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आज विश्व के समस्त देश आर्थिक विकास के एजेंडा पर कम ध्यान देते हुए मुद्रा स्फीति को नियंत्रित करने के प्रयासों पर अधिक ध्यान दे रहे हैं। हालांकि मुद्रा स्फीति को नियंत्रित करने के लिए आपूर्ति के साधनों में सुधार करने पर पूरा ध्यान होना चाहिए परंतु बाजार में उत्पादों की मांग कम करने के उद्देश्य से समस्त देश केवल ब्याज दरों में लगातार वृद्धि करते पाए जा रहे हैं। ब्याज दरों में लगातार बढ़ोत्तरी से न केवल वित्त की उपलब्धता पर विपरीत प्रभाव दिखाई देने लगता है बल्कि वित्त की लागत भी बढ़ने लगती है, जिससे बाजार में उत्पादों की मांग कम होने लगती है, उत्पादन गतिविधिओं में ठहराव आता है, बैंकों की लाभप्रदता पर विपरीत प्रभाव पड़ने लगता है एवं रोजगार के अवसर कम होने लगते हैं। कुल मिलाकर, पूरा आर्थिक चक्र ही विपरीत रूप से प्रभावित होने लगता है।
विपरीत परिस्थितियों के बीच भी कई विकसित देश (विशेष रूप से अमेरिका एवं यूरोपीय देश) अभी भी ब्याज दरों को बढ़ाते जा रहे हैं। परंतु, भारतीय रिजर्व बैंक ने इस संदर्भ में कुछ अलग निर्णय लिया है।दिनांक 8 अगस्त 2023 से 10 अगस्त 2023 तक भारतीय रिजर्व बैंक की मोनेटरी पॉलिसी कमेटी (एमपीसी) की बैठक सम्पन्न हुई है एवं इस बैठक में रेपो दर को यथावत 6.50 प्रतिशत पर बनाए रखने का निर्णय लिया गया है, अर्थात इसमें लगातार तीसरी बार कोई वृद्धि नहीं की गई है। हालांकि, भारत में भी एक बार पुनः खुदरा मुद्रा स्फीति की दर पर दबाव महसूस किया जा रहा है और यह खाद्य पदार्थों की कीमतों में हाल ही में आई तेजी के चलते हो रहा है। विशेष रूप से सब्जियों, अंडे, मांस, मछली, अनाज, दालों और मसालों की ऊंची कीमतों के कारण देश में खुदरा महंगाई की दर कुछ अधिक रही है।
परंतु, 9 अगस्त 2023 तक संचयी दक्षिण-पश्चिम मानसून की वर्षा, दीर्घकालिक औसत के समान थी, हालांकि अस्थायी और स्थानिक वितरण असमान रहा है। इसके बावजूद, 4 अगस्त 2023 तक खरीफ फसलों की बुवाई का कुल क्षेत्रफल एक वर्ष पहले की तुलना में 0.4 प्रतिशत अधिक रहा है। अतः मानसून के मौसम के पश्चात जैसे ही इन खाद्य पदार्थों की उपलब्धता बाजार में बढ़ेगी, वैसे ही इन वस्तुओं की कीमतें कम होने लगेंगी। वैसे भी, खाद्य पदार्थों की महंगाई की दर को इन पदार्थों की उपलब्धता को बढ़ा कर ही कम किया जा सकता है।
ब्याज दरों में लगातार बढ़ोत्तरी से न केवल वित्त की उपलब्धता पर विपरीत प्रभाव दिखाई देने लगता है बल्कि वित्त की लागत भी बढ़ने लगती है, जिससे बाजार में उत्पादों की मांग कम होने लगती है, उत्पादन गतिविधिओं में ठहराव आता है, बैंकों की लाभप्रदता पर विपरीत प्रभाव पड़ने लगता है एवं रोजगार के अवसर कम होने लगते हैं। कुल मिलाकर, पूरा आर्थिक चक्र ही विपरीत रूप से प्रभावित होने लगता है। विपरीत परिस्थितियों के बीच भी कई विकसित देश (विशेष रूप से अमेरिका एवं यूरोपीय देश) अभी भी ब्याज दरों को बढ़ाते जा रहे हैं। परंतु, भारतीय रिजर्व बैंक ने इस संदर्भ में कुछ अलग निर्णय लिया है।दिनांक 8 अगस्त 2023 से 10 अगस्त 2023 तक भारतीय रिजर्व बैंक की मोनेटरी पॉलिसी कमेटी (एमपीसी) की बैठक सम्पन्न हुई है एवं इस बैठक में रेपो दर को यथावत 6.50 प्रतिशत पर बनाए रखने का निर्णय लिया गया है, अर्थात इसमें लगातार तीसरी बार कोई वृद्धि नहीं की गई है।
