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राष्ट्रीय स्वयं सेवक प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कश्मीरी हिन्दुओं की कश्मीर वापसी इस तरह से होनी चाहिए कि उनको फिर से कोई उजाड़ न सके , उस पर सरकार ही नहीं बल्कि सभी राजनितिक दलों को गंभीरता पूर्वक विचार करना चाहिए , श्री भगवत का यह बयान न केवल कश्मीरी पंडितों दर्द वेदना और उपेक्षा पर मरहम लगाने का काम कर रहा है बल्कि उनके दर्द को समझने के साथ ऐसा वातावरण बनाने में सहयोग देने कि अपेक्षा को उजागर कर रहा है कि कश्मीरी हिन्दुओं कि वापसी सम्मानजनक तरीके से हो, उनको इस तरह से मजबूती से बसाया जाये कि कोई शक्ति फिर से उनके साथ कोई जबरदस्ती न कर सके , उन्हें बहिर्गमन करने कि विवशता न भोगना पढ़े ।
यह एक राष्ट्रीय मुद्दा बनना चाहिए , कश्मीरी पंडितों का बहिर्गमन एक त्रासदी थी , यह एक उत्त्पीडन की पराकाष्ठा थी , एक राजनितिक स्वार्थ की घिनौनी अशोभनीय मानसिकता थी जो वर्ष 1989 के अंतिम चरण से लेकर 1990 के आरंभिक दिनों तक जेकेएलएफ एवं अन्य इस्लामिक उपद्रवियों द्वारा निशाना बनाये जाने की शुरुवात के तुरंत बाद हुए हिन्दू विरोधी नरसंहारों और हमलों की श्रृंखला को संदर्भित करती है , जिससे अंततः कश्मीरी हिन्दू घाटी छोड़कर भागने को मजबूर हुए थे । इसे कश्मीरी पड़ितों का पलायन भी कहा जाता है ।
कांग्रेस , अन्य कश्मीरी राजनीतिक दलों एवं नेताओं ने यह काला अध्याय लिखा और कट्टरवादी शक्तियों ने इसे अंजाम दिया । यही कारण है कि आज भी कांग्रेस सहित कई विपक्षी दल इस बहुचर्चित त्रासदी में बानी फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स ‘ को न केवल ख़ारिज कर रहे हैं बल्कि उसे झूंठी फिल्म भी बता रहे हैं । यह उनकी बौखलाहट और ओछी मानसिकता है जिसके चलते वे इस फिल्म को यू ट्यूब पर डालने की बेतुकी सलाह दे रहे हैं , वहीँ कुछ नेता दुष्प्रचार कर रहे हैं कि इस फिल्म से नफरत फैला रही है । कुछ यह भी समझाने लगे हैं कि सेंसर बोर्ड को यह फिल्म पास ही नहीं करनी चाहिए थी । जबकि यह फिल्म सहस एवं संवेदना कि सार्थक एवं सत्य अभिव्यक्ति है , एक सत्य को लम्बे समय तक दबाये रखने कि कुचेष्टा को चुनौती देते हुए उस सत्य को प्रकट करने कि वीरतापूरवक प्रस्तुति है , यह राष्ट्रीयता को मूर्चिछत करने वाली शक्तियों को करारा तमाचा है ।
कश्मीरी हिन्दुओं की हत्याओं और उनके भयावह उत्त्पीडन की सच्ची घटनों पर आधारित कश्मीर फाइल्स सफलता के नए मापदंड स्थापित कर रही है तो इसलिये कि उसने 32 साल बाद कश्मीर के दिल दहलाने वाले सच को सामने लाने का काम किया है । जो लोग भी कश्मीर फाइल्स को वैमनस्य फ़ैलाने वाली फिल्म बताने कि कुचेस्टा कर रहे हैं , उन्हें एक तो यह जानना चाहिए कि यह फिल्म संयक्त अरब अमीरात में भी रिलीज़ होने जा रही है । दुनिया भर में इस फिल्म कि चर्चाएं हो रही है । सत्य कभी ढका नहीं रह सकता , वह देर सावेर प्रकट होता ही है । लेकिन इस फिल्म को लेकर जो दुष्प्रचार किया जा रहा है वह महज राजनीतिक शरारत ही नहीं बल्कि कश्मीर से मार भगाये