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आगरा में गैलाना स्थित भोले बाबा के नाम से प्रसिद्ध महादेव मंदिर के महंत रहस्मयी दिव्य संत रघुनाथ बाबा ब्रह्मलीन- एस्ट्रोलॉजर पं प्रमोद गौतम

Vivek Jain by Vivek Jain
March 4, 2022
in ASTROLOGY
Reading Time: 1min read
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आगरा में गैलाना स्थित भोले बाबा के नाम से प्रसिद्ध महादेव मंदिर के महंत रहस्मयी दिव्य संत रघुनाथ बाबा ब्रह्मलीन- एस्ट्रोलॉजर पं प्रमोद गौतम
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विवेक कुमार जैन

आगरा 4 मार्च ।
वैदिक सूत्रम चेयरमैन एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि आगरा के गैलाना क्षेत्र में भोले बाबा के नाम से प्रसिद्ध महादेव मंदिर के रहस्यमयी दिव्य संत महंत रघुनाथ बाबा ने गुरुवार रात्रि को अपने भौतिक मायावी शरीर का परित्याग कर दिया।

एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने दिव्य संत महंत रघुनाथ बाबा को हार्दिक श्रदांजली देते हुए बताया कि शिवजी के अनन्य भक्त बृज क्षेत्र के नौगांव में ब्राह्मण परिवार में जन्मे महंत रघुनाथ बाबा का पूरा जीवन एक सच्चे संत की तरह देवों के देव महादेव को पूरी तरह समर्पित था। उन्होंने इंग्लिश भाषा में पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री हासिल करने के बाद ही इस भौतिक मायावी संसार से संन्यास ले लिया था।
एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि महंत रघुनाथ बाबा का उन्हें सानिध्य वर्ष 2001 में अचानक प्राप्त हुआ था जब पहली बार महंत रघुनाथ बाबा ने उनसे वृन्दावन के किसी आश्रम के आपसी विवाद को सुलझाने के लिए वृन्दावन धाम में चलने का उनसे आग्रह किया था क्योंकि महंत रघुनाथ बाबा लंगोट में ही रहते थे। तब बाबा के आग्रह पर वह पहली बार वे महंत रघुनाथ बाबा को वृन्दावन धाम में अपनी कार में बिठाकर ले गए थे और वृन्दावन आश्रम के किसी विवाद को सुलझाने के बाद बाबा उसी दिन रात्रि को ही वृन्दावन से वापस लौटकर आगरा गैलाना स्थित महादेव मंदिर में आ गए थे।

