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संविधान के आड़ में अराजकता बर्दाश्त नही किया जा सकता

मैं बोलूँगा तो बोलोगे कि बोलता है

shaherkisurkhiyan@gmail.com by shaherkisurkhiyan@gmail.com
February 2, 2023
in ओपिनियन, टॉप न्यूज़
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द्वारा डॉ संजय श्रीवास्तव महू7000586652

जिस तरह हर देश का संविधान होता है जिसके अनुसार वह देश चलता है उसी तरह हमारा देश भी आजादी के बाद लोकतंत्र अपनाया और उस लोकतंत्र को स्थापित करने के लिए एक संविधान की स्थापना की और उससे देश को चलाने के लिए क़ानूनी तौर पर उसकी मान्यता दी।संविधान ने लोगों को बहुत से कानूनी अधिकार दिए।लेकिन आज उन अधिकारों के बल पर देश के बहुत से नागरिक उन अधिकारों का दुरूपयोग करते हुए देश विरोधी कार्यों में लिप्त हैं।

अभी हाल में गुजरात दंगों पर ब्रिटेन की एक मीडिया एजेंसी बी बी सी ने एक डॉक्यूमेंट्री बनाई जो अपने देश की तथा वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के छवि को मलिन करने के लिए बनाया गया है।सरकार द्वारा बी बी सी के उस डॉक्यूमेंट्री को प्रदर्शित करने पर बैन करने के बावजूद कुछ शिक्षण संस्थानों में उसे प्रदर्शित करने का प्रयास किया गया।ये अभिव्यक्ति की आजादी के दम पर करने का प्रयास है।जबकि होना ये चाहिए था कि अगर सरकार द्वारा जिसे बैन कर दिया गया हो उसे किसी भी हाल में प्रदर्शित करने की बात किसी को सोचना भी नहीं चाहिये था।लेकिन हमारा संविधान इतना लचर है या हमारी कार्यपालिका की एजेंसियां इतनी मजबूत नही हैं कि सरकार द्वारा लिए गए फैसलों को सख्ती से लागू करवा सकें।दरअसल किसी भी देश में एकजुटता और अखंडता और देश को अराजकता से बचाने के लिए बहुत सख्त कानून की आवश्यकता होती है।

बोलने की आजादी है इसका मतलब कतई नहीं कि लोग देश विरोधी बात करने लगे।लोकतंत्र सिर्फ वहीं तक सीमित होनी चाहिए जहाँ तक राष्ट्र का स्तित्व खतरे में नही हो।दरअसल राष्ट्र के समुचित विकास के लिए एक सॉफ्ट तानाशाही की जरूरत है।आम नागरिकों के अधिकारों को सीमित करने की आवश्यकता है।जब देश के संविधान ने सबको समान अधिकार दिया है तो फिर अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक की बात कहाँ से उत्पन्न हो जाती है।अगड़े पिछड़े या दलित समाज की बातें कहाँ से उठ खड़ी हो जाती है।कुछ राजनीतिक दल इस मसले को खत्म ही नही होना देना चाहते हैं।एक विशेष धर्म के लोग अपने आप को इस देश में अल्पसंख्यक कहते हैं जबकि उनकी आबादी बीस करोड़ है जो पड़ोसी मुल्क की आबादी से ज्यादा है।उनके नेता धर्म के नाम पर विक्टिम कार्ड खेलते रहते हैं।आज देश में, दलितों और पिछड़े वर्ग के लोगों को विशेष अधिकार प्राप्त है फिर भी उनके नेता आये दिन अपने लोगों को भड़काते रहते हैं।अभी हाल में समाजवादी पार्टी का एक नेता रामायण पर सवाल खड़ा कर दिया जबकि सबको पता है कि इस देश में रामायण हिंदुओं द्वारा धार्मिक ग्रंथ के रूप में पूजा जाता है।अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है इसका मतलब ये कतई नही कि आप किसी के धार्मिक भावनाओं को आहत करें।और ये बात सभी धर्म के मानने वालों पर लागू होती है।किसी धर्म के मानने वालों को ये अधिकार कतई नही है कि वे दूसरे के धर्मों पर कोई अनैतिक टिप्पणी करें।इस मामलों में संविधान द्वारा प्रदत स्वतंत्रता के अधिकार को सीमित करना होगा।वैसे तो पूरे देश में देश धर्म से ऊपर कोई धर्म नही होना चाहिए और अपनी धरती के अलावा कोई और पूजनीय नही होना चाहिए।और ये बातें संविधान द्वारा निर्देशित किया जाना चाहिए।आप अपने घरों में जिसको चाहें पूजें लेकिन सार्वजनिक तौर पर इस देश की धरती को ही पूजना होगा।देश भर में कोई भी धार्मिक स्थलों की गुंजाइश नही होनी चाहिए।

