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श्री राम का जन्म चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी को 27 नक्षत्रों के सम्राट पुष्य नक्षत्र में हुआ था, संयोग से 10 अप्रैल राम नवमी को रवि-पुष्यामृत योग का महा-संयोग होगा- पं प्रमोद गौतम

Ram Navmi Special

Vivek Jain by Vivek Jain
April 7, 2022
in ASTROLOGY, Culture, आध्यात्मिक
Reading Time: 1min read
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श्री राम का जन्म चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी को 27 नक्षत्रों के सम्राट पुष्य नक्षत्र में हुआ था, संयोग से 10 अप्रैल राम नवमी को रवि-पुष्यामृत योग का महा-संयोग होगा- पं प्रमोद गौतम
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आगरा 7 अप्रैल ।
वैदिक सूत्रम चेयरमैन एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने राम नवमी के सन्दर्भ में बताते हुए कहा कि राम नवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार इस दिन मर्यादा-पुरूषोत्तम भगवान श्री राम का 27 नक्षत्रों के सम्राट पुष्य नक्षत्र में जन्म हुआ था। संयोग से वर्ष 2022 में चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि 10 अप्रैल को 27 नक्षत्रों के सम्राट पुष्य नक्षत्र का वर्ष 2022 में रविवार को महा-संयोग पड़ रहा है ऐसा संयोग कई वर्षों बाद नवमी तिथि को पड़ रहा है, जिसे वैदिक हिन्दू ज्योतिष महूर्त प्रणाली में रवि-पुष्यामृत महासिद्ध योग के नाम से पौराणिक काल से जाना जाता है। कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि दिव्य पुष्य नक्षत्र से रविवार को बनने वाला रवि-पुष्यामृत योग इतना प्रभावकारी होता है कि इस रवि-पुष्यामृत योग वाले दिन ग्रहों की बुरी स्थितियां भी कोई प्रतिकूल परिणाम नहीं दे पातीं। कोई शुभ मुहूर्त नहीं हो तो इस महासिद्ध योग में ही सभी कार्य किए जा सकते हैं। केवल विवाह को छोड़कर क्योंकि विवाह के महूर्त में इस दिव्य नक्षत्र का इस्तेमाल नहीं होता है, इसके अलावा सभी कार्यों के शुभारंभ के लिए यह महासिद्ध योग अति उत्तम माना गया है। यह महासिद्ध योग वर्ष में एक या दो बार रविवार को पड़ता है। प्राचीन ऋषि मुनि अपनी किसी साधना के दौरान जप कर रहे किसी विशेष मंत्र या जड़ी-बूटियों की सिद्धि के लिए रवि पुष्यामृत योग के महूर्त का इंतजार करते हैं क्योंकि इस महासिद्ध योग में साधना के दौरान जप किया हुआ विशेष मंत्र बिना किसी विघ्न के पूरी तरह तरह सिद्ध हो जाता है।

एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि वैदिक हिन्दू ज्योतिष शास्त्र में नक्षत्रों का सबसे ज्यादा महत्व है। ब्रह्माण्ड में कुल 27 नक्षत्र हैं जिनमें पुष्य नक्षत्र भी शामिल है जिसके स्वामी ब्रह्माण्ड के न्यायाधीश शनि ग्रह स्वयं हैं। इसे नक्षत्रों का राजा भी कहा जाता है क्योंकि यह बेहद राजसिक फल देता है। यदि यह नक्षत्र रविवार के दिन पडता है तो बहुत शुभ और लाभकारी परिणाम प्राप्त होते हैं। इसलिए इसे रवि पुष्य योग कहा जाता है। यह योग इतना प्रभावकारी होता है कि गोचर की ग्रहों की बुरी स्थितियां भी और प्रतिदिन पड़ने वाले राहु काल के समय में भी किया हुआ कार्य भी प्रतिकूल परिणाम नहीं दे पाता है। कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि कोई शुभ मुहूर्त नहीं हो तो रवि पुष्य योग में ही सभी कार्य किए जा सकते हैं। सभी कार्यों के शुभारंभ के लिए यह योग उत्तम माना गया है। इस योग में सोना खरीदना लाभदायक होता है। नए व्यापार और व्यवसाय को रवि पुष्य योग में शुरुआत करना भी श्रेष्ठ बताया गया है।

एस्ट्रोलॉजर पंडित गौतम ने रवि-पुष्य योग में किए जाने वाले कार्यों के सन्दर्भ में बताते हुए कहा कि वैदिक हिन्दू ज्योतिष में रवि-पुष्य योग के दिन मुख्य रुप से पारंपरिक स्वरुप में कोई दवाई इत्यादि का निर्माण करना बहुत शुभ होता है। क्योंकि इस सिद्ध समय पर बनाई गई औषधी का प्रभाव रोग को जल्द से जल्द समाप्त करने वाला होता है और रोगी को तुरंत लाभ मिलता है। आयुर्वेद में तो यह समय दवाई को बनाने के लिए बहुत ही शुभ और अच्छा माना गया है। इसके अलावा विशेष रोग में रोगी को अगर इस समय पर औषधि खिलाई जाए तो इसका भी सकारात्मक असर पड़ता है ओर रोग की शांति भी जल्द होती है। रवि पुष्य योग में मंत्र सिद्धि एवं यंत्र इत्यादि बनाने का काम भी उपयुक्त होता है और यह दिव्य रवि-पुष्य योग किसी भी महत्वपूर्ण कार्य की शुभता को असंख्य गुना बढ़ाता है।

वैदिक सूत्रम चेयरमैन पंडित प्रमोद गौतम ने राम नवमी के इतिहास के सन्दर्भ में बताते हुए कहा कि राम नवमी का त्यौहार पिछले कई हजार सालों से भारतवर्ष में धूमधाम से मनाया जाता रहा है। राम नवमी का त्यौहार भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान राम के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है।

पंडित गौतम ने बताया कि महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियाँ थीं लेकिन बहुत समय तक कोई भी राजा दशरथ को संतान का सुख नहीं दे पायी थी। जिससे राजा दशरथ बहुत परेशान रहते थे। पुत्र प्राप्ति के लिए राजा दशरथ को ऋषि वशिष्ठ ने पुत्र-कामेष्टि यज्ञ कराने को विचार दिया। इसके पश्चात् राजा दशरथ ने अपने जमाई, महर्षि ऋष्यश्रृंग से यज्ञ कराया। तत्पश्चात यज्ञकुंड से एक दिव्य पुरुष अपने हाथों में खीर की कटोरी लेकर बाहर निकले।

यज्ञ समाप्ति के बाद महर्षि ऋष्यश्रृंग ने दशरथ की तीनों पत्नियों को एक-एक कटोरी खीर खाने को दी। खीर खाने के कुछ महीनों बाद ही तीनों रानियाँ गर्भवती हो गयीं। ठीक 9 महीनों बाद राजा दशरथ की सबसे बड़ी रानी कौशल्या ने राम को जो भगवान विष्णु के सातवें अवतार थे, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने जुड़वा बच्चों लक्ष्मण और शत्रुघ्न को जन्म दिया। भगवान राम का जन्म धरती पर दुष्ट प्राणियों को संघार करने के लिए हुआ था।

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Tags: #Ramnavmi
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