हालांकि, भारत में भी एक बार पुनः खुदरा मुद्रा स्फीति की दर पर दबाव महसूस किया जा रहा है और यह खाद्य पदार्थों की कीमतों में हाल ही में आई तेजी के चलते हो रहा है। विशेष रूप से सब्जियों, अंडे, मांस, मछली, अनाज, दालों और मसालों की ऊंची कीमतों के कारण देश में खुदरा महंगाई की दर कुछ अधिक रही है। परंतु, 9 अगस्त 2023 तक संचयी दक्षिण-पश्चिम मानसून की वर्षा, दीर्घकालिक औसत के समान थी, हालांकि अस्थायी और स्थानिक वितरण असमान रहा है। इसके बावजूद, 4 अगस्त 2023 तक खरीफ फसलों की बुवाई का कुल क्षेत्रफल एक वर्ष पहले की तुलना में 0.4 प्रतिशत अधिक रहा है। अतः मानसून के मौसम के पश्चात जैसे ही इन खाद्य पदार्थों की उपलब्धता बाजार में बढ़ेगी, वैसे ही इन वस्तुओं की कीमतें कम होने लगेंगी। वैसे भी, खाद्य पदार्थों की महंगाई की दर को इन पदार्थों की उपलब्धता को बढ़ा कर ही कम किया जा सकता है। ब्याज दरों को बढ़ाकर खाद्य पदार्थ आधारित महंगाई की दर को कम नहीं किया जा सकता है, क्योंकि खाद्य पदार्थ कितने भी महंगे हो जाएं, सामान्य नागरिक के लिए तो आवश्यक आवश्यकता की श्रेणी की वस्तुएं तो खरीदनी ही होंगी। अतः भारतीय रिजर्व बैंक ने ब्याज दर में वृद्धि न करने का एक सही निर्णय लिया है। साथ ही, भारतीय रिजर्व बैंक का यह निर्णय, संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मुद्रास्फीति को 1- 2 प्रतिशत के दायरे में रखते हुए 4 प्रतिशत का मध्याविधि लक्ष्य हासिल करने के अनुरूप माना जा रहा है
विश्व के अन्य देशों द्वारा अभी भी ब्याज दरों में लगातार की जा रही वृद्धि के चलते भारतीय रिजर्व बैंक पर भी ब्याज दर बढ़ाने का दबाव जरूर रहा होगा, परंतु भारत की आर्थिक परिस्थितियों एवं देश की आर्थिक विकास दर को बनाए रखने के उद्देश्य से ब्याज दरों में वृद्धि की घोषणा नहीं की गई है। भारत में ब्याज दरों को और अधिक नहीं बढ़ाए जाने के कारण ही देश में आर्थिक विकास की गतिविधियों में गतिशीलता बनी हुई है। अन्यथा, विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक फंड एवं अन्य वित्तीय संस्थानों द्वारा वैश्विक स्तर पर कई अन्य देशों के वर्ष 2023 के आर्थिक विकास के अनुमान को घटाया गया है। भारत में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) मई में 5.2 प्रतिशत से बढ़ा है, जबकि जून में मुख्य उद्योगों का उत्पादन 8.2 प्रतिशत से बढ़ा है। उच्च आवृत्ति संकेतकों के बीच, ई-वे बिल और टोल संग्रह में जून-जुलाई में जोरदार वृद्धि हुई है, जबकि रेल माल ढुलाई और बंदरगाह यातायात जून 2023 में कम रहने के बाद जुलाई 2023 में पुनः ठीक हो गया है।
