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विवेक कुमार जैन
आगरा:28 अप्रैल ।
वैदिक सूत्रम चेयरमैन एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि सूर्य ग्रहण को वैज्ञानिक और धार्मिक दोनों ही दृष्टिकोण से बहुत खास माना गया है। हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष 2022 में साल का पहला सूर्य ग्रहण 30 अप्रैल को शनिवार के दिन लगेगा। आंशिक सूर्य ग्रहण मध्य रात्रि 12 बजकर 15 मिनट से लेकर सुबह 04 बजकर 07 मिनट तक रहेगा। यह सूर्य ग्रहण आंशिक ग्रहण होगा। यह आंशिक सूर्य ग्रहण दक्षिण अमेरिका, पश्चिमी अमेरिका, अटलांटिक पेसिफिक और अंटार्कटिका में दिखाई देगा। इस सूर्य ग्रहण का धार्मिक सूतक काल भारत में मान्य नहीं होगा। कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि सूर्य ग्रहण एक महत्वपूर्ण खगोलीय घटना है जिसे वैदिक हिन्दू ज्योतिष में काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. सूर्य ग्रह को जगत का ऊर्जा कारक और आत्मा का कारक माना जाता है। सूर्य पर जब-जब ग्रहण लगता है तो वह पीड़ित अवस्था में हो जाता है और इसका असर प्रत्येक राशि और सम्पूर्ण संसार पर पड़ता है।
पंडित गौतम ने बताया कि 30 अप्रैल को भारत में मध्य रात्रि में 12 बजकर 15 मिनट से लगने वाला आशिंक सूर्य ग्रहण भरणी नक्षत्र में एवम मेष राशि के चन्द्रमा में ये आंशिक सूर्य ग्रहण लगेगा जिसके परिणामस्वरूप सम्पूर्ण विश्व में हलचल होगी आने वाले 15 दिनों तक अर्थात 15 मई 2022 तक विश्व में उथलपुथल बनी रह सकती है विशेकर अमरीका, ब्रिटेन रूस पर सबसे ज्यादा नकारात्मक प्रभाव इस आंशिक सूर्य ग्रहण का पड़ेगा। दूसरी तरफ वर्तमान में इस आंशिक सूर्य ग्रहण का प्रभाव, मेष, वृष, कन्या, एवम तुला राशियों के व्यक्तियों पर नकारात्मक पड़ेगा उपरोक्त राशियों के व्यक्तियों को ग्रहण के बाद आने वाले 15 दिनों तक विशेष सावधानी बरतने की प्रबल आवश्यकता है।
पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि ग्रहण एक खगोलीय घटना है। जब चंद्रमा, पृथ्वी और सूर्य के मध्य से होकर गुजरता है तथा पृथ्वी से देखने पर सूर्य पूर्ण अथवा आंशिक रूप से चंद्रमा द्वारा आच्छादित होता है। यानी कि जब सूर्य और पृथ्वी के बीच में चंद्रमा आ जाता है तो चंद्रमा के पीछे सूर्य का बिंब कुछ समय के लिए ढक जाता है। इसी घटना को सूर्यग्रहण कहते हैं। सूर्यग्रहण तीन प्रकार का होता है।
श्री गौतम ने बताया सूर्य ग्रहण का पहला प्रकार पूर्ण सूर्य ग्रहण है। यह उस समय होता है जब चंद्रमा पृथ्वी के काफ़ी पास रहते हुए पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है और चंद्रमा पूरी तरह से पृ्थ्वी को अपने छाया क्षेत्र में ले लेता है जिसके फलस्वरूप सूर्य का प्रकाश पृ्थ्वी तक पहुंच नहीं पाता है और पृ्थ्वी पर अंधकार जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है तब पृथ्वी पर पूर्ण सूर्य दिखाई नहीं देता। इस प्रकार बनने वाला ग्रहण पूर्ण सूर्य ग्रहण कहलाता है। दूसरी तरफ ब्रह्माण्ड में सूर्य ग्रहण का दूसरा प्रकार आंशिक सूर्य ग्रहण होता है। आंशिक सूर्यग्रहण में जब चंद्रमा सूर्य व पृथ्वी के बीच में इस प्रकार आए कि सूर्य का कुछ ही भाग पृथ्वी से दिखाई नहीं देता है अर्थात चंद्रमा, सूर्य के केवल कुछ भाग को ही अपनी छाया में ले पाता है। इससे सूर्य का कुछ भाग ग्रहण ग्रास में तथा कुछ भाग ग्रहण से अप्रभावित रहता है तो पृथ्वी के उस भाग विशेष में लगा ग्रहण आंशिक सूर्य ग्रहण कहलाता है।
श्री गौतम ने बताया ब्रह्माण्ड में सूर्य ग्रहण का तीसरा प्रकार यानी कि वलयाकार सूर्य ग्रहण होता है। वलयाकार सूर्य ग्रहण में जब चंद्रमा पृथ्वी के काफ़ी दूर रहते हुए पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है यानी कि छाया ग्रह राहु का ग्रहण सूर्य को इस प्रकार से ढकता है, कि सूर्य का केवल मध्य भाग ही छाया क्षेत्र में आता है और पृथ्वी से देखने पर चंद्रमा द्वारा सूर्य पूरी तरह ढका दिखाई नहीं देता बल्कि सूर्य के बाहर का क्षेत्र प्रकाशित होने के कारण कंगन या वलय के रूप में चमकता दिखाई देता है। कंगन आकार में बने सूर्यग्रहण को ही वलयाकार सूर्य ग्रहण कहलाता है।
पंडित गौतम ने सूर्य ग्रहण के पौराणिक धार्मिक रहस्मयी तथ्यों के सन्दर्भ में बताते हुए कहा कि सूर्य ग्रहण की कथा पौराणिक मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है। प्राचीन काल में देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था। इस मंथन में 14 रत्न निकले थे। समुद्र मंथन में जब अमृत निकला तो इसके लिए देवताओं और दानवों के बीच युद्ध होने लगा। तब श्री हरि विष्णु ने मोहिनी अवतार लिया और देवताओं को अमृतपान करवाने लगे। उस समय राहु नाम के असुर ने भी देवताओं का वेश धारण करके अमृत पान कर लिया। चंद्र और सूर्य ने राहु को पहचान लिया और भगवान विष्णु को इसकी जानकारी दे दी। श्री विष्णुजी ने क्रोधित होकर राहु का सिर धड़ से अलग कर दिया। क्योंकि राहु ने भी अमृत पी लिया था इसलिए वह अमर हो गया था। तभी से छाया ग्रह राहु चंद्र और सूर्य को अपना प्रबल शत्रु मानता है। समय-समय पर इन दोनों राजकीय सूर्य और चन्द्रमा ग्रहों को वर्ष में अपनी ग्रहण की अवधि आने पर ग्रसता है। शास्त्रों में इसी घटना को सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण कहा जाता है।