्रु दुर्योधन को उन्होंने गदा चलाने की शिक्षा दी थी। कुल मिलाकर भ्राता के रूप में बलराम कृष्ण के लिए उतने अनुकूल नहीं रहे, जितने एक भ्राता के रूप में होने चाहिए थे। अगर बलराम पाण्डवों की ओर से युद्ध में आ खड़े होते तो पाण्डवों का पलड़ा युद्ध से पहले ही भारी हो चुका होता। लेकिन श्रीकृष्ण लीला को यह मंजूर नहीं था, सो बलराम दूर रहे।
*श्रीकृष्ण की कुंडली में चतुर्थ स्थान में अर्थात माता के भाव में स्वराशिस्थ सूर्य*
पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि सूर्य जिस भाव में बैठता है, उस भाव को सूर्य का ताप झेलना पड़ता है, श्रीकृष्ण की कुण्डली में सूर्य चतुर्थ भाव में स्थित है, जो माता का वियोग निश्चित रूप से देता है। एक ही बार नहीं, माता देवकी और माता यशोदा दोनों को पुत्रवियोग झेलना पड़ा था। जन्म के बाद श्रीकृष्ण अपनी जन्मदायी मां के पास नहीं रह पाए और किशोरावस्था में पहुंचते पहुंचते अपना पालन करने वाली माता को भी त्याग देना पड़ा।
*श्रीकृष्ण की कुंडली में एकादश अर्थात लाभ भाव में स्वराशिस्थ बृहस्पति*
वैदिक सूत्रम चेयरमैन पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि ब्रहस्पति ऐसा ग्रह है जो जिस भाव में बैठता है उस भाव को तो नष्ट करता ही है, साथ ही लाभ के भाव में हानि और व्यय के भाव में लाभ देने वाला साबित होता है। यहां लाभ भाव में बैठा वृहस्पति वास्तव में कृष्ण की सभी सफलताओं को बहुत अधिक कठिन बना देता है। यह तो उस अवतार की ही विशिष्टता थी कि हर दुरूह स्थिति का सामना दुर्धर्ष तरीके से किया और अपनी लीला को ही खेल बना दिया। पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि एकादश भाव शनि का भाव है, इस भाव में वृहस्पति के बैठने पर जातक को कोई भी सफलता सीधे रास्ते से नहीं मिलती है। जातक को अपने हर कार्य को संपादित करने के लिए जुगत लगानी पड़ती है। श्रीकृष्ण को चाहे जीवित रखने के लिए संतान बदलनी पड़े, चाहे शिशुपाल को मारने के लिए सुदर्शन चक्र चलाना पड़े, चाहे यदुवंश के विकास के लिए द्वारिका जाना पड़े, चाहे जरासंघ के वध के लिए भीम का अनुनय करना पड़े, हमें श्रीकृष्ण अपने हर कार्य के लिए विशिष्ट युक्ति प्रयोग करते हुए दिखाई देते हैं। सामान्य रूप से इन युक्तियों का इस्तेमाल भी असंभव जान पड़ता है, लेकिन श्रीकृष्ण सहज रूप से अपने लिए उन स्थितियों को गढ़ते चले जाते हैं।
*श्रीकृष्ण की कुंडली में पंचम में अर्थात संतान भाव में उच्च राशिस्थ बुध*
वैदिक सूत्रम चेयरमैन पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि सामान्य तौर पर ज्योतिषीय कोण से देखा जाए तो पंचम भाव में बुध की उपस्थिति कन्या के जन्म होने का संकेत करती है, लेकिन किसी भी जातक की कुण्डली में चंद्रमा जितना अधिक मजबूत होगा, जातक के पुत्र होने की संभावनाएं बढ़ेंगी और कुण्डली में चंद्रमा के बलहीन होने पर कन्या संतति होने की संभावना अधिक होती है।पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण की कुण्डली में पंचम में उच्च का बुध देखकर सूरदासजी जहां अधिक संतति की बात करते हैं, वहीं पुत्र संतति के लिए लग्न में बलशाली चंद्रमा और देवगुरु बृहस्पति के योग को अधिक सबल माना जाता है। यहां बुध केवल संतति की संख्या अधिक होने की ओर ही इंगित करता है। अथवा संतति होने अथवा नहीं होने के योग को दर्शाता है, अधिक या कम होने को हम पंचम भाव से ही देखेंगे, लेकिन पुत्र होगा अथवा पुत्री यह देखने के लिए हमें कुण्डली में चंद्रमा और देवगुरु बृहस्पति की स्थिति को प्रमुख रूप से देखना होगा।
*श्रीकृष्ण की कुंडली में छठवें भाव अर्थात रोग-रिपु भाव में उच्च के शनि और स्वराशिस्थ शुक्र की एक साथ युति*
