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विवेक कुमार जैन
आगरा:23 मार्च ।
वैदिक सूत्रम चेयरमैन आध्यात्मिक हीलर एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने कुण्डलिनी शक्ति के सातों चक्रों में से सबसे प्रथम मूलाधार चक्र के सन्दर्भ में उसका रहस्यमयी विश्लेषण करते हुए उसके आध्यात्मिक महत्व के सन्दर्भ में गहराई से बताते हुए कहा कि मानव के भीतर एक रहस्यमयी शक्ति निवास करती है। जो गहरे आवरण में छिपी हुई है। जो सरपरी की तरह मूलाधार चक्र में गोल घूम रही है। मनुष्य ने सहस्त्र वर्षो के अनुसंधान से अपनी भीतर की इस शक्ति को ढूंढ निकाला। यह शक्ति मानव के भीतर मूलाधार चक्र से लेकर मस्तिष्क तक प्रकाशित होती रहती है और यह शक्ति ब्रह्मांड से जुडी है। संपूर्ण ब्रह्मांड एक चक्र से जुडा है। जिसे सहस्त्रहार चक्र कहा जाता है। हमारे शरीर में सप्त प्रकार के सप्तचक्र होते हैं। एक-एक चक्र में सहस्त्र प्रकार की शक्तियां और अनेक प्रकार के अनुभव छुपे हुये हैं। जिन्हे शब्दों में वर्णित नहीं कर सकते। यदि साधक इस शक्ति को जागृत कर ले तो उसका जीवन बदलने लगता है और यह संपूर्ण ब्रह्मांड को संचालित करने वाली ऊर्जा मनुष्य के भीतर धीरे-धीरे उतरने लगती हैं, और साधक विराट अस्तित्व से जुडकर उसका स्वामी बनने लगता है। हमारे सप्त-चक्रो में से मूलाधार चक्र एक दिव्य चक्र है। इसको जागृत करने के लिये हमें एक अच्छे गुरु के सानिध्य में इस विराट आसक्ती को जागृत करना चाहिये ।
कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि मूलाधार चक्र के जाग्रत होने से हमें कोई सिद्धि प्राप्त नहीं होती बल्कि सिद्धियों को प्राप्त करने के लिए हमारे शरीर में जिन आंतरिक गुणों की जरूरत होती है, वह इसे विकसित कर देता है।
मूलाधार नाम से ही स्पष्ट है कि यह चक्र जाग्रत होने पर हमारे जड और नीव को मजबूत कर देता है। जिस प्रकार एक मजबूत नीव पर एक स्थिर इमारत खडी की जा सकती है उसी प्रकार यह चक्र विभिन्न चक्रों के माध्यम से मिलने वाली ऊर्जा को स्थिर रखता है।
एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि इस भौतिक मायावी संसार में कौन कब जाग जाए, इस सपनों की माया से, सिर्फ ईश्वर ही तय करते हैं। रही बात बाकी की तथा-कथित सिद्धियों को प्राप्त करने की, एक बात समझ लीजिए। ईश्वर की मर्जी के बिना इस पूरे ब्रम्हांड में एक पत्ता भी नहीं हिल सकता। वास्तविक सिद्धियां केवल उनको ही मिलती हैं, जिन्हें ईश्वर इस लायक समझते हैं कि वो उनके कार्य को निष्पक्षता से इस भौतिक मायावी संसार में अच्छी तरह उनका निर्वाहन कर सकें। अपनी मर्जी चलाने वाले को ऐसी सिद्धियां नहीं मिलती। यही कारण है कि हिमालय के कई योगियों के पास सिद्धियां होते हुए भी वो स्वयं सामने नहीं आते, वो किसी तरह का कोई हस्तक्षेप नहीं करते ईश्वरीय पटकथा में। ऐसे ब्रम्हज्ञानी योगी, वास्तविक रूप में ईश्वर को प्राप्त कर चुके हैं और उनके साथ पूरी तरह एक हो चुके हैं, उनमें और ईश्वर में अब कोई अंतर शेष नहीं रह गया। इसलिए वो दिव्य योगी भी ईश्वर की ही तरह बस साक्षी भाव से संसार को देखते रहते हैं और कोई हस्तक्षेप नहीं करते।