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विवेक कुमार जैन
आगरा 20 फरवरी।
वैदिक सूत्रम चेयरमैन आध्यात्मिक हीलर एवम विश्वविख्यात ख्याति प्राप्त एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने टैगोर नगर दयाल बाग स्थित जैन मंदिर के सामने अपने निवास पर आध्यात्मिक परिपेक्ष्य में जीवन की वास्तविकता के सन्दर्भ में गहराई से वास्तविक मोक्ष प्राप्ति के सन्दर्भ में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि इस पृथ्वी लोक पर किसी भी मनुष्य का जन्म भोगों एवम मायावी सुखों को भोगने के लिए नहीं होता है बल्कि जन्म मरण के बंधनों से हमेशा के लिए मुक्त होने के लिए होता है। लेकिन 90 प्रतिशत व्यक्ति इस पृथ्वी लोक पर जन्म लेने के बाद अपनी मूल जाग्रत चेतना को भूल जाता है कि उसका पृथ्वी लोक पर जन्म लेने का वास्तविक उद्देश्य क्या है। कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि जो व्यक्ति इस पृथ्वी लोक पर इस रंग बिरंगी मायावी दुनिया में जन्म लेने के बाद अपने जन्म लेने के मूल उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए सकारात्मक कर्म की तरफ अग्रसर होता है वही वास्तविक मोक्ष की सर्वोच्च सीढी तक पहुँचने में देवकृपा से पूर्ण रूप से सक्षम हो पाता है। लेकिन प्रत्येक व्यक्ति के लिए इस मायावी दुनिया में यह सब करना इतना आसान नहीं होता है अगर देवकृपा से वो इस सन्दर्भ में दृढ़ इच्छाशक्ति युक्त सकारात्मक विचारधारा रखता है तो वह मोक्ष के उस सर्वोच्च स्थान को देवकृपा से इस जन्म में ही हासिल कर सकता है, लेकिन इसके लिए उस व्यक्ति को इस मायावी दुनिया में काम, क्रोध, मोह, लोभ और अंहकार इन पांचों विकारों पर पूर्ण रूप से विजय प्राप्त करनी होगी तभी वो वास्तविक मोक्ष की सीढ़ियों पर चढ़ने में सक्षम हो पायेगा।
वैदिक सूत्रम रिसर्च संस्था की प्रबंधक वास्तुविद श्रीमती निधि शर्मा ने बताया कि वास्तु के अनुसार उत्तर दिशा सकारात्मक दैवीय ऊर्जा से परिपूर्ण होती है एवम आध्यात्मिक परिपेक्ष्य में मोक्ष प्राप्ति के लिए आध्यात्मिक योग साधना, ध्यान एवम योगा के लिए अति उत्तम स्थान है क्योंकि इस दिशा से चुम्बकीय तरंगों का भवन में प्रवेश होता है। चुम्बकीय तरंगें मानव शरीर में बहने वाले रक्त संचार को प्रभावित करती हैं और इसी से सभी का स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है। अतः स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से इस दिशा का प्रभाव बहुत बढ़ जाता है। स्वास्थ्य के साथ–साथ यह धन को भी प्रभावित करती है। वास्तु के अनुसार उत्तर दिशा के निर्माण में कुछ विशेष बातों को ध्यान में रखना चाहिए जैसे–इस दिशा में भूमि तुलनात्मक रूप से दक्षिण दिशा से नीची होनी चाहिए तथा बालकनी का निर्माण भी उत्तर दिशा में करना चाहिए। भवन में अधिक से अधिक दरवाजे और खिड़कियां भी उत्तर दिशा में रखने चाहिए। बरामदा, पोर्टिकों और वाश बेसिन आदि भी उत्तर दिशा में होने चाहिए।
वास्तुविद निधि शर्मा ने बताया वास्तु शास्त्र के अनुसार उत्तर दिशा के अधिपति हैं रावण के भाई कुबेर, और कुबेर को धन का देवता भी कहा जाता है। बुध ग्रह उत्तर दिशा के स्वामी हैं, उत्तर दिशा को मातृ स्थान भी कहा गया है। उत्तर दिशा धन की दिशा मानी जाती है, इसीलिए कुबेर देव को इस दिशा का देवता माना जाता है। कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि उत्तर दिशा में अपने निवास स्थान पर हमेशा कच्ची जमीन अवश्य रखनी चाहिये और इसे खाली भी छोड़ना चाहिये। इससे घर में धन की देवी लक्ष्मी का आगमन होता है, जो भी परिवार घर में यदि तिजोरी का इस्तेमाल करते हैं तो उसकी स्थापना भी उत्तर दिशा में ही करें लेकिन तिजोरी के दरवाजे का मुंह तिजोरी खोलते समय उत्तर दिशा की तरफ खुलना चाहिए। वास्तु के अनुसार उत्तर और ईशान दिशा में घर का मुख्य द्वार हो तो अति उत्तम होता है। उत्तर दिशा में शौचालय, रसोईघर बनवाने, कूड़ा-करकट डालने और इस दिशा को गंदा रखने से धन-संपत्ति का नाश होकर दुर्भाग्य का निर्माण होता है। इसलिए उत्तर दिशा को हमेशा स्वच्छ बनाएं रखें और कम ऊँचाई वाले हरे भरे पेड़ अवश्य लगाएं तुलसी का पौधा एवम मनी प्लांट उत्तर दिशा में सकारात्मक ऊर्जा भवन में निवास करने वालों को प्रदान करता है एवम भवन के वास्तु दोषों का भी शमन करता है।