वैदिक सूत्रम चेयरमैन पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण की कुण्डली में जो सबसे शक्तिशाली भाव है वह है छठा यानी रोग, ऋण और शत्रु का भाव। यहां हमें एक व्याघात देखने को मिलता है। श्रीकृष्ण का जन्म विपरीत परिस्थितियों में होता है, शत्रु की छांव में होता है। जन्म के छठे दिन ही पूतना का वध करते हैं। मात्र 11 साल की उम्र में उस दौर के सबसे शक्तिशाली दुर्दांत सम्राट कंस का वध करते हैं। होना तो यह चाहिए था कि श्रीकृष्ण कंस को मारकर राजा बन जाते और शेष बचे शत्रु या तो स्वयं झुक जाते अथवा उन्हें खत्म किया जाता, लेकिन श्रीकृष्ण ने ये दोनों ही काम नहीं किए। इतना ही नहीं चाहे मथुरा हो या द्वारिका कहीं भी स्वयं राजा के तौर पर स्थिर नहीं हुए। इसके साथ ही शत्रुओं का दबाव आखिर तक बना रहा। छठे भाव में उच्च के शनि ने उन्हें शक्तिशाली शत्रु दिए। षष्ठम भाव मातुल यानी मामा का भी होता है, तो यहां मामा ही शत्रु के रूप में उभरकर आए।
पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि जब हम श्रीकृष्ण की कुंडली के छठवें भाव को भावात् भाव सिद्धांत से देखें तो मामा का तुला लग्न हुआ और तुला लग्न का बाधक स्थान ग्यारहवां भाव होता है। यानी श्रीकृष्ण की कुण्डली का चौथा भाव यहां सिंह राशि है जिसमें सूर्य स्वक्षेत्री होकर बैठा है। ऐसे में मामा के लिए चतुर्थ का सूर्य बाधक स्थानाधिपति की भूमिका निभाता है। इसी के साथ छठे भाव में स्वराशि का शुक्र भी शत्रुओं का नाश करने वाला सिद्ध होता है।
श्रीकृष्ण का लग्नेश ही छठे भाव में स्वग्रही होकर बैठ गया है। ऐसे में वे खुद प्रथम श्रेणी के पद नहीं ले रहे हैं, लेकिन हर प्रतिस्पर्द्धा में, हर युद्ध में, हर वार्ता में वे श्रेष्ठ साबित होते जा रहे हैं। यह लग्न और षष्ठम का बहुत खूबसूरत मेल है श्रीकृष्ण की जन्मकुंडली में।
*श्रीकृष्ण की कुंडली में सप्तम भाव में स्थित राहू और दांपत्य जीवन*
वैदिक सूत्रम चेयरमैन पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि श्रीकृष्ण का संबंध बहुत सी गोपिकाओं और राजकुमारियों से रहा। श्रीकृष्ण ने कुल 16 हजार 108 विवाह किए।
पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि सप्तम भाव को हमें आध्यातिमक नजरिये से देखना होगा कि स्त्री और पुरुष का संबंध हर बार केवल शारीरिक ही नहीं होता है। श्रीकृष्ण कहीं न कहीं आध्यात्मिक रूप से जुड़े दिखाई देते हैं, कहीं साधारण दांपत्य जीवन के रूप में, कहीं गोपिकाओं से शरारत के अंदाज में तो कहीं उद्धारक के रूप में। श्रीकृष्ण की जन्मकुंडली में सप्तम भाव में स्थित राहू को देखकर सूरदासजी कहते हैं रसिक शिरोमणी का ऊंच नीच हर कुल की स्त्री से संबंध रहा,
पंडित प्रमोद गौतम ने इसका गहराई से विश्लेषण करते हुए बताया कि इस भाव में स्थित राहु का संबंध से तात्पर्य केवल शारीरिक संपर्क नहीं है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि राहू जिस भाव में बैठेगा उस भाव के संबंध में अनिश्चितता बनाए रखेगा। सप्तम भाव केवल पत्नी का ही नहीं होता है। यात्रा में साथ चल रहे सहयात्री का, व्यवसाय में साझेदार का, युद्ध में आपकी ओर से लड़ रहे सहयोद्धा का और तो और एक ही नाव में सवार दो लोगों को भी एक दूसरे के सप्तम भाव से ही देखा जाएगा।
वैदिक सूत्रम चेयरमैन पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि इस प्रकार श्रीकृष्ण हर कुल और वर्ग के साथ संबंध बनाते हुए चलते हैं। इसके बावजूद वे अपना अधिकांश समय किसके साथ और कैसे बिताते हैं कभी स्पष्ट नहीं हो पाता है। एक तरफ गोपिका आकर कहती है कि वह चोर मेरा माखन चुरा रहा था, तो वहीं यशोदा बताती है कि वह अपने खिलौनों से भीतर खेल रहा है। एक तरफ मथुरा से द्वारका की ओर प्रयाण हो रहा है तो दूसरी ओर महाभारत की व्यूह रचना रची जा रही है। इस सबके बावजूद श्रीकृष्ण अपने हर साथी से अकेले मिलने का अवसर भी उठा लेते हैं। यानी श्रीकृष्ण हर समय अकेले भी हैं, किसी न किसी के साथ भी हैं और किसी के साथ नहीं है। अपने साथियों के साथ भी नहीं।