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महाशिवरात्रि शिव और शक्ति के मिलन का महापर्व है, सृष्टि के प्रारंभ में शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में इसी दिन अवतरण हुआ था- पं प्रमोद गौतम

Vivek Jain by Vivek Jain
February 24, 2022
in आध्यात्मिक
Reading Time: 1min read
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महाशिवरात्रि शिव और शक्ति के मिलन का महापर्व है, सृष्टि के प्रारंभ में शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में इसी दिन अवतरण हुआ था- पं प्रमोद गौतम
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आगरा: 24 फरवरी वैदिक सूत्रम चेयरमैन एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने प्रति वर्ष फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को पड़ने वाले महाशिवरात्रि पर्व के सन्दर्भ में बताते हुए कहा कि भारतवर्ष को पौराणिक काल से देवताओं और सिद्ध ऋषियों और तपस्वियों की भूमि कहा जाता रहा है। यहां के पौराणिक ग्रंथों और पुराणों में भगवान के अवतार की कथाएं यह प्रमाणित करती हैं कि भारत भूमि इतनी पावन एवम दिव्य है कि यहां देवता भी अवतार लेने को लालायित रहते हैं। कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि भारत देश का इतिहास हमेशा इसकी स्वर्ण गाथा गाता रहा है और भविष्य में भी गाता रहेगा। इसलिए भारत देश का पौराणिक इतिहास हम सभी के लिए लिए विशेष महत्व रखता है। भारत वर्ष में प्रति वर्ष महा शिवरात्रि का पावन पर्व पड़ता है जो कि एक रहस्यमयी दिव्य रात्रि होती है

एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि भगवान शिव को यूं तो प्रलय का देवता और काफी क्रोधी स्वभाव वाला देव माना जाता है। लेकिन जिस तरह से नारियल बाहर से बेहद सख्त और अंदर से बेहद कोमल होता है उसी तरह देवों के देव महादेव शिव शंकर भी प्रलय के देवता के साथ-साथ भोले नाथ भी है। वह थोड़ी सी भक्ति से भी बहुत खुश हो जाते हैं और यही वजह है कि शिव शंकर सुर और असुर दोनों के लिए समान रूप से पूज्यनीय हैं।
शिव का अर्थ है कल्याण, अर्थात शिव समान रूप से सभी का कल्याण करने वाले देवों के देव हैं। फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि शिव की प्रिय तिथि है अर्थात शिवरात्रि शिव और शक्ति के मिलन का महापर्व है। इसलिए प्रतिवर्ष फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि भगवान शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था।

वैदिक सूत्रम चेयरमैन पंडित प्रमोद गौतम ने महाशिवरात्रि पर्व के महत्व के सन्दर्भ में बताते हुए कहा कि शिवपुराण में वर्णित है कि शिवजी के निष्कल (निराकार) स्वरूप का प्रतीक ‘लिंग’ फाल्गुन कृष्ण पक्ष की पावन चतुर्दशी तिथि को महानिशा काल में प्रकट होकर सर्वप्रथम ब्रह्मा और विष्णु के द्वारा पूजित हुआ था। इसी कारण यह दिव्य तिथि ‘शिवरात्रि’ के नाम से विख्यात हो गई। इस विशेष दिन को माता पार्वती और शिवजी के विवाह की तिथि के रूप में भी पौराणिक काल से पूजा जाता रहा है।

एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि माना जाता है जो भक्त महाशिवरात्रि को दिन-रात निराहार एवं जितेंद्रिय होकर अपनी पूर्ण शक्ति व साम‌र्थ्य द्वारा निश्चल भाव से शिवजी की यथोचित पूजा करता है, वह वर्ष पर्यंत शिव-पूजन करने का संपूर्ण फल मात्र महाशिवरात्रि को तत्काल प्राप्त कर लेता है।

वैदिक सूत्रम चेयरमैन पंडित प्रमोद गौतम ने शिवरात्रि की पूजन विधि के सन्दर्भ में बताते हुए कहा कि महाशिवरात्रि पर्व का यह पावन व्रत फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि से सुबह से ही शुरू हो जाता है। इस दिन शिव मंदिरों में जाकर मिट्टी के बर्तन में पानी भरकर, ऊपर से बेलपत्र, आक-धतूरे के पुष्प, चावल आदि डालकर शिवलिंग पर चढ़ाया जाता है। अगर पास में शिवालय न हो, तो शुद्ध गीली मिट्टी से ही शिवलिंग बनाकर उसे पूजने का विधान है। क्योंकि इस दिन भगवान शिव की शादी भी हुई थी, इसलिए रात्रि में शिवजी की बारात निकाली जाती है। रात्रि में पूजन कर फलाहार किया जाता है। अगले दिन सवेरे जौ, तिल, खीर और बेलपत्र का हवन करके व्रत समाप्त किया जाता है। बेल (बिल्व) के पत्ते शिवजी को अत्यंत प्रिय हैं इसलिए बेल के 5 या 7 साफ पत्ते इस दिन शिवलिंग पर अवश्य अर्पित करें।

वैदिक सूत्रम रिसर्च संस्था की प्रबंधक श्रीमती निधि शर्मा ने बताया कि किसी भी निवास स्थान के ईशान कोण को भगवान शिव का स्थान माना गया है जो कि किसी भी निवास स्थान की जमीन के उत्तर-पूर्व कोने को ईशान कोण कहा जाता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार उत्तर और पूर्व दिशा शुभ मानी जाती हैं। वास्तु के अनुसार यह माना जाता है कि इस कोण पर देवताओं और आध्यात्मिक शक्ति का वास रहता है। इसलिए यह घर का सबसे पवित्र कोना होता है। भगवान शिव का एक नाम ईशान भी है। चूंकि भगवान शिव का आधिपत्य उत्तर-पूर्व दिशा में होता है इसीलिए इस दिशा को ईशान कोण कहा जाता है। यहां देवी शक्तियां घर के निवासियों को सकारात्मक ऊर्जा युक्त वायु प्रदान करती हैं क्योंकि इस क्षेत्र में देवताओं के गुरु बृहस्पति और मोक्ष कारक केतु का भी वास भी रहता है। कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि इन दोनों दिशाओं के मिलने वाले कोण पर उत्तर-पूर्व क्षेत्र बनता है इसी वजह से यह घर या प्लाट का सबसे शुभ तथा ऊर्जा के स्रोत का शक्तिशाली कोना माना जाता है। महाशिवरात्रि पर्व की दिव्य रात्रि के दिन रात्रि जागरण अवश्य करना चाहिए और अपने निवास स्थान के किसी भी कमरे के ईशान कोण में या ईशान कोण की दिशा की तरफ मुख करके ॐ नमः शिवाय या ॐ नमो भगवते रुद्राय नमः मंत्र का मानसिक जाप रात्रि जागरण के दौरान करना चाहिए क्योंकि महाशिवरात्रि पर्व की रात्रि दिव्य रात्रि होती है।

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Tags: #ASTROLOGY#MahaShivratri
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