• Login
Thursday, July 10, 2025
  • होम
  • टॉप न्यूज़
  • देश
  • विदेश
  • राज्य
  • शहर
  • एजुकेशन
  • बिज़नेस
  • मनोरंजन
  • राजनीति
  • स्पोर्ट्स
  • हेल्थ
  • ई-पेपर
  • ओपिनियन
  • विकास
No Result
View All Result
Shahar ki Surkhiyan
ADVERTISEMENT
  • होम
  • टॉप न्यूज़
  • देश
  • विदेश
  • राज्य
  • शहर
  • एजुकेशन
  • बिज़नेस
  • मनोरंजन
  • राजनीति
  • स्पोर्ट्स
  • हेल्थ
  • ई-पेपर
  • ओपिनियन
  • विकास
Shahar ki Surkhiyan
  • होम
  • टॉप न्यूज़
  • देश
  • विदेश
  • राज्य
  • शहर
  • एजुकेशन
  • बिज़नेस
  • मनोरंजन
  • राजनीति
  • स्पोर्ट्स
  • हेल्थ
  • ई-पेपर
  • ओपिनियन
  • विकास
No Result
View All Result
Shahar ki Surkhiyan
No Result
View All Result

दीपावली का धार्मिक व पौराणिक मान्यताओं के ऐतिहासिक तथ्यों से भी जुड़ाव

Editor@SKS by Editor@SKS
November 5, 2021
in ASTROLOGY, टॉप न्यूज़, त्यौहार
Reading Time: 1min read
A A
0
दीपावली का धार्मिक व पौराणिक मान्यताओं के ऐतिहासिक तथ्यों से भी जुड़ाव
Getting your Trinity Audio player ready...

ये भी पढ़े

गाजियाबाद में देवर्षि नारद जयंती एवं हिंदी पत्रकारिता दिवस समारोह आयोजित किया गया

हिंदुत्व के आत्मबोध से भारत की होगी प्रगति

E.Paper शहर की सुर्खियां

विवेक कुमार जैन

आगरा 5 नवम्बर। वैदिक सूत्रम के चेयरमैन ए पंडित प्रमोद गौतम ने भारत में प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को दीपावली के दीपोत्सव पर्व के सन्दर्भ में बताते हुए कहा कि पौराणिक काल से दीपावली का दीपोत्सव पर्व भारतवर्ष का सबसे प्राचीन धार्मिक पर्व है। यह पर्व प्रतिवर्ष कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। देश-विदेश में यह बड़ी श्रद्धा, विश्वास एवं समर्पित भावना के साथ मनाया जाता है। यह पर्व ‘प्रकाश-पर्व’ के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व के साथ अनेक धार्मिक, पौराणिक एवं ऐतिहासिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। मुख्यतया: यह पर्व त्रेता युग में नारायण के अवतार श्री राम द्वारा लंकापति रावण पर विजय हासिल करके और अपना चौदह वर्ष का वनवास पूरा करके अपने घर अयोध्या लौटने की खुशी में प्राचीन काल से मनाया जाता रहा है।

वैदिक सूत्रम चेयरमैन पंडित प्रमोद गौतम ने एक अन्य पौराणिक घटना के सन्दर्भ में बताते हुए कहा कि इसी दिन श्री लक्ष्मी जी का समुन्द्र-मन्थन से आविर्भाव हुआ था। इस पौराणिक प्रसंगानुसार ऋषि दुर्वासा द्वारा देवराज इन्द्र को दिए गए श्राप के कारण श्री लक्ष्मी जी को समुद्र में जाकर समाहित होना पड़ा था। लक्ष्मी जी के बिना देवगण बलहीन व श्रीहीन हो गए। इस परिस्थिति का फायदा उठाकर असुर देवों पर हावी हो गए। देवगणों की याचना पर भगवान विष्णु ने योजनाबद्ध ढ़ंग से देवों व असुरों के हाथों समुद्र-मन्थन करवाया। समुन्द्र-मन्थन से अमृत सहित चौदह रत्नों में श्री लक्ष्मी जी भी निकलीं, जिसे श्री विष्णु ने ग्रहण किया। श्री लक्ष्मी जी के पुनर्विभाव से देवगणों में बल व श्री का संचार हुआ और उन्होंने पुन: असुरों पर विजय प्राप्त की। लक्ष्मी जी के इसी पुनर्विभाव की खुशी में समस्त लोकों में दीप प्रज्जवलित करके खुशियां मनाईं गई। इसी मान्यतानुसार प्रतिवर्ष दीपावली को श्री लक्ष्मी जी की पूजा-अर्चना की जाती है। मार्कंडेय पुराण के अनुसार समृद्धि की देवी श्री लक्ष्मी जी की पूजा सर्वप्रथम नारायण ने स्वर्ग में की। इसके बाद श्री लक्ष्मी जी की पूजा दूसरी बार, ब्रह्मा जी ने, तीसरी बार शिव जी ने, चौथी बार समुन्द्र मन्थन के समय विष्णु जी ने, पांचवी बार मनु ने और छठी बार नागों ने की थी।

