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विवेक कुमार जैन
आगरा 30 जनवरी।
वैदिक सूत्रम रिसर्च संस्था की संस्थापिका प्रमुख समाज सेवी योग-गुरु स्व श्रीमती दिनेशवती गौतम की तृतीय पुण्यतिथि पर टैगोर नगर जैन मंदिर के सामने दयालबाग स्थित संस्था कार्यालय पर वैदिक सूत्रम चेयरमैन एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने वैदिक सूत्रम संस्थापिका की तृतीय पुण्यतिथि पर वैदिक धार्मिक अनुष्ठान के बाद महिलाओं के लिए ब्राह्मण भोज की समाप्ति पर सभी महिलाओं को ऊनी पंच वस्त्र दक्षिणा सहित भेंट प्रदान करने के उपरांत संस्था के पदाधिकारियों के साथ श्रदांजली अर्पित करते हुए कहा कि वैदिक सूत्रम की संस्थापिका योग-गुरु स्व श्रीमती दिनेशवती गौतम रहस्मयी व्यक्तिव की स्वामिनी थी उन्होंने वैदिक योग सूत्रों की आध्यातिमिक विधा के द्वारा अपने जीवन काल में जन-जन की सेवा की और जो भी व्यक्ति उनसे जुड़ा उन सभी को उन्होंने एक सकारात्मक दैवीय ऊर्जा युक्त मार्गदर्शन प्रदान किया।
एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि सूत्र शब्द का असली अर्थ है धागा। किसी हार को आप उसके धागे के लिए नहीं पहनते। आप हार पहनते हैं फूलों का, मनके का या हीरे का या ऐसी ही किसी और चीज का, लेकिन कोई भी हार बिना धागे के नहीं बनता। योग सूत्र ने केवल धागा दिया। जब पतंजलि ने योग सूत्र दिया, तो उन्होंने कोई भी विशेष तरीका नहीं बताया। इसमें कोई भी अभ्यास नहीं बताया गया है। उन्होंने तो बस जरूरी सूत्र दे दिए। अब इन सूत्रों से कैसा हार बनाना है, यह अपने आसपास मौजूद लोगों और परिस्थितियों के आधार पर हर गुरु अपने हिसाब से तय कर सकता है। हर सूत्र के कुछ मायने होंगे, केवल उस आदमी के लिए, जो अपनी चेतना की खोज कर रहा है।
वैदिक सूत्रम चेयरमैन पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि वैदिक सूत्रम संस्थापिका योग-गुरु स्व श्रीमती दिनेशवती गौतम ने वर्ष 2019 में महीनों के महात्मा माघ कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को सूर्य की उत्तरायण अवधि के सिद्ध काल में पृथ्वी लोक पर इस भौतिक शरीर से दोपहर 12 बजे अभिजीत महूर्त में निर्वाण प्राप्त किया था। निर्वाण सभी प्रमुख भारतीय धर्मों- हिंदू धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म, और सिख धर्म के ग्रंथों में पाया जाने वाला एक अलौकिक शब्द है। यह मन की गहन शांति को संदर्भित करता है, जिसका सम्बन्ध पूर्ण मोक्ष से होता है, अर्थात संसार से मुक्ति, या संबंधित साधना या साधना के बाद दुख की स्थिति से पूर्ण रूप से मुक्त होती है। भगवान श्री कृष्ण ने गीता में स्पष्ट रूप से कहा है, जो व्यक्ति सूर्य के उत्तरायण में अर्थात देवताओं के 6 माह की दिन की अवधि में विशेष नक्षत्र के सिद्ध काल में अपने इस भौतिक शरीर का परित्याग करता है वह हमेशा के लिए जन्म मरण के बंधन से मुक्त होकर मेरे परम-धाम श्री धाम, अर्थात वैकुंठ धाम में प्रवेश करने का पूर्ण अधिकारी होता है अर्थात ऐसा व्यक्ति फिर दुबारा किसी भी योनि में इस पृथ्वी लोक पर जन्म नहीं लेता है।
कुल मिलाकर निर्वाण का वास्तविक अर्थ सबकी दृष्टि में एक सुरक्षित स्थान है, लेकिन वहां पहुंचना अति कठिन है, जहां न बुढ़ापा है, न मृत्यु, न पीड़ा, न रोग। इसे ही वास्तविक अर्थ में निर्वाण कहा जाता है, या दर्द से मुक्ति, या पूर्णता, जो सभी की दृष्टि में है; यह वह सुरक्षित, सुखी और शांत स्थान है जहां महान संत पहुंचते हैं। वह शाश्वत स्थान है, सभी को देखते हुए, लेकिन उस सर्वोच्च स्थान तक पहुंचना कठिन है। जो ऋषि उस तक पहुंचते हैं, वे दुखों से पूर्ण रूप से मुक्त हैं, उन्होंने अपने भौतिक अस्तित्व की धारा को पूर्ण रूप से समाप्त कर दिया है।