संमिश्रित क्रय प्रबंधक सूचकांक (पीएमआई) जुलाई में 13 वर्ष के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है।इसी प्रकार, भारत में घरेलू हवाई यात्री यातायात के कारण शहरी मांग मजबूत बनी हुई है और घरेलू ऋण निरंतर दोहरे अंक की वृद्धि प्रदर्शित कर रहा है। हालांकि, यात्री वाहनों की बिक्री की संवृद्धि में कुछ कमी आई है। ग्रामीण मांग की स्थिति के मामले में, जून में ट्रैक्टर की बिक्री में सुधार हुआ है जबकि दोपहिया वाहनों की बिक्री में कुछ कमी आई है। सीमेंट उत्पादन और इस्पात खपत में मजबूत वृद्धि दर्ज की गई है। पूंजीगत वस्तुओं के आयात और उत्पादन में विस्तार की स्थिति जारी रही है। जून 2023 में पण्य निर्यात और तेल से इतर स्वर्ण से इतर आयात, संकुचन क्षेत्र में रहे हैं। वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए भारतीय रिजर्व बैंक के अनुमान के अनुसार भारत में खुदरा मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई की दर 5.4 प्रतिशत रहेगी। इसके द्वितीय तिमाही में 6.2 प्रतिशत, तृतीय तिमाही में 5.7 प्रतिशत और चतुर्थ तिमाही में 5.2 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है। वित्तीय वर्ष 2024-25 की प्रथम तिमाही के लिए सीपीआई मुद्रास्फीति 5.2 प्रतिशत अनुमानित है। इसी प्रकार भारतीय रिजर्व बैंक का अनुमान है कि आगे आने वाले समय में खरीफ की बुआई और ग्रामीण आय में सुधार के चलते एवं सेवा क्षेत्र की विभिन्न गतिविधियों में उछाल और उपभोक्ता आशावाद से घरेलू खपत को समर्थन मिलना चाहिए। बैंकों और कॉरपोरेट्स का सुदृढ़ तुलन-पत्र, आपूर्ति शृंखला का सामान्यीकरण, व्यापार आशावाद और मजबूत सरकारी पूंजीगत व्यय, पूंजीगत व्यय चक्र के नवीनीकरण के लिए अनुकूल हैं जो वैविध्यपूर्ण होने के संकेत दे रहा है। हालांकि, कमजोर वैश्विक मांग, वैश्विक वित्तीय बाजारों में अस्थिरता, भू-राजनीतिक तनाव और भू-आर्थिक विखंडन के चलते वैश्विक स्तर पर प्रतिकूल परिस्थितियां भी बनी रहने की सम्भावना है। उक्त वर्णित समस्त कारकों को ध् यान में रखकर भारतीय रिजर्व बैंक के अनुमान के अनुसार भारत के सकल घरेलू उत्पाद में वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान 6.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज होगी।
इसके पहली तिमाही में 8.0 प्रतिशतय दूसरी तिमाही में 6.5 प्रतिशतय तीसरी तिमाही में 6.0 प्रतिशतय और चैथी तिमाही में 5.7 प्रतिशत पर रहने का अनुमान है। वित्तीय वर्ष 2024-25 की पहली तिमाही के लिए वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर 6.6 प्रतिशत अनुमानित है।इस प्रकार, ब्याज दरों में संतुलन बनाए रखते हुए भारत में आर्थिक विकास की दर को मजबूत बनाए रखने में सफलता मिलती दिखाई दे रही है। वहीं, विश्व के अन्य देशों में चूंकि ब्याज दरों को लगातार बढ़ाया जा रहा है जिसके कारण इन देशों में आर्थिक विकास की दर भी कम होती दिखाई दे रही है। हालांकि अब भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा भारत में ब्याज दरों को कम करने की ओर भी विचार किया जाना चाहिए।ब्याज दरों में लगातार बढ़ोत्तरी से न केवल वित्त की उपलब्धता पर विपरीत प्रभाव दिखाई देने लगता है बल्कि वित्त की लागत भी बढ़ने लगती है, जिससे बाजार में उत्पादों की मांग कम होने लगती है, उत्पादन गतिविधिओं में ठहराव आता है, बैंकों की लाभप्रदता पर विपरीत प्रभाव पड़ने लगता है एवं रोजगार के अवसर कम होने लगते हैं। कुल मिलाकर, पूरा आर्थिक चक्र ही विपरीत रूप से प्रभावित होने लगता है।