पंडित प्रमोद गौतम ने दीपावली पर्व के सन्दर्भ में एक अन्य पौराणिक प्रसंग के सन्दर्भ में बताते हुए कहा कि भगवान श्रीकृष्ण बाल्यावस्था में कार्तिक मास की अमावस्या को पहली बार गाय चराने के लिए वन में गए थे। संयोगवश इसी दिन श्रीकृष्ण ने इस मृत्युलोक से भी प्रस्थान किया था। एक अन्य प्रसंगानुसार इसी दिन श्रीकृष्ण ने नरकासुर नामक नीच असुर का वध करके उसके द्वारा बंदी बनाई गई देव, मानव और गन्धर्वों की सोलह हजार कन्याओं को मुक्ति दिलाई थी। इसी खुशी में लोगों ने दीप जलाए थे, जोकि बाद मे एक परंपरा में परिवर्तित हो गई।

एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि दीपावली के पावन पर्व से भगवान विष्णु के वामन अवतार की लीला भी जुड़ी हुई है। एक समय दैत्यराज बलि ने परम तपस्वी गुरू शुक्राचार्य के सहयोग से देवलोक के राजा इन्द्र को परास्त करके स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। समय आने पर भगवान विष्णु ने अदिति के गर्भ से महर्षि कश्यप के घर वामन के रूप में अवतार लिया। जब राजा बलि भृगकच्छ नामक स्थान पर अश्वमेघ यज्ञ कर रहे थे तो भगवान वामन ब्राह्मण भेष में राजा बलि के यज्ञ मण्डल में जा पहुंचे। बलि ने वामन से इच्छित दान मांगने का आग्रह किया। वामन ने बलि से संकल्प लेने के बाद तीन पग भूमि मांगी। संकल्पबद्ध राजा बलि ने ब्राहा्रण वेशधारी भगवान वामन को तीन पग भूमि नापने के लिए अनुमति दे दी। तब भगवान वामन ने पहले पग में समस्त भूमण्डल और दूसरे पग में त्रिलोक को नाप डाला। तीसरे पग में बलि ने विवश होकर अपने सिर को आगे बढ़ाना पड़ा। बलि की इस दान वीरता से भगवान वामन प्रसन्न हुए। उन्होंने बलि को सुतल लोक का राजा बना दिया और इन्द्र को पुन: स्वर्ग का स्वामी बना दिया। देवगणों ने इस अवसर पर दीप प्रज्जवलित करके खुशियां मनाई और पृथ्वीलोक में भी भगवान वामन की इस लीला के लिए दीप मालाएं प्रज्जवलित कीं।

वैदिक सूत्रम चेयरमैन पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि दीपावली के दीपों के सन्दर्भ में देवी पुराण का एक महत्वपूर्ण प्रसंग भी जुड़ा हुआ है। इसी दिन दुर्गा मातेश्वरी ने महाकाली का रूप धारण किया था और असंख्य असुरों सहित चण्ड और मुण्ड को मौत के घाट उतारा था। मृत्युलोक से असुरों का विनाश करते-करते महाकाली अपना विवके खो बैठीं और क्रोध में उसने देवों का भी सँहार करना शुरू कर दिया। देवताओं की याचना पर शिव महाकाली के समक्ष प्रस्तुत हुए। क्रोधवश महाकाली शिव के सीने पर भी चढ़ बैठीं। लेकिन, शिव-’शरीर का स्पर्श पाते ही उसका क्रोध शांत हो गया। किवदन्ती है कि तब दीपोत्सव मनाकर देवों ने अपनी खुशी का प्रकटीकरण किया।

कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि दीपावली पर्व के साथ धार्मिक व पौराणिक मान्यताओं के साथ-साथ कुछ ऐतिहासिक घटनाएं भी जुड़ी हुई हैं। एक ऐतिहासिक घटना के अनुसार गुप्तवंश के प्रसिद्ध सम्राट विक्रमादित्य के राज्याभिषेक के समय पूरे राज्य में दीपोत्सव मनाकर प्रजा ने अपने भावों की अभिव्यक्ति की थी। इसके अलावा इसी दिन राजा विक्रमादित्य ने अपना संवत चलाने का निर्णय किया था। उन्होंने विद्वानों को बुलवाकर निर्णय किया था कि नया संवत चैत्र सुदी प्रतिपदा से ही चलाया जाए।

दीपावली के दिन ही महान समाज सुधारक, आर्य समाज के संस्थापक और ‘सत्यार्थ-प्रकाश’ के रचियता महर्षि दयानंद सरस्वती की महान् आत्मा ने 30 अक्तूबर, 1883 को अपने नश्वर शरीर को त्यागकर निर्वाण प्राप्त किया था। परम संत स्वामी रामतीर्थ का जन्म इसी दिन यानी कार्तिक मास की अमावस्या के दिन ही हुआ था और उनका देह त्याग भी इसी दिन होने का अनूठा उदाहरण भी हमें मिलता है। इस प्रकार स्वामी रामतीर्थ के जन्म और निर्वाण दोनों दिवसों के रूप में दीपावली विशेष महत्व रखती है।

बौद्ध धर्म के प्रवर्तक भगवान बुद्ध के समर्थकों व अनुयायियों ने 2500 वर्ष पूर्व हजारों-लाखों दीप जलाकर उनका स्वागत किया था। आदि शंकराचार्य के निर्जीव शरीर में जब पुन: प्राणों के संचारित होने की घटना से हिन्दू जगत अवगत हुआ था तो समस्त हिन्दू समाज ने दीपोत्सव से अपने उल्लास की भावना को दर्शाया था।

797
Tags: #Agra#DIWALI
ADVERTISEMENT
Previous Post

हर्षो उल्लास के साथ मनाई गई दीपावली – दीपोत्सव

Next Post

प्रधानमंत्री ने किया 400 करोड़ के केदारनाथ पुनर्निर्माण कार्यों का लोकार्पण तथा शिलान्यास

Editor@SKS

Editor@SKS

Related Posts

गाजियाबाद में देवर्षि नारद जयंती एवं हिंदी पत्रकारिता दिवस समारोह आयोजित किया गया
टॉप न्यूज़

गाजियाबाद में देवर्षि नारद जयंती एवं हिंदी पत्रकारिता दिवस समारोह आयोजित किया गया

by shaherkisurkhiyan@gmail.com
May 26, 2024
हिंदुत्व के आत्मबोध से भारत की होगी प्रगति
Big Breaking

हिंदुत्व के आत्मबोध से भारत की होगी प्रगति

by shaherkisurkhiyan@gmail.com
April 13, 2024
ई-पेपर

E.Paper शहर की सुर्खियां

by shaherkisurkhiyan@gmail.com
February 2, 2024
ई-पेपर

E.Paper शहर की सुर्खियां

by shaherkisurkhiyan@gmail.com
February 1, 2024
ई-पेपर

e.paper शहर की सुर्खियां

by shaherkisurkhiyan@gmail.com
January 31, 2024
Next Post
प्रधानमंत्री ने किया 400 करोड़ के केदारनाथ पुनर्निर्माण कार्यों का लोकार्पण तथा शिलान्यास

प्रधानमंत्री ने किया 400 करोड़ के केदारनाथ पुनर्निर्माण कार्यों का लोकार्पण तथा शिलान्यास

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

Weather Updates

मौसम

Rashifal Updates

भाषा चुने

  • Home
  • Blog
  • About Us
  • Advertise With Us
  • Contact Us
  • Privacy Policy

© 2023 Shahar Ki Surkhiyan

No Result
View All Result
  • होम
  • टॉप न्यूज़
  • देश
  • विदेश
  • राज्य
  • शहर
  • एजुकेशन
  • बिज़नेस
  • मनोरंजन
  • राजनीति
  • स्पोर्ट्स
  • हेल्थ
  • ई-पेपर
  • ओपिनियन
  • विकास
  • Login

© 2023 Shahar Ki Surkhiyan

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Create New Account!

Fill the forms below to register

All fields are required. Log In

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In