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कुछ आंदोलन खड़े हो चुके हैं कुछ और होने बाकी हैं , सरकार को अति सतर्क रहने की आवश्यकता है
लोकसभा चुनाव की घड़ियां जैस-जैसे समीप आ रही हैं, वैसे-वैसे देश का माहौल बिगाड़ने वाली टूल किट्स भी सक्रिय होनी शुरू हो गयी हैं। टूल किट्स की श्रृंखला में पहला प्रदर्शन देवभूमि उत्तराखण्ड के हलद्वानी में देखने को मिला। हलद्वानी में हिंसा की आग अभी पूरी तरह ठंडी भी नहीं हुई है कि पंजाब से किसान आंदोलन के दूसरी टूल किट लांच हो चुकी है। आंदोलनकारी किसानों से सरकार लगतार बातचीत कर रही है, लेकिन किसानों की मांगों, उनके अड़ियल रूख और पर्दे की पीछे की राजनीति को देखकर मामला आसानी से निपटता दिखता नहीं है।
इन दो टूलकिट्स के बीच पहलवान आंदोलन वाली तीसरी टूलकिट भी सक्रिय हो चुकी है। मामला पूरी तरह साफ है कि लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार की छवि को हर मोर्चे पर डैमेज करना। अभी तो लोकसभा चुनाव तिथियों की घोषणा नहीं हुई है। तिथियों की घोषणा होने तक कई दूसरी टूल किट्स भी सक्रिय हो जाएं तो कोई हैरानी वाली बात नहीं है।पिछले पांच साल में किसान आंदोलन, पहलवान आंदोलन, संसद में शोर शराबा, शाहीन बाग, दिल्ली और नूह में दंगे, मणिपुर की हिंसा, चीन द्वारा जमीन कब्जाने की झूठी कहानियां फैलाना, पेगासस का शोर, फोन टैपिंग और हैंकिंग, अदाणी और अंबानी का विरोध ये सब किसी न किसी टूल किट का ही हिस्सा थे। समय, जरूरत और सामने वाले को देखकर मनचाही टूल किट को सक्रिय कर दिया जाता है और उस पर राजनीति की जाती है। मानवाधिकार की बातें की जाती हैं।
छातियां पीटी जाती हैं, मगरमच्छी आंसू बहाए जाते हैं और देश में अशांति और अराजकता को माहौल दिखाकर अपने उल्लू सीधे किये जाते हैं। सरकार के समझौता करने पर उसे कमजेार और गलत साबित किया जाता है। और सरकार के अड़ने पर उसे तानाशाह और न जाने क्या-क्या क्रूर, असंवैधानिक और आमनवीय उपमाओं से नवाजा जाता है।ऐसा नहीं है कि सरकार का विरोध करने कोई नयी प्रथा है। लोकतंत्र में सशक्त विपक्ष तो बहुत जरूरी माना जाता है। लेकिन जब विरोध केवल विरोध के लिए किया जाए तो उसमें सकारात्मकता का प्रतिशत न्यून हो जाता है। मोदी सरकार जब से सत्ता में आई है, तब से विपक्ष सीधे तौर पर लड़ने की बजाय किसी न किसी टूलकिट के जरिए सरकार की छवि डैमेज करने की रणनीति पर काम कर रहा है। उसे लगता है कि सरकार की छवि डैमेज कर वो माहौल को अपने पक्ष में कर सकता है। वो अलग बात है कि उसे अपने प्रयासों में एक दशक में कामयाबी नहीं मिली। जिस तरह से दिल्ली में शाहीन बाग और किसान आंदोलन के नाम पर साल भर से ज्यादा तक देश की राजधानी को बंधक बनाकर रखा गया, उससे साफ हो गया कि ये आंदोलन स्वतःस्फूर्त नहीं राजनीति से प्रेरित थे। सीएए और एनआरसी का विरोध, दिल्ली दंगे, नूह और हल्द्वानी की हिंसा।
जगह भले ही अलग-अलग थीं लेकिन हिंसा करने का तरीका एक-सा था। सब कुछ पूर्व निश्चित और निर्धारित। अचानक कहीं से भीड़ आएगी, पथराव करेगी, आगजनी करेगी और भयंकर उपद्रव और उत्पात मचाकर एकदम गायब हो जाएगी। वर्तमान में न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी कानून बनाने की मांग को लेकर किसान आंदोलनरत हैं। सरकार और किसानों के अपने अपने तर्क हैं। एमएसपी कानून बनाने की राह बहुत टेढ़ी और मुश्किलें भरी है, ये किसान भी जानते हैं। पर राजनीति से प्रेरित आंदोलनकारी कोई बात सुनने और मानने को तैयार नहीं। दो साल पहले किसान आंदोलन में जो कुछ हुआ उसे पूरा देश जानता है। एक साल तक दिल्ली को बंधक बनाकर रखा तथाकथित किसानों ने। किसान आंदोलन पार्ट टू शुरू हो गया है। सरकार और आंदोलनरत किसानों की बीच बातचीत जारी है। इन सबके बीच भारतीय किसान यूनियन सिद्धूपुर के प्रध् ाान जगजीत सिंह डल्लेवाल एक वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है, जिममें वह कह रहे हैं कि राम मंदिर बनाने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ग्राफ बहुत बढ़ गया था। उसे नीचे लाना है। डल्लेवाल के वीडियो से पूरे किसान आंदोलन पर सवाल खड़े होने शुरू हो गए हैं। क्योंकि लोगों में चर्चा इस बात को लेकर थी ही कि आखिर अचानक ही इतना बड़ा आंदोलन कैसे खड़ा हो गया। क्योंकि 2020 में तीन कृषि कानूनों को लेकर पंजाब के 34 किसान संगठन विरोध कर रहे थे। जबकि यह आंदोलन मात्र 2 किसान संगठनों द्वारा किया जा रहा है।