सार्वजनिक धार्मिक स्थलों पर केवल माँ भारती की पूजा होनी चाहिए।जबतक ऐसा नहीं होगा तबतक देश में एकता की भावना जागृत नही होगी।और ये बातें सख्ती से तभी लागू होगी जब कोई तानाशाह शासक केंद्र की सत्ता में स्थापित हो।किसी भी देश की प्रगति के लिए नार्थ कोरिया वाली स्थिति से एक बार गुजरना होगा।सुभाष चंद्र बोस ने कहा था कि देश की आजादी के बीस साल बाद तक आपातकाल वाली स्थिति होनी चाहिए और ये सही भी था ।देश की आजादी के बाद जिस तरह पूरा का पूरा शासन तंत्र उच्श्रृंखल और भ्रष्ट हो गया,वह संविधान द्वारा मिली आजादी का परिणाम था।कहीं से कोई अंकुश लोगों पर नही रहा।शक्तिशाली लोगों ने संविधान में दिए गए अधिकारों का उपयोग अपने फायदे के लिए किया।और वह आज भी कमोबेश चल रहा है।
जब देश में आपातकाल लगा था तो उस समय सरकारी कार्यालयों में सौ प्रतिशत उपस्थिति रहती थी।सारी ट्रेनें सही समय पर चल रहीं थीं।
सिर्फ कानून को सख्ती से लागू करने का ये परिणाम था और वैसी ही व्यवस्था हमेशा होनी चाहिए।लोगों के जीवन में अनुशासन होना ही चाहिए चाहे उसके लिए कुछ सख्ती क्यूँ ना करनी पड़े।ये कानून के ढुलमुल रवैये का परिणाम है कि देश में नशे का कारोबार बढ़ता जा रहा।दिखाने के नाम पर थोड़ी बहुत कार्यवाही जरूर होती है लेकिन भ्रष्ट अधिकारियों के चलते इसपर नकेल नही कसी जा रही है जिसका परिणाम आगे चलकर बहुत भयानक होने वाला है।देश में सभी राजनीतिक दलों का मुख्य उद्देश्य केवल येन केन सत्ता को हासिल करना रह गया है।देश का सर्वांगीण विकास कैसे हो इससे किसी को कोई लेना देना नही है।आज देश को धर्म और जाति पर बाँटने का काम सरेआम किया जा रहा है।कुछ लोग हिंदुओं की एकता में सेंध लगाने का कार्य कर रहे हैं।

आजकल दलित समाज के कुछ नेता दलितों को हिन्दू धर्म के खिलाफ भड़काने का काम कर रहे हैं।इनके पीछे देश विरोधी ताकतों का हाथ है जिन्हें विदेशों से फंड प्राप्त हो रहा है।ये देश विरोधी ताकतें भारत को कमजोर करने के लिए देश के अंदर के देश विरोधी ताकतों को मदद देकर उनके द्वारा एक योजना के तहत देश को तोड़ने का कार्य सम्पादित किया जा रहा है।अब इन ताकतों को कुचलने के लिए देश के शीर्ष पर ऐसी सत्ता की आवश्यकता है जो देश के हित में कड़े से कड़े निर्णय ले सके। और जिसके लिये देश सर्वोपरि हो।कुछ वर्षों के लिए अब देश में लोकतंत्र का ढोंग बंद होना चाहिए और देश की एकजुटता और समृद्धि के लिए कार्य होना चाहिए।देश की सेना को और सशक्त बनाने की जरूरत है।जबतक हमारी सेना चीन की बराबरी पर नही पहुँचे तबतक हमें इस दिशा में अथक प्रयास करते रहना चाहिए।आज कर्मवीर योजना हर युवाओं के लिए कम्पलसरी होनी चाहिए।इंटरमीडिएट के बाद चार साल का कोर्स हर युवाओं के लिए होनी चाहिए उसके बाद वे इंजीनियरिंग या मेडिकल या एम बी ए आदि कोर्स करें।बगैर इस चार साल के कोर्स किये किसी को भी आगे के पाठ्यक्रम के लिए अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए चाहे वह लड़का हो या लड़की ,17से21साल के बीच का समय हर युवाओं को देश के लिए समर्पित होना चाहिए।जबतक युवाओं में देशभक्ति का जज्बा उत्पन्न नही हो तो बाकी शिक्षा का कोई महत्व नही है।

धर्म और जाति के नाम पर समाज में जो नफरत फैलाने का काम होता है उसके पीछे की वजह युवाओं में देशभक्ति के जज्बे का अभाव ही है।आज भी समाज में कुछ राजनीतिक दल इन्हीं नफरतों का डर पैदा करके अपनी दुकान चलाने के फ़िराक में लगे रहते हैं।शिक्षा के अभाव के कारण देश की जनता आसानी से गुमराह हो जाती है।और ऐसे राजनीतिक दल अपना उल्लू सीधा करने में सफल हो जाते हैं।देश जब तक पूरी तरह शिक्षित नही हो जाये तबतक वोट देने का अधिकार सभी को नही मिलना चाहिए।वोट देने के लिए कमसे कम कुछ तो शैक्षणिक योग्यता होनी ही चाहिए और उसी तरह जो लोग एक सरपंच के पद के लिए भी चुनाव लड़ते हैं उनकी भी एक निर्धारित योग्यता होनी ही चाहिये। आपके मातहत काम करने वाले अधिकारी अगर आपसे ज्यादा पढ़े लिखे हों तो आप उनको कैसे निर्देशित कर सकते हो।लोकतंत्र के नाम पर इस देश में हमेशा से अंधेर नगरी चौपट राजा वाली स्थिति कायम रही है।आज इन परिस्थितियों को बदलने का समय आ गया है और इसपर हमें गहनता से विचार करना होगा।

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Tags: #BBC#PMModi
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