गए लाखों कश्मीरी हिन्दुओं पर नमक छिड़कने कि कोशिश ही कर रहे हैं । वे यह देखने से इंकार कर रहे हैं कि कोई भी फिल्म से इंकार कर रहे हैं , कोई भी फिल्म तभी लोकप्रिय होती है जब लोगों के दिलों को छूती है । राष्ट्रीय आदर्शों राष्ट्रीय प्रतीकों और राष्ट्रीय मान्यताओं कि परिभाषा खोजने के लिए और कहीं नहीं , अपनी विराशत में झांकना होगा , अपने अतीत में खोजना होगा . उन पर राजनीतिक रोटियां सेंकना बंद करना होगा अन्यथा राष्ट्र कमजोर होता रहेगा ।
हमें राष्ट्रीय स्तर से सोंचने से सोंचना चाहिए वार्ना इन त्रासदियों से देश आक्रांत होता रहेगा , कश्मीर में रहने वाले हिन्दुओं की संख्या लगभग 3 से 6 लाख तक थी , 2016 में कश्मीर घाटी में केवल 2 से 3 हजार हिन्दू ही शेष हैं ,कश्मीरी हिन्दू 19 जनवरी 1990 के दिन को दुःखद बहिर्गमन दिवस के रूप याद करते हैं । जनवरी का महीना पूरी दुनियां में नए साल के लिए एक उम्मीद लेकर आता है लेकिन कश्मीरी पंडितों के लिए यह महीना दुःख दर्द और निराशा से भरा है । 19 जनवरी प्रतिक बन चूका है उस त्रासदी का , जो कश्मीर में 1990 में घटित हुई । जिहादी इस्लामिक तख्तों ने कश्मीरी पंडितों पर ऐसा कहर ढाया कि उनके लिए सिर्फ तीन विकल्प थे – या तो धर्म बदलो , मारो या पलायन करो । आतंकवादियों ने सैंकड़ों अल्पसंख्यक कश्मीरी पंडितों को मौत के घाट उतार दिया था । कई महिलाओं के साथ सामूहिक दुष्कर्म कर उनकी हत्या कर दी गई।
उन दिनों कितने ही लोगों की आये दिन अपहरण कर मारपीट की जाती थी । पंडितों के घरों पर पत्थरबाज़ी , मंदिरों पर हमले लगातार हो रहे थे , घाटी में उस समय कश्मीरी पांडियन की मदद के लिए कोई नहीं था , ना तो पुलिस ना प्रशासन , ना कोई राज नेता ना कोई मानवाधिकार के लोग । उस समय हालात इतने ख़राब थे कि अस्पतालों में भी हिन्दू समुदाय के साथ भेदभाव हो रहा था । कश्मीरी पंडितों के साथ सड़क से लेकर स्कूल कॉलेज , दफ्तरों में प्रताड़ना हो रही थी – मानसिक , शारीरिक और सांस्कृतिक ।
19 जवारी 1990 की रात को अगर उस समय के नवनियुक्त राज्यपाल ने घाटी में सेना नहीं बुलाई होती तो खमीरी पंडितों का कत्लेआम व् महिलाओं के साथ सामूहिक दुष्कर्म किस सीमा तक होता इसकी कल्पना नहीं की जा सकती । सांप्रदायिक समस्या एवं स्वार्थ की देश तोड़क राजनीति का हल तो तभी प्राप्त हो सकेगा जब इस बात को सारे देश के मस्तिष्क पर बहुत गहराई से बिठा दिया जाये कि भारतवर्ष कि अपनी सांस्कृतिक विशिष्टता है और उसको आत्मसात करने में ही सबका हित है । हिन्दू मुसलमान दोनों को ही जब इस देश में रहना है तो दोनों को ही अपनी – अपनी मानसिकता बदलनी होगी । मोहन भागवत ने कश्मीरी हिन्दुओं के दर्द को साझा करते हुए कहा – मुझे लगता है कि वह दिन बहुत करीब है जब कश्मीरी पंडित अपने घरों में वापस आएंगे और मं चाहता हूँ कि वह दिन जल्दी आये । संघ प्रमुख ने कहा कि फिल्म ने कश्मीरी पंडितों और उनके पलायन कि तस्वीर सामने रख दी है । श्री भागवत ने यह बी कहा कि कश्मीरी पंडितों को अपने कश्मीर लौटने का संकल्प लेना चाहिए ताकि स्थिति जल्दी बदल सके