डल्लेवाल के वीडियो सामने आने से संकेत मिल रहे है कि राम मंदिर बनने के बाद से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जो छवि बनी थी, उसे गिराने के लिए राजनीतिक मंशा के तहत किसान आंदोलन को खड़ा कर लाखों लोगों को परेशानी में डाल दिया गया। क्योंकि डल्लेवाल ने जिस तहत से वीडियो में कहा, मौका बहुत थोड़ा है और मोदी का ग्राफ बहुत ऊंचा। जिससे साफ संकेत मिलते हैं कि उद्देश्य लोक सभा चुनाव को लेकर आचार संहिता लगने से पहले मोदी के खिलाफ माहौल बनाने की थी। क्योंकि आचार संहिता लागू होने के बाद चुनावी गतिविधियों में आंदोलन को खड़ा नहीं किया जा सकता।किसान आंदोलन के बीच कांग्रेस की तरफ से एमएसपी को लेकर कानूनी गारंटी का वादा किया जा रहा है। लेकिन जब यूपीए की सरकार सत्ता में थी तो उसने स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिशें लागू करने से मना कर दिया था।
आज चूंकि अपनी पार्टी की सरकार सत्ता में नहीं है और अगले चुनाव में भी उसके साथ क्या होने वाला है उसे इसकी भी जानकारी है। ऐसे में किसानों का उकसा कर और हवाई वादे करके क्या साबित करना चाहती है, इसे आसानी से समझा जा सकता है।देवभूमि उत्तराखण्ड के हल्द्वानी बनभूलपुरा में अवैध मदरसे और मस्जिद को तोड़ने गई पुलिस और जिला प्रशासन की टीम पर उपद्रवियों ने पथराव कर दिया। उपद्रवियों ने पुलिस, नगर निगम और पत्रकारों की गाड़ियों में भी आग लगाई, इस दौरान कई पुलिसकर्मी घायल भी हुए। बावजूद इसके तुष्टिकरण में डूबे कांग्रेसी नेताओं की बयानों पर गौर करें तो आपको सहज अंदाजा हो जाएगा कि शरारती तत्वों को प्राणवायु कहां से प्राप्त होती है। कांग्रेस के सीनियर नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि, ‘‘यूसीसी का ड्राफ्ट पारित किया गया है। एक तबके को टारगेट करने की कोशिश की गई है। उस वर्ग के पर्सनल लॉ में हस्तक्षेप की कोशिश की गई। उससे यह संदेश गया है कि उनको दबाया जा रहा है। जिसके चलते घटना देखने को मिली है। कोशिश यही रहनी चाहिए शांति व्यवस्था कायम हो।’ हिंसा अवैध अतिक्रमण हटाने के दौरान हुई लेकिन हरीश रावत मामला यूसीसी का बता रहे हैं।बात पहलवान आंदोलन की कि जाए तो उसे तो खुले तौर पर कांग्रेस और कई दूसरे दलों का समर्थन प्राप्त है।
पिछले एक साल से पहलवान अपनी सुविधानुसार आंदोलन करते रहे हैं। किसान आंदोलन के बाद पहलवान आंदोलन वाली टूल किट भी सक्रिय हो गई है। साक्षी मलिक और बजरंग पूनिया ने आरोप लगाया कि भारतीय कुश्ती महासंघ यानी डब्ल्यूएफआई के प्रमुख संजय सिंह ने यूनाईटेड वर्ल्ड रेस्लिंग द्वारा लगाया प्रतिबंध हटवाने के लिए कपटपूर्ण तरीकों का इस्तेमाल किया। दोनों ने डब्ल्यूएफआई के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन फिर शुरू करने की धमकी दी। पहलवान आंदोलन के रंग-ढंग और नौटंकी जगजाहिर है। आंदोलनरत पहलवानों की राजनीतिक मंशाएं भी किसी से छिपी नहीं हैं। पहलवानों को न्याय मिलना चाहिए ये पूरा देश चाहता है, लेकिन न्याय पाने के लिए जो हथकंडे और राजनीति वो कर रहे हैं, उससे मामला संदेहास्पद लगता है।लोकसभा चुनाव सिर पर हैं। ऐसे में आने वाले दिनों में देशवासियों को पुरानी के साथ नई टूलकिट्स भी देखने को मिल सकती हैं। वास्तव में, विपक्ष किसी न किसी तरीके से देश में ऐसा माहौल बनाए रखना चाहते हैं जिससे मोदी सरकार अपनी उपलब्धियों का श्रेय न ले सके। और उसकी छवि मजदूर, किसान, महिला, खिलाड़ी, युवा और गरीब विरोधी बने। विपक्ष को टूलकिटस का सहारा छोड़कर जनता के बीच जाकर उसके मुद्दों को उठाना चाहिए, क्योंकि लोकतंत्र की असली