वैदिक सूत्रम चेयरमैन पंडित प्रमोद गौतम ने एक महत्वपूर्ण घटना के सन्दर्भ में बताते हुए कहा कि महंत रघुनाथ बाबा ने एक बार अचानक उन्हें फ़ोन किया और फ़ोन पर ही उनसे कहा कि तुम्हारी शादी अगले माह आषाढ़ माह में होने जा रही है, दिव्य संत के अकाट्य वाक्य के फलस्वरूप ऐसा ही घटित हुआ उनकी शादी उनके कहे वाक्य के अनुसार आषाढ़ माह में एक हफ्ते में अचानक घटित हो गयी लेकिन कुछ रहस्यमयी तथ्य एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम को समझ में उस समय नहीं आये कि एक माह पहले दिव्य संत रघुनाथ बाबा ने उनकी शादी के सन्दर्भ में कही हुई उनकी वो सब बातें अचानक कैसे घटित हो गयी क्योंकि उसी दिन जिस दिन उन्होंने एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम को स्वयं फोन किया था उसी शाम को उन्होंने पंडित प्रमोद गौतम को आगरा में गैलाना स्थित महादेव मंदिर में बुलाया था, बाबा के आग्रह पर उसी दिन शाम को जब महादेव मंदिर में पंडित प्रमोद गौतम जब पहुंचे तब संत रघुनाथ बाबा महादेव मंदिर में बैठे हुए रुद्राक्ष की माला से शिवलिंग के समक्ष बैठ कर जाप कर रहे थे, तब उन्होंने पंडित प्रमोद गौतम को शिवलिंग के पास ही बैठने को कहा और इशारों ही इशारों में कहा कि इस शिवलिंग को गौर से देखो और तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है उसे महसूस करके मुझे बताओ, ऐसा उन्होंने इशारों ही इशारों में कहा, एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि जब उन्होंने गहराई से उस महादेव मंदिर में स्थित शिवलिंग को कई बार लगातार देखा तो उन्हें साक्षात आभास हुआ कि उस शिवलिंग के अंदर नाग का फन फैलाये हुए एक दिव्य प्रकाश के रूप में उन्हें साक्षात नाग देवता के दर्शन हो रहे हैं, उस शाम को शिवलिंग को देखने के बाद उस महत्वपूर्ण रहस्मयी तथ्य को आज में सार्वजनिक रूप से पहली बार सभी को बता रहा हूँ, वो महत्वपूर्ण दिव्य पल मेरे लिए हमेशा यादगार लम्हे के रूप में मेरे जहन में आज भी कैद है। एक तीसरा अन्य महत्वपूर्ण वाक्या वर्ष 2008 में पूर्ण कुम्भ के मेले के दौरान मेरे साथ अचानक घटित हुआ क्योंकि वर्ष 2008 में हरिद्वार में पूर्ण कुम्भ का मेला लगा था। में वर्ष 2008 में 5 अप्रैल को दिल्ली से वैष्णो देवी की धार्मिक यात्रा पर निकला था, वैष्णो देवी के दर्शन के बाद मैंने देवी के 9 शक्तिपीठों के दर्शन भी किये, शक्तिपीठों के दर्शन के बाद मेरी धार्मिक यात्रा का समापन 14 अप्रैल 2008 को हरिद्वार में आखिरी शाही स्नान को करने के बाद होना था, लेकिन आखिरी शाही स्नान के एक दिन पहले श्रद्धालुओं का अपार जन सैलाब हरिद्वार में पहले से मौजूद था, जब में 13 अप्रैल 2008 की शाम को हरिद्वार में ट्रेन से जब मैं उतरा तब वहां के जन सैलाब को देखकर में हक्का बक्का रह गया, उस समय मेरी धार्मिक यात्रा में मेरे साथ एक व्यक्ति और थे, हम दोनों पैदल ही पैदल कई किलोमीटर तक चले क्योंकि जन सैलाब के कारण कोई साधन नहीं मिल रहा था वर्ष 2008 में हरिद्वार पूर्ण कुंभ मेले का 14 अप्रैल को आयोजित होने वाले आखिरी शाही स्नान के एक दिन पहले सारे होटल, धर्मशाला कहीं कोई ठिकाना उस 13 अप्रैल की शाम को हम दोनों को दिखाई नहीं दे रहा था, पैदल-पैदल सम्पूर्ण देश से हरिद्वार पहुंचे श्रद्धालुओं की भीड़ में हम दोनों चले जा रहे थे रात्रि में कहां रुकें उस शाम की विपरीत परिस्थितियों में हमें ये चिन्ता सताए चली जा रही थी, तभी पैदल-पैदल चलने के दौरान अचानक भीड़ में से एक संत ने मुझे आवाज दी मेरा नाम लेकर तभी मैंने उस संत की तरफ देखा तो मैं स्वयं हैरान रह गया क्योंकि वो संत कोई और नहीं बल्कि आगरा में गैलाना स्थित प्रसिद्ध महादेव मंदिर के महंत दिव्य संत रघुनाथ बाबा थे, तब पहली बार मुझे आभास हुआ महंत रघुनाथ बाबा एक रहस्मयी संत हैं। क्योंकि उसके बाद महंत रघुनाथ बाबा हमें रात्रि विश्राम के लिए अखाड़े के टेंटों में ले गए जहां सिर्फ साधु संत ही रात्रि में रुक सकते हैं, शिव कृपा से 14 अप्रैल 2008 को कुम्भ पर्व के आखिरी शाही स्नान के दिन हम दोनों ने सुबह ब्रह्म-महूर्त में 4 बजे करीब साधु संतों के साथ सर्वप्रथम कुंभ पर्व का हरिद्वार में आखिरी शाही स्नान किया।

वैदिक सूत्रम चेयरमैन एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि इस भौतिक मायावी संसार में सच्चा संत वही है, जो सहज भाव से विचार करे और आचरण करे। जब उसका मान हो, तब उसे अभिमान न हो और कभी उसका अपमान हो जाए, तो उसे अहंकार नहीं करना चाहिए। हर हाल में उसकी वाणी मधुर, व्यवहार संयमशील और चरित्र प्रभावशाली होना चाहिए। क्योंकि संत शब्द का अर्थ ही है, सज्जन और धार्मिक व्यक्ति। क्योंकि सच्चा संत सभी के प्रति निरपेक्ष और समान भाव रखता है, क्योंकि सच्चा संत, हर इंसान में भगवान को ही देखता है, उसकी नजर में हर व्यक्ति में भगवान वास करते हैं, इसलिए उस पर किसी भी तरह के व्यवहार का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इस भौतिक मायावी संसार में सच्चा संत वही है, जिसने अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया हो और वह हर तरह की कामना से मुक्त हो।
कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि एक सच्चा साधु प्रेम-भाव का भूखा होता है, वह धन का भूखा नहीं होता। जो धन का भूखा होकर लालच में फिरता रहता है, वह सच्चा साधु नहीं होता। ईश्वर के उद्देश्यों और भावनाओं से जुड़ा हुआ संत ही सच्चा संत है। कहा भी गया है कि साधु ऐसा चाहिए, जो हरि की तरह ही हो।

एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि इस भौतिक मायावी संसार में परोपकार करने वाले वास्तविक सच्चे संत पूर्वजन्म के संस्कारों के कारण सकारात्मक विचारधारा लिए होते हैं। असल में गेरुए वस्त्र पहनने और हिमालय पर चले जाने मात्र से कोई साधु नहीं बन जाता, बल्कि सच्चा संत संपूर्ण मानवता के लिए समर्पित होकर सबके विकास को गति देता है। कहा भी गया है कि संत की पहचान इस बात में नहीं है कि उसे शास्त्रों का कितना अधिक ज्ञान है, बल्कि उसके द्वारा लोकहित में किये गए कार्य उसे सच्चा संत बनाते हैं। सच्चे संत का इस संसार में बड़ा महत्व है, क्योंकि वह ईश्वर का एक प्रतिनिधि होता है, सच्चा संत का पूरा जीवन ईश्वर को समर्पित होता है

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